मेरे जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है? मेरे वयस्क होने तक यह प्रश्न बार-बार मेरे सामने आता रहता था; साथ ही संबंधित प्रश्न भी मुझे परेशान करते थे - यदि मैं परमेश्वर की इच्छा को ना जान पाई तो क्या होगा? यदि मैं परमेश्वर की इच्छा को पहचान ही ना सकूँ तो? मुझे लगता कि परमेश्वर की इच्छा को जानना मानो भूसे के ढेर में छिपी सूईं को ढूँढ़ना है - वह इच्छा छिपी हुई है; उसके समान लगने वाली बातों के कारण अस्पष्ट है; नकली बातों की भरमार उस एक सही बात से कहीं अधिक है; और यह असमंजस मुझे बेचैन करता था।
लेकिन परमेश्वर की इच्छा के प्रति मेरा यह दृष्टिकोण गलत था, क्योंकि परमेश्वर के प्रति मेरा दृष्टिकोण गलत था। हमें इधर-उधर भटकते हुए, व्यर्थ प्रयास करते हुए, अनिश्चित होकर खोजते हुए देखना परमेश्वर को कदापि अच्छा नहीं लगता। वह चाहता है कि हम उसकी इच्छा को जानें; इसीलिए वह अपनी इच्छा को स्पष्ट और सरल बनाकर देता है और इसलिए वह हमें अनेकों-में-से-एक नहीं वरन केवल दो विकल्पों में से एक ही को चुनने कहता है, और ये विकल्प हैं - "जीवन और लाभ" या "मृत्यु और हानि" (व्यवस्थाविवरण 30:15)। इसे और भी सरल बनाते हुए, परमेश्वर कहता है, "जीवन ही को अपना लो" (व्यवस्थाविवरण 30:19)। जीवन को अपनाना, अर्थात परमेश्वर को चुनना और उसके वचन बाइबल का आज्ञाकारी हो जाना।
जब मूसा ने अपनी मृत्यु से पहले इस्त्राएलियों को अंतिम बार संबोधित किया, तो उसने उन से आग्रह किया कि वे सही चुनाव करें और परमेश्वर के सारे वचन को मानने में चौकसी करें, क्योंकि यही उनके लिए जीवन होगा (व्यवस्थाविवरण 32:46-47)। हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा और उसका वचन ही जीवन है; और प्रभु यीशु ही वह शाश्वत, अटल, जीवित वचन है और अनन्त जीवन का स्त्रोत है। परमेश्वर चाहे हमें हर चुनाव को करने का नुस्खा ना भी दे, लेकिन उसने हमारे अनुसरण करने के लिए एक सिद्ध उदाहरण हमें दिया है - प्रभु यीशु मसीह। सही चुनाव करना यदि सरल ना भी लगे, तो भी यदि परमेश्वर का वचन हमारा मार्गदर्शक है और परमेश्वर को महिमा देना हमारा उद्देश्य है, तो परमेश्वर अवश्य ही हमें सदबुद्धि देगा कि हम सही चुनाव कर सकें और उसकी इच्छा के अनुसार जीवन व्यतीत करें। - जूली ऐकैरमैन लिंक
परमेश्वर के मार्गदर्शन का प्रमाण अकसर आगे देखने से नहीं वरन पीछे मुड़कर बीते जीवन पर ध्यान करने से मिलता है।
तब उसने उन से कहा कि जितनी बातें मैं आज तुम से चिताकर कहता हूं उन सब पर अपना अपना मन लगाओ, और उनके अर्थात इस व्यवस्था की सारी बातों के मानने में चौकसी करने की आज्ञा अपने लड़के-बालों को दो। क्योंकि यह तुम्हारे लिये व्यर्थ काम नहीं, परन्तु तुम्हारा जीवन ही है, और ऐसा करने से उस देश में तुम्हारी आयु के दिन बहुत होंगे, जिसके अधिकारी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो। - व्यवस्थाविवरण 32:46-47
बाइबल पाठ: व्यवस्थाविवरण 30:11-20
Deuteronomy 30:11 देखो, यह जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूं, वह न तो तेरे लिये अनोखी, और न दूर है।
Deuteronomy 30:12 और न तो यह आकाश में है, कि तू कहे, कि कौन हमारे लिये आकाश में चढ़कर उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें?
Deuteronomy 30:13 और न यह समुद्र पार है, कि तू कहे, कौन हमारे लिये समुद्र पार जाए, और उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें?
Deuteronomy 30:14 परन्तु यह वचन तेरे बहुत निकट, वरन तेरे मुंह और मन ही में है ताकि तू इस पर चले।
Deuteronomy 30:15 सुन, आज मैं ने तुझ को जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है।
Deuteronomy 30:16 क्योंकि मैं आज तुझे आज्ञा देता हूं, कि अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करना, और उसके मार्गों पर चलना, और उसकी आज्ञाओं, विधियों, और नियमों को मानना, जिस से तू जीवित रहे, और बढ़ता जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में जिसका अधिकारी होने को तू जा रहा है, तुझे आशीष दे।
Deuteronomy 30:17 परन्तु यदि तेरा मन भटक जाए, और तू न सुने, और भटककर पराए देवताओं को दण्डवत करे और उनकी उपासना करने लगे,
Deuteronomy 30:18 तो मैं तुम्हें आज यह चितौनी दिए देता हूं कि तुम नि:सन्देह नष्ट हो जाओगे; और जिस देश का अधिकारी होने के लिये तू यरदन पार जा रहा है, उस देश में तुम बहुत दिनों के लिये रहने न पाओगे।
Deuteronomy 30:19 मैं आज आकाश और पृथ्वी दोनों को तुम्हारे साम्हने इस बात की साक्षी बनाता हूं, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिये तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें;
Deuteronomy 30:20 इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानों, और उस से लिपटे रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घ जीवन यही है, और ऐसा करने से जिस देश को यहोवा ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजों को देने की शपथ खाई थी उस देश में तू बसा रहेगा।
एक साल में बाइबल:
- 1 शमूएल 4-6
- लूका 9:1-17