ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

मंगलवार, 12 अक्टूबर 2021

मसीही विश्वास एवं शिष्यता - 12

 

मसीही विश्वासी के गुण - पश्चाताप (1)

       पिछले लेखों में हमने परमेश्वर के वचन बाइबल की प्रेरितों के काम पुस्तक, जो प्रथम चर्च या मण्डली के आरंभ तथा गतिविधियों का संक्षिप्त इतिहास है, में से उस मण्डली के लोगों, अर्थात मसीही  विश्वासियों से संबंधित सात बातों को देखा, जिनमें से चार में वेलौलीनरहते थे, और पाँचवीं, बपतिस्मा लेना, प्रत्येक मसीही विश्वासी की ज़िम्मेदारी थी। साथ ही हमने यह भी देखा कि जो मसीही विश्वासियों के लिएलौलीनरहने वाली बातें है, उन्हें तथा बपतिस्मा लेने को मसीही या ईसाई धर्म का पालन करने वालों ने एक रीति या रस्म बना लिया है, और उन्हें उस गणित के समीकरण के समान देखते, सिखाते, और निभाते हैं, कि मसीही विश्वासी इन बातों का पालन करते हैं इसलिए इन बातों का पालन करने वाले भी स्वतः ही मसीही विश्वासी होंगे। इन धर्म-कर्म-रस्म का पालन करने में भरोसा रखने वालों ने उन बातों के निर्वाह के संबंध में अपने ही नियम और विधियाँ, जिनका बाइबल में कोई उल्लेख नहीं है, स्थापित कर के, इन बातों के निर्वाह करने को धर्म के निर्वाह के लिए एक अपेक्षित तथा वांछनीय औपचारिकता बना दिया है। किन्तु जैसे प्रभु यीशु मसीह ने अपने समय के धर्म के अगुवों से, उनके द्वारा मनुष्यों की बनाई हुई विधियों को परमेश्वर की बातें कहकर सिखाने को व्यर्थ उपासना करना कहा था, और चिताया था कि सब व्यर्थ बातें हटा दी जाएँगी (मत्ती 15:9, 13-14), वैसे ही आज भी प्रभु की यही बात वर्तमान में भी मनुष्यों के गढ़े हुए विधि-विधानों पर उतनी ही लागू है, उनके विषय उतनी ही सत्य है जितनी तब थी।

       हमने यह भी देखा था कि सच्चे मसीही विश्वासियों के इन सात गुणों के बारे में लोगों को बताए जाने का आरंभ, यरूशलेम में धार्मिक पर्व मनाने के लिए एकत्रित हुए भक्त यहूदियों के मध्य में प्रभु यीशु के शिष्यों द्वारा किए गए सुसमाचार प्रचार के बाद, उन भक्त यहूदियों द्वारा उठाए गए एक प्रश्न से हुआ था, “तब सुनने वालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और शेष प्रेरितों से पूछने लगे, कि हे भाइयो, हम क्या करें?” (प्रेरितों 2:37)। उनके इस प्रश्न के उत्तर में पतरस द्वारा दिए गए उत्तर में हम इन सात बातों को देखते हैं। हम सात में से उन पाँच बातों को देख चुके हैं, जिन्हें मसीही विश्वास के स्थान पर मसीही या ईसाई धर्म का पालन करने वाले औपचारिकता के रूप में निभाते रहते हैं, और समझते हैं कि ऐसा करने से वे भी मसीही विश्वासियों के समान उद्धार या नया जन्म पाए हुए हो गए हैं; जो परमेश्वर के वचन बाइबल के अनुसार एक बिल्कुल गलत धारणा है। आज हम शेष दो बातों, पश्चाताप करना और सांसारिकता से पृथक होने में से पहली बात, पश्चाताप करना, के बारे में कुछ विस्तार से देखेंगे। 

मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का अंग्रेजी अनुवाद ‘Repent’ और हिन्दी अनुवादमन फिराओकिया गया है, उसका शब्दार्थ हैबिलकुल भिन्न सोच या विचारधारा रखना। अर्थात किसी बात के लिए पश्चाताप करने का अर्थ है, उस बात के लिए अपनी सोच या विचारधारा को पूर्णतः बदल देना, और उसे परमेश्वर की सोच और विचारधारा के अनुरूप ले आना, जिससे वह परमेश्वर की सोच और विचारधारा से संगत हो जाए, परमेश्वर को स्वीकार्य हो जाए। पश्चाताप करना कोई औपचारिकता पूरी करना अथवा किसी धार्मिक रीति का निर्वाह करना नहीं है; यह पूरे मन से उस बात के प्रति अपनी समझ और व्यवहार को पूर्णतः परिवर्तित कर लेना है, अपनी भूतपूर्व सोच और विचारधारा से बिलकुल बदल कर, एक नई सोच और विचारधारा को स्वीकार करना और पालन करना है। संसार भर से आए हुए ये भक्त यहूदी यरूशलेम में इसलिए एकत्रित थे कि वे अपने धर्म और धार्मिक अनुष्ठानों के निर्वाह के द्वारा परमेश्वर की दृष्टि में भी धर्मी ठहरें और परमेश्वर को स्वीकार्य हो जाएं। किन्तु पवित्र शास्त्र में दी गई जिस व्यवस्था और बातों के आधार पर वे ऐसी धारणा रखे हुए थे, जब उसी पवित्र शास्त्र में से पतरस ने परमेश्वर पवित्र आत्मा की अगुवाई और सामर्थ्य से उनके मध्य में परमेश्वर को स्वीकार्य होने की वास्तविकता को रखा, तो उनकी आँखें खुल गईं। पतरस की बात सुनकर उनके हृदय छिद गए, उन्हें बोध हुआ कि उनकी यह धर्म-कर्म-रस्म की धार्मिकता उनके किसी काम की नहीं है, उसे निभाने के बाद भी वे परमेश्वर को वैसे ही अस्वीकार्य हैं, जैसे पहले थे। और तब, जब उन्हें परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी एवं स्वीकार्य होने के लिए और कुछ नहीं सूझ पड़ा, तो उन्होंने पतरस तथा शेष प्रेरितों से ही पूछाहे भाइयों हम क्या करें?”

पतरस के उत्तर की सर्वप्रथम बात थी, ‘मन फिराओ’; अर्थात धार्मिकता के प्रति अपनी वर्तमान विचारधारा और व्यवहार से निकाल कर, अपने-अपने पापों की क्षमा, उद्धार, तथा परमेश्वर को स्वीकार्य धार्मिकता की समझ एवं निर्वाह के लिए प्रभु यीशु मसीह द्वारा किए गए कार्य को स्वीकार करो; अपने जीवन में उसका पालन करो। पतरस द्वारा दिए गए इस उत्तर में निहित है कि मसीही विश्वास और परमेश्वर को स्वीकार्य धार्मिकता के जीवन का आरंभ प्रत्येक व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत रीति से अपने जीवन में विद्यमान पापों का अंगीकार करने, फिर उनके लिए प्रभु यीशु मसीह से क्षमा माँगने के द्वारा होता है। यह करने के पश्चात, जिन बातों से उसके जीवन में पाप को प्रवेश और पैठ मिलती है उनसे संबंधित अपने विचारों और व्यवहारों के मार्ग को दृढ़ निश्चय के साथ पूर्णतः छोड़ देना है। साथ ही, प्रभु यीशु मसीह की शिष्यता में उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चल निकलने तथा हर परिस्थिति का सामना करते हुए चलते ही रहने के लिए कटिबद्ध हो जाना है।  

आज के मसीही या ईसाई समाज में ऐसी कितनी ही बातों, रीति-रिवाजों, त्यौहारों, आदि को मानने और मनाने पर ज़ोर दिया जाता है, जिनका उल्लेख भी बाइबल में नहीं है, और जिनके लिए प्रभु यीशु अथवा पवित्र आत्मा ने कभी कोई शिक्षा नहीं दी है। फिर भी उन्हें बहुत उत्साह और लग्न से माना और मनाया जाता है; यहाँ तक कि यदि कोई उन बातों को न माने या मनाए, अथवा उनके मानने और मनाने के बारे में कोई प्रश्न उठाए, तो उसे विधर्मी समझा जाता है, उसके मसीही होने पर संदेह किया जाता है। किन्तु पश्चाताप और मन फिराव जैसे महत्वपूर्ण विषय को, जो बाइबल के अनुसार मसीही विश्वास में प्रवेश का, उद्धार एवं पापों की क्षमा प्राप्त करने के लिए व्यक्ति द्वारा उठाया जाने वाला पहला कदम है, उसके बारे में न बताया या सिखाया जाता है, और न ही इसके महत्व के बारे में शिक्षा दी जाती है। अगले लेख में हम इस बात के परम-महत्व को समझने के लिए परमेश्वर के वचन बाइबल में से पश्चाताप या मन फिराव से संबंधित कुछ पदों को देखेंगे।

यदि आप ने अभी तक अपने पापों से पश्चाताप नहीं किया है, अपना जीवन स्वेच्छा और सच्चे मन प्रभु यीशु को समर्पित नहीं किया है, तो आज और अभी आपके पास अपनी अनन्तकाल की स्थिति को सुधारने का अवसर है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यशायाह 39-40     
  • कुलुस्सियों