१९५० के एक उपन्यास में एक दृश्य है जहां गांव में चार जन एक दूसरे के सामने अपने पाप मान लेते हैं। ग्लानि से भर कर उनमें से एक चिल्ला उठता है, "परमेश्वर हमें पृथ्वी पर जीवित कैसे बर्दाशत कर सकता है? वह हमें मार कर अपनी सृष्टि को शुद्ध क्यों नहीं कर लेता?" तब दूसरा उसे उत्तर देता है, "क्योंकि परमेश्वर कुम्हार है; वह मिट्टी को उपयोगी बनाता है।"
संसार के आरंभ में परमेश्वर ने ऐसा ही किया। ’उत्पत्ति’ की पुस्तक बताती है कि सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने मनुष्य जाति को अनूठे रूप में सृजा। उसने ज़मीन की मिट्टी ली, उससे मानव का रूप गढ़ा (- जो शब्द मूल भाषा में इस रचना के कारय लिये उपयोग हुआ है वह एक मंझे हुए श्रेष्ठ कारीगर के कार्य करने को दिखाता है, जैसे कुम्हार मिट्टी लेकर उससे एक सुन्दर और उपयोगी पात्र बना देता है), और फिर उस मिट्टी के मानव में अपनी श्वास फूंक दी जिससे वह मिट्टी का पुतला जीवित प्राणी बन गया, जिसमें न केवल प्राण था वरन आत्मा भी थी और इसलिये वह मानव परमेश्वर के साथ संगति करने और उसकी सेवा करने के योग्य हुआ।
आदम और हव्वा के पाप के कारण मानव जाति की संगति परमेश्वर से टूट गई, लेकिन पाप में गिरे और फंसे मानव के प्रति परमेश्वर का प्रेम कम नहीं हुआ। वह फिर भी उसके हित में कार्य करता रहा और उस टूटी हुई संगति को पुनः स्थापित करने के लिये उसने अपने पुत्र प्रभु यीशु मसीह को भेजा ताकि वह उनके पापों के लिये अपना बलिदान दे और समस्त मानव जाति के लिये उद्धार का मार्ग तैयार कर दे।
परमेश्वर आज भी पाप के दलदल में मरे हुए मनुष्यों में नए जीवन की सांस फूंक रहा है - अब जो कोई प्रभु यीशु को और उसके बलिदान को स्वेच्छा से ग्रहण करता है वह पाप के दलदल से निकल कर परमेश्वर की संगति में आ जाता है और परमेश्वर के लिये उपयोगी पात्र बन जाता है।
उसका निमंत्रण सब के लिये है, आपके लिये भी "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।" (यूहन्ना ३:१६, १७)
धन्यवाद सहित इस महान उद्धार को स्वीकार कीजिये और परमेश्वर से नए जीवन का उपहार प्राप्त कीजिए। - मारविन विलियम्स
और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया। - उत्पत्ति २:७
बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ५:१४-२१
क्योंकि मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है इसलिये कि हम यह समझते हैं, कि जब एक सब के लिये मरा तो सब मर गए।
और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएं परन्तु उसके लिये जो उन के लिये मरा और फिर जी उठा।
सो अब से हम किसी को शरीर के अनुसार न समझेंगे, और यदि हम ने मसीह को भी शरीर के अनुसार जाना था, तौभी अब से उस को ऐसा नहीं जानेंगे।
सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं, देखो, वे सब नई हो गईं।
और सब बातें परमेश्वर की ओर से हैं, जिस ने मसीह के द्वारा अपने साथ हमारे मेल मिलाप की सेवा हमें सौंप दी है।
अर्थात परमेश्वर ने मसीह में होकर अपने साथ संसार का मेल मिलाप कर लिया, और उन के अपराधों का दोष उन पर नहीं लगाया और उस ने मेल मिलाप का वचन हमें सौंप दिया है।
सो हम मसीह के राजदूत हैं, मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्वर के साथ मेल मिलाप कर लो।
जो पाप से अज्ञात था, उसी को उस ने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं।
एक साल में बाइबल:
संसार के आरंभ में परमेश्वर ने ऐसा ही किया। ’उत्पत्ति’ की पुस्तक बताती है कि सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने मनुष्य जाति को अनूठे रूप में सृजा। उसने ज़मीन की मिट्टी ली, उससे मानव का रूप गढ़ा (- जो शब्द मूल भाषा में इस रचना के कारय लिये उपयोग हुआ है वह एक मंझे हुए श्रेष्ठ कारीगर के कार्य करने को दिखाता है, जैसे कुम्हार मिट्टी लेकर उससे एक सुन्दर और उपयोगी पात्र बना देता है), और फिर उस मिट्टी के मानव में अपनी श्वास फूंक दी जिससे वह मिट्टी का पुतला जीवित प्राणी बन गया, जिसमें न केवल प्राण था वरन आत्मा भी थी और इसलिये वह मानव परमेश्वर के साथ संगति करने और उसकी सेवा करने के योग्य हुआ।
आदम और हव्वा के पाप के कारण मानव जाति की संगति परमेश्वर से टूट गई, लेकिन पाप में गिरे और फंसे मानव के प्रति परमेश्वर का प्रेम कम नहीं हुआ। वह फिर भी उसके हित में कार्य करता रहा और उस टूटी हुई संगति को पुनः स्थापित करने के लिये उसने अपने पुत्र प्रभु यीशु मसीह को भेजा ताकि वह उनके पापों के लिये अपना बलिदान दे और समस्त मानव जाति के लिये उद्धार का मार्ग तैयार कर दे।
परमेश्वर आज भी पाप के दलदल में मरे हुए मनुष्यों में नए जीवन की सांस फूंक रहा है - अब जो कोई प्रभु यीशु को और उसके बलिदान को स्वेच्छा से ग्रहण करता है वह पाप के दलदल से निकल कर परमेश्वर की संगति में आ जाता है और परमेश्वर के लिये उपयोगी पात्र बन जाता है।
उसका निमंत्रण सब के लिये है, आपके लिये भी "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।" (यूहन्ना ३:१६, १७)
धन्यवाद सहित इस महान उद्धार को स्वीकार कीजिये और परमेश्वर से नए जीवन का उपहार प्राप्त कीजिए। - मारविन विलियम्स
परमेश्वर ही है जो अशुद्ध को शुद्ध बना सकता है।
और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया। - उत्पत्ति २:७
बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ५:१४-२१
क्योंकि मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है इसलिये कि हम यह समझते हैं, कि जब एक सब के लिये मरा तो सब मर गए।
और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएं परन्तु उसके लिये जो उन के लिये मरा और फिर जी उठा।
सो अब से हम किसी को शरीर के अनुसार न समझेंगे, और यदि हम ने मसीह को भी शरीर के अनुसार जाना था, तौभी अब से उस को ऐसा नहीं जानेंगे।
सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं, देखो, वे सब नई हो गईं।
और सब बातें परमेश्वर की ओर से हैं, जिस ने मसीह के द्वारा अपने साथ हमारे मेल मिलाप की सेवा हमें सौंप दी है।
अर्थात परमेश्वर ने मसीह में होकर अपने साथ संसार का मेल मिलाप कर लिया, और उन के अपराधों का दोष उन पर नहीं लगाया और उस ने मेल मिलाप का वचन हमें सौंप दिया है।
सो हम मसीह के राजदूत हैं, मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्वर के साथ मेल मिलाप कर लो।
जो पाप से अज्ञात था, उसी को उस ने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं।
एक साल में बाइबल:
- यहेजेकेल ८-१०
- इब्रानियों १३