एक लोकप्रीय वाक्य है जिसे मैं अकसर टी-शर्ट्स पर छपा हुआ तथा कला एवं सजावट की वस्तुओं पर लिखा हुआ देखती हूँ; वह वाक्य है: "हमारे जीवन का मूल्याँकन हमारी साँसों की गिनती से नहीं वरन उन बातों से है जो हमें विस्मय से साँस रोक लेने पर बाध्य कर देती हैं।" यह वाक्य आकर्षक तो है लेकिन मेरा मानना है कि यह सत्य नहीं है।
यदि हम जीवन का मूल्याँकन केवल उन ही बातों के आधार पर करेंगे जो हमारे लिए विस्मयकारी हैं तो फिर हम सामान्य और साधारण पलों के महत्व को खो देंगे। सामान्य बातें जैसे खाना, सोना, साँस लेना आदि ऐसी हैं जिन्हें हम बिना विचार किए लगातार करते रहते हैं; लेकिन वे "सामान्य" या महत्वहीन नहीं है। हमारा हर साँस लेना, भोजन का प्रत्येक कौर लेना आदि सब बहुत विशेष और अद्भुत कार्य हैं - यह हमें तब समझ आता है जब हम या तो इनकी बारीकियों का अध्ययन करें या फिर तब, जब किसी कारणवश अचानक ही इनमें से कोई बाधित होने लगे अथवा रुक जाए। वास्त्व में प्रत्येक साँस लेना, विस्मय में आकर साँस रोक लेने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
राजा सुलेमान के पास विस्मय करने के बहुत ढेर अवसर रहे होंगे, क्योंकि उसने अपने लिए लिखा: "और जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रूका; मैं ने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्रम के कारण आनन्दित हुआ; और मेरे सब परिश्रम से मुझे यही भाग मिला" (सभोपदेशक 2:10)। लेकिन अन्ततः उसका निष्कर्ष इन सब के बारे में था कि "...सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है" (सभोपदेशक 2:17)।
सुलेमान का अनुभव हमें स्मरण दिलाता है कि "सामान्य" बातों में आनन्द ढूंढना और आनन्दित होना महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे वास्तव में अद्भुत होती हैं। बड़ा सदा ही बेहतर नहीं होता; अधिक हमेशा उन्नत नहीं होता और हमारा व्यस्त रहना हमें अधिक महत्वपूर्ण नहीं बना देता। बजाए विस्मयकारी क्षणों को ढूंढने में समय बिताने के, हमें हर क्षण और हर साँस को परमेश्वर से मिले उपहार के रूप में स्वीकार करके उसका परमेश्वर की महिमा और आदर के लिए भरपूर उपयोग करना चाहिए, उसे अर्थपूर्ण बना लेना चाहिए; और यह हमारे जीवन को भी अर्थपूर्ण कर देगा। - जूली ऐकैरमैन लिंक
प्रत्येक साँस का सुचारू रीति से लेना विस्मय में साँस रोक लेने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उस की सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी हो कर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता। न किसी वस्तु का प्रयोजन रखकर मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और स्वास और सब कुछ देता है। - प्रेरितों 17:24-25
बाइबल पाठ: सभोपदेशक 1:1-18
Ecclesiastes 1:1 यरूशलेम के राजा, दाऊद के पुत्र और उपदेशक के वचन।
Ecclesiastes 1:2 उपदेशक का यह वचन है, कि व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है।
Ecclesiastes 1:3 उस सब परिश्रम से जिसे मनुष्य धरती पर करता है, उसको क्या लाभ प्राप्त होता है?
Ecclesiastes 1:4 एक पीढ़ी जाती है, और दूसरी पीढ़ी आती है, परन्तु पृथ्वी सर्वदा बनी रहती है।
Ecclesiastes 1:5 सूर्य उदय हो कर अस्त भी होता है, और अपने उदय की दिशा को वेग से चला जाता है।
Ecclesiastes 1:6 वायु दक्खिन की ओर बहती है, और उत्तर की ओर घूमती जाती है; वह घूमती और बहती रहती है, और अपने चक्करों में लौट आती है।
Ecclesiastes 1:7 सब नदियां समुद्र में जा मिलती हैं, तौभी समुद्र भर नहीं जाता; जिस स्थान से नदियां निकलती हैं; उधर ही को वे फिर जाती हैं।
Ecclesiastes 1:8 सब बातें परिश्रम से भरी हैं; मनुष्य इसका वर्णन नहीं कर सकता; न तो आंखें देखने से तृप्त होती हैं, और न कान सुनने से भरते हैं।
Ecclesiastes 1:9 जो कुछ हुआ था, वही फिर होगा, और जो कुछ बन चुका है वही फिर बनाया जाएगा; और सूर्य के नीचे कोई बात नई नहीं है।
Ecclesiastes 1:10 क्या ऐसी कोई बात है जिसके विषय में लोग कह सकें कि देख यह नई है? यह तो प्राचीन युगों में वर्तमान थी।
Ecclesiastes 1:11 प्राचीन बातों का कुछ स्मरण नहीं रहा, और होने वाली बातों का भी स्मरण उनके बाद होने वालों को न रहेगा।
Ecclesiastes 1:12 मैं उपदेशक यरूशलेम में इस्राएल का राजा था।
Ecclesiastes 1:13 और मैं ने अपना मन लगाया कि जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है, उसका भेद बुद्धि से सोच सोचकर मालूम करूं; यह बड़े दु:ख का काम है जो परमेश्वर ने मनुष्यों के लिये ठहराया है कि वे उस में लगें।
Ecclesiastes 1:14 मैं ने उन सब कामों को देखा जो सूर्य के नीचे किए जाते हैं; देखो वे सब व्यर्थ और मानो वायु को पकड़ना है।
Ecclesiastes 1:15 जो टेढ़ा है, वह सीधा नहीं हो सकता, और जितनी वस्तुओं में घटी है, वे गिनी नहीं जातीं।
Ecclesiastes 1:16 मैं ने मन में कहा, देख, जितने यरूशलेम में मुझ से पहिले थे, उन सभों से मैं ने बहुत अधिक बुद्धि प्राप्त की है; और मुझ को बहुत बुद्धि और ज्ञान मिल गया है।
Ecclesiastes 1:17 और मैं ने अपना मन लगाया कि बुद्धि का भेद लूं और बावलेपन और मूर्खता को भी जान लूं। मुझे जान पड़ा कि यह भी वायु को पकड़ना है।
Ecclesiastes 1:18 क्योंकि बहुत बुद्धि के साथ बहुत खेद भी होता है, और जो अपना ज्ञान बढ़ाता है वह अपना दु:ख भी बढ़ाता है।
एक साल में बाइबल:
- होशे 5-8
- प्रकाशितवाक्य 2