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प्रभु यीशु की कलीसिया - पहले पुनरुत्थान की भागी
पिछले कुछ लेखों में हम प्रभु यीशु की कलीसिया के लिए परमेश्वर के वचन बाइबल के नए नियम खंड में प्रयोग किए गए विभिन्न रूपक (metaphors), जैसे कि - प्रभु का परिवार या घराना; परमेश्वर का निवास-स्थान या मन्दिर; परमेश्वर का भवन; परमेश्वर की खेती; प्रभु की देह; प्रभु की दुल्हन; परमेश्वर की दाख की बारी, इत्यादि के बारे में देखते आ रहे हैं। हमने देखा है कि किस प्रकार से इन रूपकों में होकर परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रभु द्वारा अपनी कलीसिया, अर्थात, अपने सच्चे और समर्पित शिष्यों का धर्मी और पवित्र किए जाना, परमेश्वर के साथ कलीसिया के संबंध, संगति, एवं सहभागिता की बहाली, तथा कलीसिया के लोगों के व्यवहार और जीवनों में परमेश्वर के प्रयोजन, उन से उसकी अपेक्षाएं, आदि को समझाया है। यहाँ पर ये रूपक किसी विशिष्ट क्रम, आधार, अथवा रीति से सूची-बद्ध नहीं किए गए हैं। कलीसिया के लिए बाइबल में प्रयोग किए गए सभी रूपक समान रीति से, एक सच्चे, समर्पित, आज्ञाकारी मसीही विश्वासी के प्रभु यीशु और पिता परमेश्वर के साथ संबंध को, तथा उसके मसीही जीवन, और दायित्वों के विभिन्न पहलुओं को दिखाते हैं; सभी रूपक समान ही महत्वपूर्ण हैं, सभी में मसीही जीवन से संबंधित कुछ आवश्यक शिक्षाएं हैं।
साथ ही, इन सभी रूपकों में एक और सामान्य बात है कि प्रत्येक रूपक यह भी बिलकुल स्पष्ट और निश्चित कर देता है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार के किसी भी मानवीय प्रयोजन, कार्य, मान्यता या धारणा के निर्वाह आदि के द्वारा, अपनी अथवा किसी अन्य मनुष्य की ओर से परमेश्वर की कलीसिया का सदस्य बन ही नहीं सकता है; वह चाहे कितने भी और कैसे भी प्रयास अथवा दावे क्यों न कर ले। अगर व्यक्ति प्रभु यीशु की कलीसिया का सदस्य होगा, तो वह केवल प्रभु की इच्छा से, उसके माप-दंडों के आधार पर, उसकी स्वीकृति से होगा, अन्यथा कोई चाहे कुछ भी कहता रहे, वह चाहे किसी ‘मानवीय कलीसिया’ अथवा किसी ‘संस्थागत कलीसिया’ का सदस्य हो जाए, किन्तु प्रभु की वास्तविक कलीसिया का सदस्य हो ही नहीं सकता है। और यदि वह अपने आप को प्रभु की कलीसिया का सदस्य समझता या कहता भी है, तो भी प्रभु उसकी वास्तविकता देर-सवेर प्रकट कर देगा, और अन्ततः वह अनन्त विनाश के लिए प्रभु की कलीसिया से पृथक कर दिया जाएगा। इसलिए अपने आप को मसीही विश्वासी कहने वाले प्रत्येक जन के लिए अभी समय और अवसर है कि अभी अपने ‘मसीही विश्वासी’ होने के आधार एवं वास्तविक स्थिति को भली-भांति जाँच-परख कर, उचित कदम उठा ले और प्रभु के साथ अपने संबंध ठीक कर ले। हर व्यक्ति को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह किसी मानवीय कलीसिया अथवा किसी संस्थागत कलीसिया का नहीं, परंतु प्रभु यीशु की वास्तविक कलीसिया का सदस्य है।
परमेश्वर के वचन बाइबल में दी गई “कलीसिया” शब्द की समझ और अभिप्राय जानना और समझना प्रत्येक उस जन के लिए जो अपने आप को ईसाई, या मसीही, या मसीही विश्वासी कहता है, अनिवार्य है। क्योंकि वह व्यक्ति इस पृथ्वी के किस मत, समुदाय, डिनॉमिनेशन से संबंध रखता है; या पृथ्वी पर उसकी सदस्यता किस मत, समुदाय, डिनॉमिनेशन में है, और उस मत, समुदाय, डिनॉमिनेशन के अगुवे और वहाँ उस व्यक्ति के साथ के अन्य लोग उस व्यक्ति के बारे में क्या राय रखते हैं, आदि बातों का उस व्यक्ति के परलोक के अनन्त जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। जिस एकमात्र बात का प्रभाव पड़ेगा, और जो उस व्यक्ति के अनन्त काल के स्थान को निर्धारित करेगी वह है उस व्यक्ति का प्रभु यीशु मसीह के साथ व्यक्तिगत संबंध, जैसा हम पहले से कहते और बल देते चले आ रहे हैं। प्रभु यीशु मसीह ने मत्ती 22:1-16 में परमेश्वर के राज्य और अन्त के समय होने वाली छँटाई के विषय एक दृष्टांत कहा - एक राजा ने अपने पुत्र के विवाह के उपलक्ष्य में एक बड़ा भोज आयोजित किया, किन्तु निमंत्रित लोगों ने आने में आनाकानी की। तब राजा ने नगर के मार्गों, चौराहों, आदि स्थानों से सभी लोगों को भोज के लिए बुलाया। जब राजा भोज के स्थान पर आया तो देखा कि उन बुलाए गए लोगों में से एक ऐसा था, जो राजा द्वारा प्रदान किए गए भोज के वस्त्र को पहने बिना अंदर चला आया था। राजा की आज्ञा से इस व्यक्ति को बाहर निकाल दिया गया, अँधियारे में, पीड़ा के स्थान में डाल दिया गया। इस दृष्टांत के अन्त में प्रभु यीशु ने निष्कर्ष के रूप में कहा, “क्योंकि बुलाए हुए तो बहुत परन्तु चुने हुए थोड़े हैं” (मत्ती 22:14)। उस व्यक्ति का भोज के भीतरी स्थान तक पहुँच जाने ने उसके लिए इस बात को निश्चित नहीं किया कि वह भोज में भाग भी लेने पाएगा। जब वह भोज के लिए उपयुक्त वस्त्रों के बिना पाया गया, तो उसे निकाल बाहर किया गया।
आज प्रभु यीशु का उसके पास आकार पापों की क्षमा और उद्धार प्राप्त करने का आह्वान संसार के सभी लोगों के लिए है, सभी उसके द्वारा बुलाए जा रहे हैं (प्रेरितों 17:30)। ईसाई या मसीही समाज में ऐसे बहुतेरे लोग हैं जो ये समझते हैं कि उन्हें प्रभु यीशु द्वारा प्रदान की जाने वाली धार्मिकता रूपी ‘वस्त्रों’ की कोई आवश्यकता नहीं है। वे अपनी ही पारिवारिक या पारंपरिक धार्मिकता के आधार पर, अपने मत, समुदाय, डिनॉमिनेशन, आदि की सदस्यता के आधार पर, प्रभु के राज्य में प्रवेश कर लेंगे। किन्तु प्रभु यीशु द्वारा प्रदान किए जाने वाले धार्मिकता के वस्त्रों को पहने बिना, कोई परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं करने पाएगा।
बाइबल से कुछ पद देखिए, कि प्रभु किन लोगों को लेने आएगा:
“और वह तुरही के बड़े शब्द के साथ, अपने दूतों को भेजेगा, और वे आकाश के इस छोर से उस छोर तक, चारों दिशा से उसके चुने हुओं को इकट्ठे करेंगे” (मत्ती 24:31)।
“जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। और सब जातियां उसके सामने इकट्ठी की जाएंगी; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकिरयों से अलग कर देता है, वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा” (मत्ती 25:31-32)।
“उस समय वह अपने दूतों को भेज कर, पृथ्वी के इस छोर से आकाश की उस छोर तक चारों दिशा से अपने चुने हुए लोगों को इकट्ठे करेगा” (मरकुस 13:27)।
“और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे। परन्तु हर एक अपनी अपनी बारी से; पहिला फल मसीह; फिर मसीह के आने पर उसके लोग” (1 कुरिन्थियों 15:22-23)।
“क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा; उस समय ललकार, और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा, और परमेश्वर की तुरही फूंकी जाएगी, और जो मसीह में मरे हैं, वे पहिले जी उठेंगे” (1 थिस्स्लुनीकियों 4:16)।
बाइबल इस बारे में कोई संदेह नहीं रहने देती है कि प्रभु के लोगों में और अन्य लोगों में भिन्नता है। जो प्रभु के लोगों में अपने आप से घुसने का प्रयास करते हैं, जो समय रहते प्रभु के लोग नहीं बने, प्रभु उन्हें अपने लोगों में से पृथक कर देगा (मत्ती 13:30; 25:31-32) और अनन्त विनाश में भेज देगा। वे लोग ही, जिन्होंने इस पृथ्वी पर, समय और अवसर रहते, प्रभु के लोग बनने का निर्णय और उसका निर्वाह कर लिया, वे ही प्रभु के दूसरे आगमन पर इस पहले पुनरुत्थान के भागी होंगे, “धन्य और पवित्र वह है, जो इस पहिले पुनरुत्थान का भागी है, ऐसों पर दूसरी मृत्यु का कुछ भी अधिकार नहीं, पर वे परमेश्वर और मसीह के याजक होंगे, और उसके साथ हजार वर्ष तक राज्य करेंगे” (प्रकाशितवाक्य 20:6)।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो अभी समय और अवसर रहते प्रभु यीशु के साथ अपने संबंध के आधार को, तथा उसके साथ अपने संबंध को बारीकी से जाँच परख कर सुनिश्चित कर लीजिए कि आप वास्तव में प्रभु के जन हैं कि नहीं, और उस पहले पुनरुत्थान के भागी होंगे कि नहीं। जरा सी भी चूक, थोड़ी सी भी लापरवाही, समय रहते नहीं किया गया सुधार का कार्य, आपके अनन्त काल को अंधियारा और पीड़ादायक बना देगा।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
यशायाह 28-29
फिलिप्पियों 3
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The Church – Will be Caught up at the First Resurrection
We have been considering the various metaphors given in the New Testament section of the Word of God the Bible, for the Church of God, e.g., the Family of the Lord; the Temple or Dwelling place of God; House of God; the Field of God; The Body of the Lord; the Bride of the Lord; the Vineyard of God, etc. We have seen how through these metaphors God the Holy Spirit has shown and explained about the Church of the Lord Jesus Christ, i.e., about those who are His truly surrendered and committed people being made pure and holy, their relationship with the Lord, the restoration of His people to fellowship with God, the life and behavior of the people of the Church, and God’s expectations from them, His work in their lives etc. We are not considering these metaphors in any particular order; all of them are equally important, and every one of them teaches some important thing or the other about Christian life.
Every metaphor shows different aspects of the relationship of a truly surrendered and committed Christian Believer with the Lord Jesus and God, and the related aspects of the Believer’s life and responsibilities. Every metaphor also makes it very clear and evident that no person can become a member of the Lord’s Church through any human works, criteria, notions etc., no matter who he may be or how much he may try to join the Lord’s Church. If anyone joins the Church of the Lord, it will only be according to the will, standards, criteria, and acceptance by the Lord. Other than this anyone may keep saying, doing, and claiming whatever they may; he will never actually be or become a member of the Lord’s Church. Even if he considers himself to be and claims his being a member, sooner or later his actual state will be exposed, and he will be separated out for eternal destruction. Therefore, for everyone who claims himself to be a Christian Believer, now is the time and opportunity to examine and evaluate their relationship with the Lord and its basis, and if there is any doubt, then have it rectified and come into the right relationship with the Lord.
It is essential for everyone who calls himself a Christian, or a Believer, or a Born-Again person to have a proper Biblical understanding of the meaning and implications of “Church.” This is because that person’s association with, or his membership of a particular group, or sect, or denomination, and what the elders and leaders and other members of that group, or sect, or denomination think about him will not in any way affect his relationship with God and his eternal life in heaven. The one and only thing that will determine his relationship with God and favorably impact his eternal life in heaven, as we have repeatedly been saying and emphasizing, is his relationship with the Lord Jesus Christ. The Lord Jesus Christ, in Matthew 22:1-16 spoke a parable about the King’s invitation to the marriage supper of his son, but those invited made excuses and did not come. Then the King asked his servants to go into the roads and the cross-roads of the city, and gather together all that they could find. When the King came into the hall where the supper was being held, he saw there was a person who was without the wedding garments. The King ordered for this person to be cast out into outer darkness, a place of torment. At the conclusion of the parable the Lord made a statement “For many are called, but few are chosen” (Matthew 22:14). That person’s reaching the chamber where the supper was being held was no guarantee that he will be able to partake of the wedding feast as well. When he was found without the wedding garments, he was thrown out.
Today, the Lord’s offer and invitation to come to Him and receive forgiveness of sins is open to everyone in the world, to all of mankind, He is calling everyone (Acts 17:30) There are many in Christendom who think and believe that they have no need of the robes of righteousness that the Lord Jesus gives. They think they are good because of their families and familial religion, righteousness through religious rites, rituals, and ceremonies, good works, their membership of their group, sect, or denomination, and these things will ensure their entry into heaven. But without having put on the robes of righteousness that the Lord Jesus gives, no one will ever be able to enter the Kingdom of God.
Consider some verses to see who will go with the Lord at His coming:
“And He will send His angels with a great sound of a trumpet, and they will gather together His elect from the four winds, from one end of heaven to the other” (Matthew 24:31).
“When the Son of Man comes in His glory, and all the holy angels with Him, then He will sit on the throne of His glory. All the nations will be gathered before Him, and He will separate them one from another, as a shepherd divides his sheep from the goats” (Matthew 25:31-32).
“And then He will send His angels, and gather together His elect from the four winds, from the farthest part of earth to the farthest part of heaven” (Mark 13:27).
“For as in Adam all die, even so in Christ all shall be made alive. But each one in his own order: Christ the first-fruits, afterward those who are Christ's at His coming” (1 Corinthians 15:22-23).
“For the Lord Himself will descend from heaven with a shout, with the voice of an archangel, and with the trumpet of God. And the dead in Christ will rise first” (1 Thessalonians 4:16).
The Bible leaves us in doubt whatsoever that there is a difference between the people of the Lord and the people of the world. Those who try to enter in through their own efforts, those who did not choose to become the people of the Lord while they had the time and opportunity, the Lord will separate them out from amongst His people (Matthew 13:30; 25:31-32) and cast them into eternal destruction. Only those who while on earth chose to become the people of the Lord will be the partakers of the first resurrection at the coming of the Lord, “Blessed and holy is he who has part in the first resurrection. Over such the second death has no power, but they shall be priests of God and of Christ, and shall reign with Him a thousand years” (Revelation 20:6).
If you are a Christian Believer, then, carefully and minutely examine the basis of your relationship with the Lord, rectify anything that needs to be rectified now while you have the time and opportunity, and ensure that you are in fact one of the people of the Lord God, and will be one of those who will be a part of that first resurrection. A little bit of complacency, or procrastination in implementing anything that had to be set right, will make your eternity dark and painful forever.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
Through the Bible in a Year:
Isaiah 28-29
Philippians 3