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बुधवार, 3 मई 2023

Miscellaneous Questions / कुछ प्रश्न - 3b - Unforgiveable sin / क्षमा न होने वाला पाप - 2

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पवित्र आत्मा की निन्दा को कभी न क्षमा होने वाला पाप क्यों कहा गया है? - 2


    पिछले लेख में हमने परमेश्वर वित्र आत्मा की निन्दा की निन्दा के सन्दर्भ में त्रिएक परमेश्वर के तीनों स्वरूपों, पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा से संबंधित कुछ बातों को देखा था। आज हम परमेश्वर के सन्दर्भ में शब्द "निन्दा" या "निरादर" से संबंधित बाइबल से कुछ तथ्यों को समझते हैं।

    दूसराअब हम देखते हैं की शब्द ‘निंदा या निरादर’ काउसके क्षमा न हो सकने वाले पाप के सन्दर्भ में, परमेश्वर के वचन में अभिप्राय क्या है। हम मिकल्संस एन्हांस्ड डिक्शनरी ऑफ़ द ग्रीक एंड हीब्र्यु टेस्टामेंट्स से देखते हैं कि यह शब्द यूनानी शब्द ब्लास्फेमियो” (स्ट्रौंग्स G987) से आया हैजिसका अर्थ है:
1. धिक्कारनाअपशब्द के साथ विरोध में बोलनाहानि पहुंचाना।
2. कलंकित करनाकिसी की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचानाबदनाम करना।
3. (विशेषतःकिसी के प्रति निरादर पूर्वक बोलना।

           इस शब्द की उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कियह निरादर का पाप एक ऐच्छिकजानबूझकर योजनानुसार किया गया कार्य हैजो तथ्यों पर आधारित हो सकता है अथवा नहीं भी हो सकता हैवरन जो तथ्यों का दुरुपयोग करके उन तथ्यों के यथार्थ से बिलकुल भिन्न अभिप्राय देने के द्वारा किया गया भी हो सकता है। और यह केवल व्यक्ति को नीचा दिखाने और बदनाम करने के उद्देश्य से किया गया हो – जो चाहे सही हो या गलत। सीधे शब्दों मेंनिरादर व्यक्ति को दुष्ट कहना और इसका प्रचार करना है यह भली-भांति जानते हुए भी कि वह व्यक्ति बुरा नहीं हैऔर उसके बुरा न होने के प्रमाण होते हुए भीउसे बदनाम करने के उद्देश्य सेजानबूझकर ऐसा करना।

           पवित्र आत्मा के विरुद्ध निरादर का पाप पवित्र आत्मा या उसकी सामर्थ्य अथवा कार्यों के प्रति असमंजस में या अनिश्चित होनाया उस पर संदेह करनाया उसके विषय कोई स्पष्टीकरण की अपेक्षा करनाया कुछ और अधिक खुलासा अथवा विवरण माँगना नहीं है, यह इस बात से भली-भांति प्रकट होता है की यद्यपि प्रभु के कार्य पवित्र आत्मा के अभिषेक और सामर्थ्य के साथ किए गए थे (प्रेरितों 10:38), किन्तु फिर भी अनेकों कोजिन में नए नियम के कुछ बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति भी सम्मिलित हैंप्रभु तथा उसकी सेवकाई के प्रति संदेह थायहाँ तक कि अविश्वास भी था –यूहन्ना बप्तिस्मा देने वाले को संदेह हुआ की क्या प्रभु वह प्रतिज्ञा किया हुआ मसीहा था भी की नहीं (मत्ती 11:2-3); प्रभु के शिष्यों को ही उस पर संदेह था की वह वास्तव में है कौन (मरकुस 4:38-41); प्रभु यीशु के अपने भाई भी उस पर विश्वास नहीं रखते थे (यूहन्ना 7:5); दुष्टात्मा के वश में लड़के के पिता को संदेह था कि वह उसके पुत्र को ठीक कर सकता है कि नहीं (मरकुस 9:24); मृतक लाज़रस की बहिन मार्था को संदेह थाकि प्रभु लाज़रस को मृतकों में से जिलाने पाएगा (यूहन्ना 11:21-28); थोमा को प्रभु के पुनरुत्थान पर संदेह था (यूहन्ना 20:25) इत्यादि। किन्तु इन में से किसी को भी प्रभु ने उनके प्रश्नों, संदेहों, और अविश्वास के कारण कभी क्षमा न हो पाने वाले पाप का दोषी न तो कहा और न इसके लिए उन्हें दण्डित किया। पवित्र आत्मा का प्रतिरोध करने और उसके अनाज्ञाकारी होने की निंदा अवश्य की गई है (प्रेरितों 7:51-53), परन्तु इस “कभी क्षमा न होने वाला पाप” नहीं कहा गया है।

           यहाँ तक कि प्रभु के विरोध में भद्दी या अपमानजनक भाषा के उपयोग को (पतरस द्वारा प्रभु का तीन बार असभ्य भाषा के प्रयोग के साथ किया गया इनकार – मत्ती 26:69-74)भी बाइबल में अनादर या क्षमा न होने वाला पाप नहीं कहा गया है। हमें यह स्मरण करना और ध्यान करना आवश्यक है कि केवल फरीसी, सदूकी, और शास्त्री ही नहीं थे जिन्होंने प्रभु यीशु में दुष्टात्मा होने का दोषारोपण किया थाआम लोगों में से भी कई लोगों ने यही कहा था (मत्ती 10:25; मरकुस 3:21; यूहन्ना 7:20; 8:48, 52; 10:20); परन्तु इन में से किसी भी अवसर पर प्रभु यीशु ने न तो उन्हें क्षमा न होने वाले पाप का दोषी कहा और न ही उन्हें इसके विषय सचेत किया। ऐसे निरादर को कभी न क्षमा होने वाला पाप हैप्रभु ने केवल फरीसीयों से ही मरकुस 3:28-30 और लूका 12:10 में ही कहा हैक्यों?

- क्रमशः 
अगला लेख, भाग - 3, पवित्र आत्मा की निन्दा क्या है?

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Blasphemy Against the Holy Spirit – The Unforgivable Sin; Why? - 2


    In the previous article we had seen some facts related to the Trinity, God the Father, the Son, and the Holy Spirit, in context of blasphemy against the holy Spirit. Today we will understand some Biblical facts related to the word "blasphemy" in context of God.

    Secondly, let us now look at what the word ‘blasphemy’, actually means in God’s Word, in context of its being an unforgivable sin. We see from Mickelson's Enhanced Strong's Dictionaries of the Greek and Hebrew Testaments that this word comes from the Greek word “Blasphemeo” (Strong’s G987), which means:
1. To revile, to speak abusively against, to malign.
2. To vilify, to injure someone's reputation, to defame.
3. (Specially) to speak irreverently.

    It is apparent from the above definition of this term, that blasphemy is a willful, deliberate and intentional act; which may or may not be based on any facts, rather may even misuse those facts to convey impressions quite different from what the facts actually convey. And this is done with the sole aim of denigrating the person being spoken against – rightly or wrongly. Simply stated, blasphemy is calling and proclaiming a person evil though knowing quite well that the person is not evil; yet despite evidences to the contrary, with the intention of maligning him, deliberately doing so.

    That blasphemy against the Holy Spirit is not vacillation, or doubt, or desiring of a clarification, or asking for an explanation or a further elucidation, is well illustrated by the fact that though the Lord’s works were through the anointing and power of the Holy Spirit (Acts 10:38), yet many, including some very important persons in the New Testament, had doubts, even disbelief, about the Lord Jesus and His ministry – John the Baptist had doubts whether the Lord was the Promised Messiah (Matthew 11:2-3); the Lord’s disciples had doubts about who He was (Mark 4:38-41); Jesus’ own brothers did not believe in Him (John 7:5); the father of the demon possessed son had his doubts whether of not the Lord will be able to cure his son (Mark 9:24); Martha, the sister of deceased Lazarus, had doubts about the Lord’s ability to raise Lazarus from the dead (John 11:21-28); Thomas had doubts about the Lord’s resurrection (John 20:25) etc. But none of them have been condemned by the Lord as having blasphemed Him or having committed the unforgivable sin, for their questions, doubts and unbelief. Resisting or disobeying the Holy Spirit has been condemned (Acts 7:51-53), but has not been called the “unforgivable sin.”

    Even the use of coarse or inappropriate language against the Lord (Peter’s three denials of the Lord, using intemperate language – Matthew 26:69-74), has not been labelled as blasphemy or called unforgivable in the Bible. We need to recall and remember that the Pharisees, Sadducees, and the Scribes were not the only ones who had accused the Lord Jesus of having a demon, many others amongst the general public too had said the same (Matthew 10:25; Mark 3:21; John 7:20; 8:48, 52; 10:20); but in none of these instances did the Lord Jesus either accuse those people or warn them of committing the unforgivable sin. Stating this as blasphemy – the unforgivable sin, was reserved by the Lord only for the Pharisees in Mark 3:28-30 and Luke 12:10; why?

- To Be Continued:
Next Article, Part - 3, What is Blasphemy Against the Holy Spirit?

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