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शुक्रवार, 24 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 30


पाप का समाधान - उद्धार - 26 - उद्धार के परिणाम, आशीषेंऔर सुरक्षा 

पिछले लेख में हमने देखा था कि प्रभु यीशु मसीह को स्वेच्छा और सच्चे मन से अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करने और उसका शिष्य होकर उसकी आज्ञाकारिता में उसे समर्पित जीवन जीने का निर्णय लेने को ही उद्धार या नया जन्म पाना कहते हैं। नया जन्म पाने पर व्यक्ति नश्वर सांसारिक जीवन से अविनाशी आत्मिक जीवन में एक आत्मिक शिशु के समान जन्म लेता है। उद्धार या नया जन्म पल भर में, किए गए निर्णय के साथ मिल जाता है, किन्तु उसे निभाना, उसके अनुसार जीवन जीना सीखना, उसे व्यावहारिक रीति से अपने जीवन में प्रदर्शित करना, उसमें परिपक्व होते जाना, सक्षम होते जाना - यह सब जीवन भर चलते रहने वाला अभ्यास और परिश्रम है। उद्धार या नया जन्म पाना एक आरंभ है, अपने आप में अंत नहीं है। इसके लिए किसी भी धर्म, जाति, स्तर, कार्य, संपत्ति, शिक्षा, स्थान, समय, आयु आदि बातों की कोई बंदिश कोई महत्व नहीं है। यह हर किसी मनुष्य के द्वारा अपने लिए व्यक्तिगत रीति से लिया जाने वाला निर्णय है - उनके लिए भी जो ईसाई धर्म मानने वाले, या मसीही विश्वासी परिवारों में जन्म लेते हैं, और अपने धर्म या विश्वास से संबंधित सभी रीतियों, कार्यों, अनुष्ठानों को पूरा करते हैं - इनमें से कोई भी बात उन्हें व्यक्तिगत रीति से अपने पापों से पश्चाताप करके, प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण कर लेने और उसका शिष्य बन जाने के द्वारा उद्धार या नया जन्म पाने से बचे रहने का अधिकार नहीं देती है, क्योंकि उद्धार या नया जन्म वंशागत नहीं है, और न ही किसी भी धर्म के निर्वाह से संबंधित है।  

पापों की क्षमा और उद्धार पाने के अतिरिक्त क्या मसीही विश्वास को स्वीकार करने के और भी कोई लाभ हैं? जब एक शिशु जन्म लेता है, तो उसका ध्यान रखने और उसे उचित पालन-पोषण देने के लिए माता-पिता तथा परिवार जन हर एक आवश्यक बात उपलब्ध करवाते हैं। उसी प्रकार आत्मिक परिवार में जन्म लेने पर, परमेश्वर भी अपने नवजात आत्मिक शिशु की परवरिश के लिए सभी उचित बातें, सुरक्षा, और आवश्यक सहायता उपलब्ध करवाता है। उद्धार के साथ जो बातें प्रत्येक मसीही विश्वासी को परमेश्वर की ओर से मसीही जीवन जीने के लिए उपलब्ध कर दी जाती हैं, वे हैं:

  • वह उद्धार पाते ही परमेश्वर के परिवार का सदस्य (इफिसियों 2:19), परमेश्वर की संतान बन जाता है (यूहन्ना 1:12-13)
  • वह परमेश्वर पिता और परमेश्वर पुत्र - प्रभु यीशु के हाथों में सुरक्षित रहता है (यूहन्ना 10:28-29)
  • उसे सिखाने और संभालने के लिए परमेश्वर पवित्र आत्मा उसके मन में आकर बस जाता है (इफिसियों 1:13-14; गलातीयों 3:2), उसकी देह पवित्र आत्मा का मन्दिर बन जाती है (1 कुरिन्थियों 3:16; 6:19) 
  • उसका पोषण परमेश्वर के वचन के द्वारा किया जाता है (1 पतरस 2:2)। यह वचन ही उसका मार्गदर्शक (भजन 119:105), उसे पाप करने से बचाए रखने वाला (भजन 119:9, 11), और उसे बुद्धिमान बनाता है (भजन 119:98-110, 104) 
  • उसे परमेश्वर की ओर से प्रतिज्ञा है कि उस पर कोई भी ऐसी परीक्षा नहीं आएगी, जो उसके सहने की क्षमता से बाहर है, वरन उस सीमा के अंदर भी उसे परीक्षा से बच कर सुरक्षित निकलने का मार्ग दिया जाएगा (1 कुरिन्थियों 10:13)। शैतान भी उसे परमेश्वर द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक नहीं छू सकता है (अय्यूब 1:10-12) 
  • यदि उससे कोई पाप हो जाए, और वह अपने पाप को स्वीकार करके परमेश्वर से उसके लिए क्षमा माँग ले, तो परमेश्वर उसे क्षमा भी कर देगा (1 यूहन्ना 1:9) 
  • परमेश्वर ने अपने स्‍वर्गदूतों को उसकी सेवा करने वाले बना दिया है (इब्रानियों 1:14) 

       परमेश्वर की ओर से यह सारी सहायता और सुरक्षा पापों से पश्चाताप करने और प्रभु यीशु को उद्धारकर्ता स्वीकार कर लेने वाले प्रत्येक जन तुरंत ही, उसके नया जन्म पाने के साथ ही उपलब्ध हो जाती है। इसके बाद, उसके मसीही जीवन में प्रगति और उन्नति करने के लिए, परमेश्वर के लिए उपयोगी होने के लिए, मसीही जीवन को जी कर दिखाने के लिए, परमेश्वर अन्य अनेकों प्रकार से उसकी सहायता करता रहता है, उसे समय और परिस्थिति के अनुसार आवश्यक बल, बुद्धि, ज्ञान, और मार्गदर्शन आदि प्रदान करता रहता है। कोई भी वास्तविक मसीही विश्वासी, आजीवन कभी भी, परमेश्वर से दूर अकेला, या उसकी दृष्टि से ओझल, और उसकी देखभाल से बाहर नहीं रहता है। परमेश्वर की उपस्थिति सदा उसके साथ बनी रहती है, उसे संभाले रहती है। 

       क्या ऐसी अद्भुत परवरिश, सहायता, देखभाल और आशीषें मसीही विश्वास के अतिरिक्त और कहीं पर उपलब्ध हैं - और वो भी सेंत-मेंत? तो फिर क्यों इन अनुपम, अद्भुत, सर्वोत्तम आशीषों से दूर रहना? हमारा कृपालु और अनुग्रहकारी प्रभु परमेश्वर तो हर प्रकार से हमारी भलाई ही चाहता है, तो फिर उसके प्रस्ताव को स्वीकार करने में क्या एतराज है? यीशु मसीह को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता स्वीकार करने में आपको किस बात का संकोच है? स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा। 

 

बाइबल पाठ: व्यवस्थाविवरण 6:1-9 

व्यवस्थाविवरण 6:1 यह वह आज्ञा, और वे विधियां और नियम हैं जो तुम्हें सिखाने की तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने आज्ञा दी है, कि तुम उन्हें उस देश में मानो जिसके अधिकारी होने को पार जाने पर हो;

व्यवस्थाविवरण 6:2 और तू और तेरा बेटा और तेरा पोता यहोवा का भय मानते हुए उसकी उन सब विधियों और आज्ञाओं पर, जो मैं तुझे सुनाता हूं, अपने जीवन भर चलते रहें, जिस से तू बहुत दिन तक बना रहे।

व्यवस्थाविवरण 6:3 हे इस्राएल, सुन, और ऐसा ही करने की चौकसी कर; इसलिये कि तेरा भला हो, और तेरे पित्रों के परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उस देश में जहां दूध और मधु की धाराएं बहती हैं तुम बहुत हो जाओ।

व्यवस्थाविवरण 6:4 हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है;

व्यवस्थाविवरण 6:5 तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना।

व्यवस्थाविवरण 6:6 और ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें;

व्यवस्थाविवरण 6:7 और तू इन्हें अपने बाल-बच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना।

व्यवस्थाविवरण 6:8 और इन्हें अपने हाथ पर चिन्हानी कर के बान्धना, और ये तेरी आंखों के बीच टीके का काम दें।

व्यवस्थाविवरण 6:9 और इन्हें अपने अपने घर के चौखट की बाजुओं और अपने फाटकों पर लिखना।

एक साल में बाइबल:

· श्रेष्ठगीत 4-5 

· गलातियों 3