१९७० के दशक में उस समय के प्रसिद्ध गायक दल बीटल्स (The Beatles) ने यह दिखाने के उद्देश्य से कि उनके संगीत की रचना कैसे होती है, अपने दल के सदस्यों और उनके कार्यों पर एक चलचित्र (documentary) बनाना आरंभ किया। परन्तु जब चलचित्र बना तब बजाए यह दिखाने के कि उनके संगीत की रचना कैसे होती थी, जो सामने आया वह था उनमें से प्रत्येक का स्वार्थ और आपसी कलह। दल का हर सदस्य दल की उन्नति के लिए नहीं वरन अपनी ही उन्नति की चाह और महत्वकांक्षाओं से भरा हुआ था, और अपने स्वार्थ में होकर ही कार्य कर रहा था। इस चलचित्र के बनने के कुछ समय पश्चात ही यह प्रसिद्ध संगीत दल टूट कर बिखर गया; कारण था स्वार्थ से उपजा आपसी विवाद और टूटी मित्रता।
स्वार्थ, मानव संबंधों को बिगाड़ने वाली एक बहुत पुरानी समस्या रही है। प्रथम ईसवीं में प्रेरित पौलुस को भय था कि फिलिप्पी की मण्डली भी इसी व्याधि का शिकार न बन जाए। वह भली भांति जानता था कि जब व्यक्तिगत उन्नति की भावना, मण्डली की सामूहिक उन्नति की लालसा पर भारी पड़ने लगती है तो शीघ्र ही लोगों के रवैये भी एक दूसरे के प्रति फूट और द्वेष के हो जाते हैं, और मण्डली पतन की ओर चल निकलती है।
इस खतरनाक प्रवृति को पनपने से रोकने के लिए पौलुस ने उन्हें अपनी पत्री में लिखा: "विरोध या झूठी बड़ाई के लिए कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन दूसरों के हित की भी चिन्ता करे" (फिलिप्पियों २:३-४)।
आज यदि आपके जीवन पर एक चलचित्र बनाया जाए तो वह क्या प्रगट करेगा; स्वार्थी या निस्वार्थी जीवन? हम मसीही विश्वासियों को विशेषकर इस बात में बहुत सावधान रहना है और अपने प्रभु यीशु के जीवन के अनुरूप अपने जीवनों में भी औरों के लिए निस्वार्थ चिंता प्रगट करनी है। निस्वार्थ भावना द्वारा ही हम चर्च और परिवारों में टूटना और बिखरना रोक सकेंगे और सामूहिक उन्न्ति की राह पर अग्रसर हो सकेंगे। - बिल क्राउडर
जो मन दुसरों के हित की भावना से भरा रहता है वह कभी स्वार्थ द्वारा नष्ट नहीं हो सकता।
विरोध या झूठी बड़ाई के लिए कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। - फिलिप्पियों २:३
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:१-११
Php 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
Php 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
Php 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिए कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
Php 2:4 हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।
Php 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।
Php 2:6 जिस ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।
Php 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
Php 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
Php 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।
Php 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
Php 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिए हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
एक साल में बाइबल:
- १ इतिहास १३-१५
- यूहन्ना ७:१-२७