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रविवार, 26 मई 2013

सांत्वना और विश्वास


   बात 1994 की है, हमें पता पड़ा कि अमेरिका की फुटबॉल टीम वर्ल्ड कप के खेल के लिए हमारे शहर मिशिगन में ही खेलने आ रही थी; अब हमें तो उसे देखने जाना ही था। खेल के दिन हमारा परिवार उस विशाल स्टेडियम में अमेरिका को स्विटज़रलैंड के विरुद्ध खेलते देखने गया; यह हमारे जीवनों की एक अविस्मर्णीय घटना थी। बस एक समस्या थी, हमारे चार बच्चों में से एक, 9 वर्षीय मेलिस्सा हमारे साथ नहीं जा सकी थी और उसकी कमी हमें खल रही थी; हमने खेल और उस माहौल का आनन्द तो लिया, किन्तु मेलिस्सा के बिना वह पूरा नहीं था।

   जब भी मैं उस दिन को याद करता हूँ, मुझे यह भी एहसास होता है कि जैसे उस दिन जीवन के आनन्द में एक कमी थी, आज भी वैसी ही कमी हमारे जीवनों में बनी हुई है, क्योंकि अब मेलिस्सा हमारे साथ नहीं है; उस खेल के 8 वर्ष पश्चात एक कार दुर्घटना में मेलिस्सा का देहांत हो गया। जब कभी परिवार के लोग किसी अवसर पर एकत्रित होते हैं मेलिस्सा की खाली कुर्सी हमारे जीवनों में उसके जाने से बने खाली स्थान को दिखाती है। सब प्रकार की शांति और दया के परमेश्वर (2 कुरिन्थियों 1:3) ने हमें भी अनुग्रह दिया कि हम उसकी कमी से उभर सकें, और आज भी हमारी उदासी के समय में हमें सांत्वना देता है, हमारे आँसू पोंछता है - जो उसके अपनी हर सन्तान से किए गए वायदे की पुष्टि है कि वह हर हमेशा हमारे प्रति विश्वासयोग्य है और हर परिस्थिति में हमें सांत्वना देगा। उसके इसी अनुग्रह और प्रेम ने हमें इस दुख का सामना करने और उस से उभरने की सामर्थ दी है। यही नहीं, अन्य अनेक परिस्थितियों में भी हमने अपने प्रेमी परमेश्वर पिता की निकटता और सांत्वना को अनुभव किया है।

   यदि आप का भी कोई प्रीय जाता रहा है या अन्य कोई भी दुख आप के जीवन में है तो बिना किसी हिचकिचाहट परमेश्वर की विश्वासयोग्यता पर आसरा लें, उससे उसकी सांत्वना को प्राप्त करें। अपने दुख से चिंतित ना हों, परमेश्वर के सामने अपने दुख को स्वीकार करने से हिचकिचाएं नहीं और ना ही लज्जाएं क्योंकि दुखी होना स्वाभाविक है और परमेश्वर इस बात को भली-भाँति जानता और समझता है। जैसे हम सांसारिक माता-पिता अपनी सन्तान को उनके दुख में उन्हें झिड़कते नहीं वरन अपनी गोद या आलिंगन में लेकर उन्हें भरसक सांत्वना देते हैं और दुख निवारण के उपाय करते हैं, हमारा परमेश्वर पिता भी हमसे वैसे ही प्रेम और सांत्वना का व्यवहार करता है - मैंने अपने व्यक्तिगत दुख के अनुभव से यह सीखा है।

   परिस्थिति कोई भी हो परमेशवर सदा विश्वासयोग्य है और उसकी सांत्वना सदा उपलब्ध है। - डेव ब्रैनन


पृथ्वी पर ऐसा कोई दुख नहीं है जिसका आभास स्वर्ग नहीं करता।

हंसी के समय भी मन उदास होता है, और आनन्द के अन्त में शोक होता है। - नीतिवचन 14:13 

बाइबल पाठ: 2 कुरिन्थियों 1:3-11
2 Corinthians 1:3 हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्‍ति का परमेश्वर है।
2 Corinthians 1:4 वह हमारे सब क्‍लेशों में शान्‍ति देता है; ताकि हम उस शान्‍ति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्‍ति दे सकें, जो किसी प्रकार के क्‍लेश में हों।
2 Corinthians 1:5 क्योंकि जैसे मसीह के दुख हम को अधिक होते हैं, वैसे ही हमारी शान्‍ति भी मसीह के द्वारा अधिक होती है।
2 Corinthians 1:6 यदि हम क्‍लेश पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्‍ति और उद्धार के लिये है और यदि शान्‍ति पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्‍ति के लिये है; जिस के प्रभाव से तुम धीरज के साथ उन क्‍लेशों को सह लेते हो, जिन्हें हम भी सहते हैं।
2 Corinthians 1:7 और हमारी आशा तुम्हारे विषय में दृढ़ है; क्योंकि हम जानते हैं, कि तुम जैसे दुखों के वैसे ही शान्‍ति के भी सहभागी हो।
2 Corinthians 1:8 हे भाइयों, हम नहीं चाहते कि तुम हमारे उस क्‍लेश से अनजान रहो, जो आसिया में हम पर पड़ा, कि ऐसे भारी बोझ से दब गए थे, जो हमारी सामर्थ से बाहर था, यहां तक कि हम जीवन से भी हाथ धो बैठे थे।
2 Corinthians 1:9 वरन हम ने अपने मन में समझ लिया था, कि हम पर मृत्यु की आज्ञा हो चुकी है कि हम अपना भरोसा न रखें, वरन परमेश्वर का जो मरे हुओं को जिलाता है।
2 Corinthians 1:10 उसी ने हमें ऐसी बड़ी मृत्यु से बचाया, और बचाएगा; और उस से हमारी यह आशा है, कि वह आगे को भी बचाता रहेगा।
2 Corinthians 1:11 और तुम भी मिलकर प्रार्थना के द्वारा हमारी सहायता करोगे, कि जो वरदान बहुतों के द्वारा हमें मिला, उसके कारण बहुत लोग हमारी ओर से धन्यवाद करें।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 इतिहास 28-29 
  • यूहन्ना 9:24-41