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गुरुवार, 9 जून 2022

बाइबल – पाप और उद्धार / The Bible, Sin, and Salvation – 27


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पाप का समाधान - उद्धार - 23

    पिछले लेखों में एकत्रित किए गए, सीखे तथा समझे गए, पाप और उद्धार, और प्रभु यीशु मसीह के जन्म, जीवन, कार्य, मृत्यु, और पुनरुत्थान से संबंधित तथ्यों के आधार पर आज से हम देखेंगे कि प्रभु यीशु मसीह ने संसार के सभी लोगों के लिए यह पापों की क्षमा, उद्धार, और परमेश्वर से मेल-मिलाप करवाकर, अदन की वाटिका में मनुष्य के पाप द्वारा खोई हुई स्थिति को किस प्रकार सभी मनुष्यों के लिए बहाल किया, और उनके लिए इस आशीष को प्राप्त कर लेने का मार्ग कैसे बना कर दिया, और इस महान कार्य से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों पर भी विचार करेंगे।

    इस बात को समझने के लिए हमें पहले देखी गई बातों को ध्यान में रखना होगा, उन्हें स्मरण करते रहना होगा। पहले हम उन छः अनिवार्यताओं को देखते हैं, जो मनुष्यों के पापों का समाधान और निवारण करके देने वाले उस सिद्ध मनुष्य में होनी अनिवार्य थीं:

   

अनिवार्यता 

प्रभु यीशु मसीह में पूर्ति

वह एक मनुष्य हो।  

प्रभु यीशु, माता के गर्भ में आने से लेकर उनकी मृत्यु होने तक, हर रीति से पूर्णतः मनुष्य थे; सामान्य साधारण मनुष्यों के सभी अनुभवों में से होकर निकले थे; और वे पूर्णतः परमेश्वर भी थे। 

वह अपने जीवन भर मन-ध्यान-विचार-व्यवहार में पूर्णतः निष्पाप, निष्कलंक, और पवित्र रहा हो। 

प्रभु यीशु ने निष्पाप, निष्कलंक, निर्दोष, पवित्र, और सिद्ध जीवन व्यतीत किया। आज तक कभी भी, कोई भी उनके जीवन में किसी भी प्रकार के पाप को न दिखा सका है और न प्रमाणित कर सका है। 

वह अपना जीवन और सभी कार्य परमेश्वर की इच्छा और आज्ञाकारिता में होकर, उसे समर्पित रहकर करे। 

प्रभु यीशु मसीह ने अपने जन्म से लेकर मृत्यु, पुनरुत्थान, और स्वर्गारोहण तक, पृथ्वी के अपने समय में अपनी हर बात को परमेश्वर की इच्छा के अनुसार, और परमेश्वर के वचन में उनके बारे में दी गई भविष्यवाणियों के अनुसार ही किया। उन्होंने अपने आप को शून्य किया, परमेश्वर पिता की पूर्ण आज्ञाकारिता में, बिना कोई आनाकानी अथवा संदेह किए बने रहे, और इस आज्ञाकारिता में पापी मनुष्यों के लिए क्रूस की मृत्यु भी सह ली। 

वह स्वेच्छा से सभी मनुष्यों के पापों को अपने ऊपर लेने और उनके दण्ड - मृत्यु को सहने के लिए तैयार हो।  

क्योंकि प्रभु यीशु निष्पाप और सिद्ध थे, इसलिए मृत्यु का उन पर कोई अधिकार नहीं था। उन्हें किसी भी अन्य स्वाभाविक मनुष्य के समान मृत्यु भोगने की आवश्यकता नहीं थी; और न ही उनमें कोई दोष अथवा अपराध था, जिसके लिए उन्हें कोई दण्ड सहना हो। 

   किन्तु उन्होंने क्रूस की अत्यंत पीड़ादायक और भयानक मृत्यु स्वेच्छा से सभी मनुष्यों के लिए सहन कर ली। 

वह मृत्यु से वापस लौटने की सामर्थ्य रखता हो; मृत्यु उस पर जयवंत नहीं होने पाए। 

सारे संसार के इतिहास में केवल एक प्रभु यीशु मसीह ही हैं जो मर कर भी अपनी उसी देह में वापस आए। उनका जीवन, उनकी मृत्यु, और उनका मृतकों में से पुनरुत्थान संसार के इतिहास में भली-भांति जाँचा, परखा, और प्रमाणित तथ्य है, जिसे पिछले 2000 वर्षों से लेकर आज तक कोई भी गलत अथवा झूठ प्रमाणित नहीं कर सका है। 

   जिन्होंने उसे गलत प्रमाणित करने के प्रयास किए, वे नहीं करने पाए और उनमें से बहुतेरे अंततः उपलब्ध प्रमाणों के समक्ष प्रभु यीशु मसीह के अनुयायी बन गए, उन्हें अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर लिया। 

वह अपने इस महान बलिदान के प्रतिफलों को सभी मनुष्यों को सेंत-मेंत देने के लिए तैयार हो। 

प्रभु यीशु ने सदा सब का भला ही किया, अपने बैरियों, विरोधियों, और सताने वालों का भी भला चाहा, उन्हें क्षमा किया, और उनके हित की चाह रखी। 

   उन्होंने अपने जीवन, शिक्षाओं, मृत्यु, और पुनरुत्थान से मिलने वाले लाभ कभी भी अपने पास नहीं रखे; और न ही उनके लिए कभी कोई कीमत लगाई। 

   उन्होंने पाप और मृत्यु पर प्राप्त अपनी विजय को सेंत-मेंत सारे संसार के लिए उपलब्ध करवा दिया, और यह आज भी सारे संसार के सभी लोगों के लिए उपलब्ध है। 

 

    यदि आप अभी भी प्रभु यीशु मसीह में, उनके जीवन, शिक्षाओं, बलिदान, और पुनरुत्थान में; और उनके आपकी वास्तविक पापमय स्थिति को भली-भांति जानने के बावजूद भी आपके लिए उनके प्रेम में विश्वास नहीं करते हैं, तो आप स्वयं भी प्रभु यीशु के जीवन, मृत्यु, और पुनरुत्थान से संबंधित प्रमाणों की जाँच कर सकते हैं, अपने आप को संतुष्ट कर सकते हैं। प्रभु यीशु आपको इस सांसारिक नाशमान जीवन से अविनाशी जीवन में लाना चाहता है; पाप के परिणाम से निकालकर परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप करवाकर अब से लेकर अनन्तकाल के लिए आपको स्वर्गीय आशीषों का वारिस बनाना चाहता है। शैतान की किसी बात में न आएं, उसके द्वारा फैलाई जा रही किसी गलतफहमी में न पड़ें, अभी समय और अवसर के रहते स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों से पश्चाताप कर लें, अपना जीवन उसे समर्पित कर के, उसके शिष्य बन जाएं। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।” आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा। 

एक साल में बाइबल: 

  • 2 इतिहास 32-33

  • यूहन्ना 18:19-40


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English Translation

The Solution for Sin - Salvation - 23

    From today onwards, on the basis of the facts related to sin and salvation, and the birth, life, works, death, and resurrection of the Lord Jesus Christ, all of which we have gathered together, understood and learnt, in the previous articles, we will see how the Lord Jesus made available the forgiveness for sin and salvation for the whole world, entire mankind, provided the way for man’s reconciliation with God, and thereby the way to restoring back to man that which he lost in the Garden of Eden, restoring his blessings from God. We will also consider some related important questions as well.


To understand this, we need to keep in mind what we have seen so far, keep reminding ourselves of them. Let us first look at the six imperatives, which needed to be fulfilled for the atonement and solution for sin, and had to be present in the perfect man who would accomplish the work of redemption.


Imperative

Fulfillment in the Lord Jesus

He must be a man.  

The Lord Jesus, from the time of coming into the womb of His mother, till His death, was fully a man, in all respects; He went through the same situations and experiences as any other common man; He was fully God as well. 

He should have remained totally sinless, spotless, and holy throughout his life, in everything in his mind, heart, thoughts, and behavior. 

The Lord Jesus lived a sinless, spotless, guiltless, holy, and perfect life on earth. To date, no one has ever been able to show any sin, nor prove any shortcoming in His life. 

He would do everything in his life totally submitted to God and according to the will of God.

The Lord Jesus, from His birth to His death, resurrection, and ascension ot heaven, everything of His life on earth, He did according to the will of God, and to fulfill the prophesies written in God’s Word about Him. He emptied Himself, always fully obeyed God the Father, without any doubts or reluctance to what God had said, and in this obedience, He even suffered the death of the cross.

He would be willing to voluntarily take all the sins of the entire mankind upon himself and suffer their punishment - death for everyone. 

Since the Lord Jesus was sinless and perfect, therefore, death had no hold on Him. He had no need to suffer death like any natural man; And neither did He have any fault or shortcoming, for which He needed to suffer any punishment. 

Nevertheless, He suffered the extremely painful and horrible death of the cross for all of mankind.

He should be capable of returning back from death; death should never be victorious over him.

In the entire history of the world, it is only the Lord Jesus who died and then came back to life in the same body. His life, His death, and His resurrection from the dead is a well examined, cross-checked, and proven fact, and nobody has been able to disprove it for the past 2000 years, since it happened. 

   Those who tried to disprove it, they could not do so, and many of them, in view of the proofs in front of them, became the followers of the Lord Jesus, accepted Him as their Lord and Savior.

He would be willing to freely share the benefits of His great sacrifice with all of mankind.  

The Lord Jesus only did good to everyone, wanted the good of even His enemies, opponents, and tormentors, He forgave them, and wanted to do something beneficial for them. 

   He never kept to Himself any of the benefits of His life, death, and resurrection, nor did He ever put any price to them. 

  He made available the victory He won over sin and death freely to the entire world, and even today it is freely available to everyone who wants to take it.

If you too, despite knowing your own sinful condition, still do not believe in the love that the Lord Jesus has for you, in His life, teachings, sacrifice, and resurrection, then you too can examine and evaluate all the evidences available about the Lord, His life, death and resurrection, and then draw your own conclusions. The Lord wants to draw you out of this temporal life into eternal life with Him. He wants to redeem you from the consequences of sin, to reconcile you with God, and make you a child of God, inheritor of God’s heavenly eternal blessings. Please do not get beguiled by Satan, do not fall for any of his ploys and false stories; check out everything about the Lord for yourself, be convinced of the facts, and then believe in Him.

The Lord Jesus has done His part; He has made ready and available salvation with all the benefits freely to everyone; but have you accepted His offer? Have you taken His hand of love and grace extended towards you and the free gift He offers; or are you still determined to do that which no man can ever accomplish through his own efforts?

If you are still not Born Again, have not obtained salvation, have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heart-felt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company, wants to see you blessed; but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.

   

Through the Bible in a Year: 

  • 2 Chronicles 32-33

  • John 18:19-40