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रविवार, 28 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई, पवित्र आत्मा, और बपतिस्मा - 5


पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? – भाग 1 इफिसियों 5:18

सामान्य वार्तालाप एवं उपयोग में वाक्यांशभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेके विभिन्न अभिप्राय होते हैं, और इस वाक्यांश के विषय ऐसा ही हम परमेश्वर के वचन बाइबल में भी देखते हैं। इन विभिन्न अभिप्रायों के कुछ उदाहरण हैं:

  • किसी रिक्त स्थान में समा जाना और उसे अपनी उपस्थिति सेभरदेना या परिपूर्ण अथवा ओतप्रोत कर देना। बाइबल में इस अभिप्राय का एक उदाहरण है मरियम द्वारा प्रभु के पाँवों पर इत्र उडेलना, जिसकी सुगंध से घर सुगंधित हो गया (अंग्रेज़ी में filled with the fragrance) अर्थात सुगंध से भर गया। बाइबल से इसी अभिप्राय का एक और उदाहरण है राजा के कहने पर सभी स्थानों से लोगों को लाकर ब्याह के भोज के लिए बैठाना जिससे ब्याह का घर जेवनहारों से भर गया” (मत्ती 22:10) 
  • किसी बात या भावना के वशीभूत होकर कुछ कार्य अथवा व्यवहार करना; जैसे कि 
    • लोगों का प्रभु या उसके शिष्यों के विरुद्ध क्रोध से भर जाना और हानि पहुँचाने का प्रयास करना  (लूका 4:28-29; 6:11; प्रेरितों 5:17; 13:45)
    • आश्चर्यकर्म को देखकर अचरज और भय के वशीभूत हो जाना (लूका 5:26; प्रेरितों 3:10)
    • अत्यधिक आनंदित हो जाना (प्रेरितों 13:52)
  • पवित्र आत्मा को प्राप्त करना (प्रेरितों 9:17)
  • पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से अभूतपूर्व कार्य करना (प्रेरितों 2:4; 4:8, 31; 13:9-11)

इनके अतिरिक्त वाक्यांशभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेके और भी प्रयोग बाइबल में दिए गए हैं, जैसा कि सामान्य भाषा में भी अन्य प्रयोग होते हैं। किन्तु, हमारे संदर्भ के विषय के लिए, बाइबल में कहीं पर भी इस वाक्यांश का अर्थ पवित्र आत्मा से बपतिस्मा प्राप्त करना नहीं दिया गया है; न हीभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेको पवित्र आत्मा से बपतिस्मा प्राप्त करने के समतुल्य बताया गया है, और न ही ऐसा कोई संकेत भी किया गया है। सामान्यतः बाइबल में वाक्यांशभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेका अर्थ और प्रयोग किसी की सामर्थ्य अथवा उपस्थिति के वशीभूत होकर अथवा उससे प्रेरित होकर कुछ अद्भुत या अभूतपूर्व कर पाने के संदर्भ में होता है। पवित्र आत्मा से भर जाना से अभिप्राय है पवित्र आत्मा की सामर्थ्य, उसके नियंत्रण में होकर कार्य करना।

इसके लिए इफिसियों 5:18 “और दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इस से लुचपन होता है, पर आत्मा से परिपूर्ण होते जाओके आधार पर पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाओं को बताने और सिखाने वालों के द्वारा दावा किया जाता है कि पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होने या भर जाने की शिक्षा बाइबल में दी गई है। किन्तु यदि हम बहुधा ज़ोर देकर दोहराई जाने वाली पवित्र आत्मा संबंधी गलत शिक्षाओं के प्रभाव से निकल कर इस वाक्य को साधारण समझ से देखें, और वह भी उसके सही सन्दर्भ में, तो यहाँ असमंजस की कोई बात ही नहीं है। इस वाक्य का सीधा सा और स्पष्ट अर्थ है; इस वाक्य में दाखरस द्वारा मनुष्य को नियंत्रित कर लेने वाले प्रभाव को उदाहरण के समान प्रयोग किया गया है। पौलुस ने इस पद में पवित्र आत्मा की प्रेरणा से जो लिखा है उसे समझने के लिए इस प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है, “जिस प्रकार दाखरस सेपरिपूर्णव्यक्ति का मतवालापन, या लुचपन का व्यवहार प्रकट कर देता है कि वह व्यक्ति उसमें भरे हुए दाखरस के प्रभाव तथा नियंत्रण में है, उसी प्रकार मसीही विश्वासी को अपने आत्मा से भरे हुए यापरिपूर्णहोने को अपने आत्मिक व्यवहार के द्वारा प्रदर्शित और व्यक्त करना है कि वह पवित्र आत्मा से भरा हुआ है, उसके नियंत्रण में हैऔर फिर इससे आगे के पद 19 से 21 में वह पवित्र आत्मा सेभरेहुए होने पर किए जाने वाले अपेक्षित व्यवहार की बातें बताता है।

इस वाक्य में एक और बात पर ध्यान कीजिए, पौलुस ने लिखा है, ‘...परिपूर्ण होते जाओयानि कि यह लगातार होती रहने वाली प्रक्रिया है। अर्थात, इसे यदा-कदा किए जाने वाला कार्य मत समझो वरन लगातार पवित्र आत्मा के प्रभाव और नियंत्रण में बने रहो। इस कथन का न तो यह अर्थ है, और न ही हो सकता है, कि तुम्हें पवित्र आत्मा की कुछ मात्रा बारंबार लेते रहना पड़ेगा जब तक कि तुम उस सेभरनहीं जाते हो; और न ही यह अर्थ है कि क्योंकि पवित्र आत्मा व्यक्ति में से रिस कर निकलता रहता है, इस लिए जब भी ऐसा हो जाए तो उसे फिर सेभरलेने के लिए पर्याप्त मात्रा में उसे ले लो। यह तो कभी हो ही नहीं सकता है, क्योंकि जैसा पहले देखा जा चुका है, पवित्र आत्मा परमेश्वर है, पवित्र त्रिएक परमेश्वर का एक व्यक्तित्व, उसे बांटा नहीं जाता है, वह टुकड़ों या किस्तों में नहीं मिलता है, न ही किसी व्यक्ति में उसे घटाया या बढ़ाया जा सकता है, और वह हर किसी सच्चे मसीही विश्वासी में मात्रा तथा गुणवत्ता में समान ही विद्यमान होता है। क्योंकि यही वचन का सच है तो फिर संभव भी केवल यही है कि व्यक्ति के सच्चे मसीही विश्वास में आते ही जैसे ही पवित्र आत्मा उसे मिला, वह तुरंत ही उससेभर गयायापरिपूर्णभी हो गया। 

इस बात की पुष्टि प्रेरितों 2:3-4 “और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; और उन में से हर एक पर आ ठहरीं। और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ्य दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे” से भी हो जाती है - पवित्र आत्मा उन एकत्रित और प्रतीक्षा कर रहे शिष्यों पर उतरा, साथ ही लिखा है कि वे शिष्य पवित्र आत्मा से भर गए - उन शिष्यों द्वारा पवित्र आत्मा को प्राप्त करना ही पवित्र आत्मा से भर जाना था। उन्हें पवित्र आत्मा से भरने के लिए अलग से कोई प्रयास नहीं करना पड़ा; और साथ ही वहाँ जीतने जन उपस्थिति थे, वे सभी एक साथ ही, समान रूप से पवित्र आत्मा से भर गए, कोई कम कोई अधिक नहीं, या कोई भर गया कोई रह गया नहीं। प्रेरितों 1:4, 5, 8 में प्रभु ने स्पष्ट कर दिया था कि पवित्र आत्मा प्राप्त करना ही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा प्राप्त करना है; और यहाँ पर वचन यह स्पष्ट कर देता है कि पवित्र आत्मा का विश्वासी में आना और उसका पवित्र आत्मा से भर जाना एक ही बात है। अर्थात पवित्र आत्मा का विश्वासी में आना ही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा तथा पवित्र आत्मा से भर जाना है। अब जो पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में उस व्यक्ति में आ गया है, क्योंकि उससे अतिरिक्त, या अधिक, या दोबारा तो किसी को कभी मिल ही नहीं सकता है; पवित्र आत्मा उसमें अपनी संपूर्णता में हमेशा वही, वैसा ही, और उतना ही रहेगा; इसलिए अब तो बस उस व्यक्ति को अपने में विद्यमान पवित्र आत्मा की उपस्थिति को अपने आचरण द्वारा व्यक्त करते रहना है, अपने व्यवहारिक जीवन में पवित्र आत्मा के प्रभाव एवं नियंत्रण को दिखाते रहना है। 

तो इसलिए अब, किसी अन्य की तुलना में, उस व्यक्ति में विद्यमान पवित्र आत्मा के कार्यों और सामर्थ्य के दिखाए जाने में जो भी भिन्नता हो सकती है वह उस व्यक्ति में विद्यमान पवित्र आत्मा कीमात्राके भिन्न होने कारण कदापि नहीं होगी – क्योंकि न तो पवित्र आत्मा की मात्रा और न उसकी गुणवत्ता कभी भी बदल सकती है, और न ही कभी किसी अन्य से भिन्न हो सकती है। किन्तु यह परस्पर भिन्नता केवल उन व्यक्तियों में पवित्र आत्मा के प्रति समर्पण एवं आज्ञाकारिता में बने रहने और इसे अपने व्यवहारिक जीवन में प्रदर्शित करते रहने में भिन्न होने के द्वारा ही हो सकती है। किसी व्यक्ति का यह पवित्र आत्मा के प्रति आज्ञाकारिता एवं समर्पण का व्यवहार एवं आचरण, उस में पवित्र आत्मा कीमात्राका मान अथवा सूचक नहीं है। इस भिन्नता को पवित्र आत्मा की मात्रा के सूचक के रूप में प्रयोग करने या कहने की शिक्षा बाइबल की शिक्षाओं से संगत नहीं है, बल्कि इसका संकेत है कि ऐसी शिक्षाएं देने वाले पवित्र आत्मा के बारे में कितना कम और गलत जानते तथा सिखाते हैं। इस भिन्नता को समझने के बारे में कुछ विस्तार से हम अगले लेख में देखेंगे। 

       यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो यह आपके लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय वचन में दी गई शिक्षाओं को गंभीरता से सीखें, समझें और उनका पालन करें; और सत्य को जान तथा समझ कर ही उचित और उपयुक्त व्यवहार करें, सही शिक्षाओं का प्रचार करें। किसी के भी द्वारा प्रभु, परमेश्वर, पवित्र आत्मा के नाम से प्रचार की गई हर बात को 1 थिस्सलुनीकियों 5:21 तथा प्रेरितों 17:11 के अनुसार जाँच-परख कर, यह स्थापित कर लेने के बाद कि उस शिक्षा का प्रभु यीशु द्वारा सुसमाचारों में प्रचार किया गया है; प्रेरितों के काम में प्रभु के उस प्रचार का निर्वाह किया गया है; और पत्रियों में उस प्रचार तथा कार्य के विषय शिक्षा दी गई है, तब ही उसे स्वीकार करें तथा उसका पालन करें, उसे औरों को सिखाएं या बताएं। आपको अपनी हर बात का हिसाब प्रभु को देना होगा (मत्ती 12:36-37)। जब वचन आपके हाथ में है, वचन को सिखाने के लिए पवित्र आत्मा आपके साथ है, तो फिर बिना जाँचे और परखे गलत शिक्षाओं में फँस जाने, तथा मनुष्यों और उनके समुदायों और उनकी गलत शिक्षाओं को आदर देते रहने के लिए, उन गलत शिक्षाओं में बने रहने के लिए क्या आप प्रभु परमेश्वर को कोई उत्तर दे सकेंगे?

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 33-34  
  • 1 पतरस 5