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शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

मसीही विश्वास एवं शिष्यता - 15


मसीही विश्वासी के गुण - अलगाव (2)

       पिछले लेखों में हम पिन्तेकुस्त के दिन, पवित्र आत्मा से भर जाने के बाद पतरस द्वारा यरूशलेम में एकत्रित हुएभक्त यहूदियोंको किए गए सुसमाचार प्रचार के प्रभावों को देखते आ रहे हैं। मसीह यीशु पर लाए गए विश्वास से प्राप्त होने वाली पापों की क्षमा, उद्धार, और मसीही शिष्यता से संबंधित सात व्यावहारिक बातों को पवित्र आत्मा की अगुवाई में पतरस ने उनके सामने रखा, जिन्हें हम प्रेरितों 2:37-42 में से देख रहे हैं। पिछले लेख में हमने इन सात में से अंतिम, और लिखे गए क्रम के अनुसार तीसरी बात - मसीही विश्वासी के संसार और सांसारिकता की बातों से अपने आप को अलग करने के बारे में देखना आरंभ किया था। हमने देखा था कि ऐसा करना कितना महत्वपूर्ण है, और प्रत्येक मसीही विश्वासी में आकर निवास करने वाला पवित्र आत्मा ऐसा करने में उसकी सहायता करता है। किन्तु मसीही विश्वास को मसीही या ईसाई धर्म बनाकर धर्म-कर्म-रस्म के पालन करने की धारणा रखने वाले, पतरस द्वारा कही गई क्रम की पहली बात - मन फिराओ अर्थात पश्चाताप करो, और क्रम की यह तीसरी बात - अपने आप को संसार और सांसारिकता के व्यवहार से पृथक करो पर न तो कोई विशेष ध्यान देते हैं और न ही मसीही शिष्यता के जीवन में इनके महत्व एवं अनिवार्यता को लोगों को सिखाते हैं। 

मसीही विश्वास के प्रचार और प्रसार के आरंभिक समय में, प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस में स्थित मसीही मण्डली को लिखाअविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो, क्योंकि धामिर्कता और अधर्म का क्या मेल जोल? या ज्योति और अन्धकार की क्या संगति? और मसीह का बलियाल के साथ क्या लगाव? या विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्या नाता? और मूरतों के साथ परमेश्वर के मन्दिर का क्या सम्बन्ध? क्योंकि हम तो जीवते परमेश्वर का मन्दिर हैं; जैसा परमेश्वर ने कहा है कि मैं उन में बसूंगा और उन में चला फिरा करूंगा; और मैं उन का परमेश्वर हूंगा, और वे मेरे लोग होंगे। इसलिये प्रभु कहता है, कि उन के बीच में से निकलो और अलग रहो; और अशुद्ध वस्तु को मत छूओ, तो मैं तुम्हें ग्रहण करूंगा। और तुम्हारा पिता हूंगा, और तुम मेरे बेटे और बेटियां होगे: यह सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर का वचन है” (2 कुरिन्थियों 6:14-18 )। यह दिखाता है कि संसार और सांसारिकता से पृथक रहना मसीही विश्वासी के लिए कितना महत्वपूर्ण है, और अनिवार्य है। पतरस प्रेरित ने इसके विषय लिखाहे प्रियो मैं तुम से बिनती करता हूं, कि तुम अपने आप को परदेशी और यात्री जान कर उस सांसारिक अभिलाषाओं से जो आत्मा से युद्ध करती हैं, बचे रहो” (1 पतरस 2:11) 

थिस्सलुनीकिया की मसीही मण्डली के मसीही विश्वास और व्यवहार की सराहना करते हुए पौलुस प्रेरित ने उनके जीवन में आए परिवर्तन और उनके द्वारा अपनी पुरानी बातों को छोड़कर सुसमाचार प्रचार करने तथा प्रभु की बातों पर मन लगाने के बारे में सराहना करते हुए लिखाऔर तुम बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को मान कर हमारी और प्रभु की सी चाल चलने लगे। यहां तक कि मकिदुनिया और अखया के सब विश्वासियों के लिये तुम आदर्श बने। क्योंकि तुम्हारे यहां से न केवल मकिदुनिया और अखया में प्रभु का वचन सुनाया गया, पर तुम्हारे विश्वास की जो परमेश्वर पर है, हर जगह ऐसी चर्चा फैल गई है, कि हमें कहने की आवश्यकता ही नहीं। क्योंकि वे आप ही हमारे विषय में बताते हैं कि तुम्हारे पास हमारा आना कैसा हुआ; और तुम कैसे मूरतों से परमेश्वर की ओर फिरे ताकि जीवते और सच्चे परमेश्वर की सेवा करो। और उसके पुत्र के स्वर्ग पर से आने की बाट जोहते रहो जिसे उसने मरे हुओं में से जिलाया, अर्थात यीशु की, जो हमें आने वाले प्रकोप से बचाता है” (1 थिस्स्लुनीकियों 1:6-10) 

तो क्या इसका तात्पर्य है कि मसीही विश्वासी को संसार के साथ कोई संपर्क, कोई व्यवहार, कोई मेल-जोल या बातचीत नहीं रखनी है; वरन अपने आप को सभी से बिल्कुल अलग-थलग कर के एक सन्यासी के समान जीवन बिताना है? नहीं! परमेश्वर का वचन बाइबल यह भी नहीं कहता है; और ऐसी धारणा रखना भी बाइबल की शिक्षाओं के अनुरूप नहीं है। प्रभु यीशु ने स्वयं अपने शिष्यों से कहा कि वे सारे जगत में जाकर मसीह यीशु में विश्वास द्वारा सेंत-मेंत उपलब्ध पापों की क्षमा और उद्धार के सुसमाचार के संदेश को बताएं। यदि प्रभु यीशु मसीह के शिष्य संसार के लोगों से मिलेंगे-जुलेंगे नहीं, उनसे संपर्क नहीं रखेंगे, तो फिर प्रभु की यह आज्ञा कैसे पूरी करेंगे? पौलुस जब अथेने में अपने साथियों के आने की बाट जोह रहा था, तो यहूदियों और अन्यजाति लोगों से चर्चाएं किया करता था, उन्हें सुसमाचार सुनाया करता थाजब पौलुस अथेने में उन की बाट जोह रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल गया। सो वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उन से हर दिन वाद-विवाद किया करता था। तब इपिकूरी और स्‍तोईकी पण्‍डितों में से कितने उस से तर्क करने लगे, और कितनों ने कहा, यह बकवादी क्या कहना चाहता है परन्तु औरों ने कहा; वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है, क्योंकि वह यीशु का, और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था” (प्रेरितों 17:16-18)। पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस प्रेरित ने कुरिन्थुस की मण्डली को लिखामैं ने अपनी पत्री में तुम्हें लिखा है, कि व्यभिचारियों की संगति न करना। यह नहीं, कि तुम बिलकुल इस जगत के व्यभिचारियों, या लोभियों, या अन्धेर करने वालों, या मूर्तिपूजकों की संगति न करो; क्योंकि इस दशा में तो तुम्हें जगत में से निकल जाना ही पड़ता” (1 कुरिन्थियों 5:9-10)

इन सभी बातों के आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि मसीही विश्वासी के लिए पृथक होकर रहने का अर्थ सन्यास ले लेना, अथवा सभी लोगों से हर प्रकार का संपर्क एवं व्यवहार समाप्त कर देना नहीं है। वरन, मसीही विश्वासी को संसार के लोगों के समान और सांसारिकता की मानसिकता नहीं रखनी है, उनके सदृश्य नहीं बनना है (रोमियों 12:2)। प्रभु यीशु मसीह ने अपने शिष्यों को संसार में रहते हुए किस प्रकार व्यवहार रखना है सिखाया, जो स्पष्ट करता है कि उन्हें संसार के लोगों के साथ संपर्क रखना था, उनके बीच में अपनी सच्चाई और खराई के कारण एक गवाह बन कर रहना था:तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इस के कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए। तुम जगत की ज्योति हो; जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता। और लोग दिया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उस से घर के सब लोगों को प्रकाश पहुंचता है। उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें” (मत्ती 5:13-16)। इसका परिणाम होगाअन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिये कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जान कर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देख कर; उन्‍हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्वर की महिमा करें” (1 पतरस 2:12) 

मसीही विश्वास का जीवन एक व्यवहारिक जीवन है, निरंतर हर बात में प्रभु यीशु की आज्ञाकारिता में बने रहने, और अपनी हर बात के द्वारा परमेश्वर को महिमा देते रहने का जीवन हैसो तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करो” (1 कुरिन्थियों 10:31)। किन्तु यदि आप अभी भी संसार के साथ और संसार के समान जी रहे हैं, या परमेश्वर को स्वीकार्य होने के लिए धर्म-कर्म-रस्म के निर्वाह की मानसिकता में भरोसा रखे हुए हैं, तो आज और अभी आपके पास अपनी अनन्तकाल की स्थिति को सुधारने का अवसर है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यशायाह 45-46     
  • 1 थिस्सलुनीकियों 3