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सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

परमेश्वर कार्यरत है

हम नए साल में हमेशा कुछ नया चाहते हैं। इसीलिये जनवरी की पहली तारिख को हम अपने भोजन, व्ययाम-कार्यक्रम और कुछ नए पसंदीदा कार्यों के विष्य में निर्ण्य लेते हैं। परन्तु अक्सर एक महीन बीतते बीतते हम अपनी पुरानी आदतों पर वापस लौट जाते हैं। शायद यह इसलिए है कि हम जितने बड़े बदलाव चाहते हैं, हम में उसके लिये आवश्यक सामर्थ और इच्छा-शक्ति नहीं होती।

कई मसीहियों ने अपने जीवन में परिवर्तन और आत्मिक उन्न्ति का निर्ण्य किया होगा, परन्तु उन्हें पूरा करने की इच्छा और सामर्थ के अभाव के कारण मिली असफलता से निराश हुए हैं।

पौलूस फिलिप्पियों के नाम अपनी पत्री में इस समस्या के विष्य में बात करता है। वह उन्हें प्रोत्साहन देता है कि वे अपने उद्धार को अपने जीवन में, परमेश्वर के भय में डरते और कांपते हुए, कार्यरत करें (२:१२)। पौलूस कहता है वे ऐसा करने में अकेले नहीं छोड़े जाएंगे, परमेश्वर उन्हें इसे करने की शक्ती देगा। सबसे पहले वह उनकी इच्छाओं के क्षेत्र को प्रभावित करेगा। वह उनके अन्दर काम करेगा और उन्हें बदलने एवं बढ़ने की इच्छा देगा, और जीवन में वास्त्विक परिवर्तन लाने कि सामर्थ भी देगा (पद १३)।

आत्मिक प्रगति पाने के हमारे इस संघर्ष में परमेश्वर ने हमें अकेला नहीं छोड़ा है। वह हमारी सहायता करता है कि हम उसके आज्ञाकारी बनने की चाह रखें, और फिर वह हमें सामर्थ भी देता है कि उसकी इच्छा पूरी कर सकें। उसकी इच्छा-पूर्ति करने की इच्छा रखने के लिये उससे सहायता मांगें। - मार्विन विल्लियम्स


जो सामर्थ हमें बढ़ने को विवश करती है, वह हमारे अन्दर रहने वाली पवित्र आत्मा से आती है।

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:१२-१८



परमेश्वर ही है, जिसने अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातें करने का प्रभाव डाला है। - फिलिप्पियों २:१३



एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन २७, २८
  • मत्ती २१:१-२२