नक्शे बनाने वालों को गोलाकार धरती को सपाट नक्शे पर दिखाने के लिये विकृतियों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि इस समस्या का कोई सिद्ध उपाय नहीं है, इसलिये कुछ नक्शों में ग्रीनलैंड औस्ट्रेलिया से बड़ा दिखता है।
मसीही विश्वासियों को भी ऐसे ही कुछ बातों में बिगड़े स्वरूपों का सामना करना पड़ता है। जब हम भौतिक संसार की सीमाओं में बंधे, आत्मिक बातों को समझने का प्रयास करते हैं तो हो सकता है कि हम छोटी बातों को बढ़ा-चढ़ा कर और प्रधान बातों के महत्व को कम आंक कर देखते हों।
नए नियम में बहुत बार लोकप्रीय उपदेशकों की शिक्षाओं को परमेश्वर के वचन की शिक्षा से अधिक महत्व देने की विकृत प्रवृति के बारे में सिखाया गया है। पौलुस प्रेरित ने बताया कि परमेश्वर की "आज्ञा का सारांश यह है, कि शुद्ध मन और अच्छे विवेक, और कपट रहित विश्वास से प्रेम उत्पन्न हो। इन को छोड़कर कितने लोग फिरकर बकवाद की ओर भटक गए हैं" ( १ तिमुथियुस १:५, ६)। सही उपदेश परमेश्वर के वचन को विकृत नहीं करता और न ही परमेश्वर की मण्डली में फूट डालता है। इसके विपरीत, सही शिक्षा द्वारा विश्वासियों की एकता बढ़ती है और मसीह की देह अर्थात मण्डली की उन्नति होती है, जिससे मण्डली का प्रत्येक सदस्य एक दुसरे की देख रेख करने (१ कुरिन्थियों १२:२५) और संसार में परमेश्वर के कार्य को बढ़ाने में उपयोगी होता है।
परमेश्वर को समझ पाने के सभी मानवीय प्रयास अपर्याप्त हैं और मानवीय समझ के सहारे परमेश्वर को समझना हमारी प्राथमिकताओं को बिगाड़ सकता है, हमें असमंजस में डाल सकता है और हमारी आत्मिक बातों की समझ को टेढ़ा कर सकता है। परमेश्वर के सत्य को विकृत करने से बचने के लिये हमें किसी मनुष्य की समझ पर नहीं वरन परमेश्वर ही पर आधारित रहना चाहिये - "इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो" (१ कुरिन्थियों २:५)। उसका वायदा है कि "पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है, और उस को दी जाएगी" (याकूब १:५), "मुझ से प्रार्थना कर और मैं तेरी सुनकर तुझे बढ़ी-बड़ी और कठिन बातें बताऊंगा जिन्हें तू अभी नहीं समझता" (यर्मियाह ३३:३)। - जूली ऐकैरमैन लिंक
इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो। - १ कुरिन्थियों २:५
बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों २:१-१६
और हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया।
क्योंकि मैं ने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं।
और मैं निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथरता हुआ तुम्हारे साथ रहा।
और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभाने वाली बातें नहीं, परन्तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था।
इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो।
फिर भी सिद्ध लोगों में हम ज्ञान सुनाते हैं: परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होने वाले हाकिमों का ज्ञान नहीं।
परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिये ठहराया।
जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते।
परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखा, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ीं वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपनेके प्रेम रखने वालों के लिये तैयार की हैं।
परन्तु परमेश्वर ने उन को अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया, क्योंकि आत्मा सब बातें, वरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है।
मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता, केवल मनुष्य की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेवर का आत्मा।
परन्तु हम ने संसार की आत्मा नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।
जिन को हम मनुष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परन्तु आत्मा की सिखाई हुई बातों में, आत्मिक बातें आत्मिक बातों से मिला मिलाकर सुनाते हैं।
परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उस की दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उन की जांच आत्मिक रीति से होती है।
आत्मिक जन सब कुछ जांचता है, परन्तु वह आप किसी से जांचा नहीं जाता।
क्योंकि प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखलाए परन्तु हम में मसीह का मन है।
एक साल में बाइबल:
मसीही विश्वासियों को भी ऐसे ही कुछ बातों में बिगड़े स्वरूपों का सामना करना पड़ता है। जब हम भौतिक संसार की सीमाओं में बंधे, आत्मिक बातों को समझने का प्रयास करते हैं तो हो सकता है कि हम छोटी बातों को बढ़ा-चढ़ा कर और प्रधान बातों के महत्व को कम आंक कर देखते हों।
नए नियम में बहुत बार लोकप्रीय उपदेशकों की शिक्षाओं को परमेश्वर के वचन की शिक्षा से अधिक महत्व देने की विकृत प्रवृति के बारे में सिखाया गया है। पौलुस प्रेरित ने बताया कि परमेश्वर की "आज्ञा का सारांश यह है, कि शुद्ध मन और अच्छे विवेक, और कपट रहित विश्वास से प्रेम उत्पन्न हो। इन को छोड़कर कितने लोग फिरकर बकवाद की ओर भटक गए हैं" ( १ तिमुथियुस १:५, ६)। सही उपदेश परमेश्वर के वचन को विकृत नहीं करता और न ही परमेश्वर की मण्डली में फूट डालता है। इसके विपरीत, सही शिक्षा द्वारा विश्वासियों की एकता बढ़ती है और मसीह की देह अर्थात मण्डली की उन्नति होती है, जिससे मण्डली का प्रत्येक सदस्य एक दुसरे की देख रेख करने (१ कुरिन्थियों १२:२५) और संसार में परमेश्वर के कार्य को बढ़ाने में उपयोगी होता है।
परमेश्वर को समझ पाने के सभी मानवीय प्रयास अपर्याप्त हैं और मानवीय समझ के सहारे परमेश्वर को समझना हमारी प्राथमिकताओं को बिगाड़ सकता है, हमें असमंजस में डाल सकता है और हमारी आत्मिक बातों की समझ को टेढ़ा कर सकता है। परमेश्वर के सत्य को विकृत करने से बचने के लिये हमें किसी मनुष्य की समझ पर नहीं वरन परमेश्वर ही पर आधारित रहना चाहिये - "इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो" (१ कुरिन्थियों २:५)। उसका वायदा है कि "पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है, और उस को दी जाएगी" (याकूब १:५), "मुझ से प्रार्थना कर और मैं तेरी सुनकर तुझे बढ़ी-बड़ी और कठिन बातें बताऊंगा जिन्हें तू अभी नहीं समझता" (यर्मियाह ३३:३)। - जूली ऐकैरमैन लिंक
सही गलत की उचित पहचान करने के लिये हर बात को परमेश्वर के सत्य की ज्योति के सम्मुख लाईये।
इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो। - १ कुरिन्थियों २:५
बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों २:१-१६
और हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया।
क्योंकि मैं ने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं।
और मैं निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथरता हुआ तुम्हारे साथ रहा।
और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभाने वाली बातें नहीं, परन्तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था।
इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो।
फिर भी सिद्ध लोगों में हम ज्ञान सुनाते हैं: परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होने वाले हाकिमों का ज्ञान नहीं।
परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिये ठहराया।
जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते।
परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखा, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ीं वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपनेके प्रेम रखने वालों के लिये तैयार की हैं।
परन्तु परमेश्वर ने उन को अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया, क्योंकि आत्मा सब बातें, वरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है।
मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता, केवल मनुष्य की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेवर का आत्मा।
परन्तु हम ने संसार की आत्मा नहीं, परन्तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।
जिन को हम मनुष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परन्तु आत्मा की सिखाई हुई बातों में, आत्मिक बातें आत्मिक बातों से मिला मिलाकर सुनाते हैं।
परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उस की दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उन की जांच आत्मिक रीति से होती है।
आत्मिक जन सब कुछ जांचता है, परन्तु वह आप किसी से जांचा नहीं जाता।
क्योंकि प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखलाए परन्तु हम में मसीह का मन है।
एक साल में बाइबल:
- यशायाह १७-१९
- इफिसियों ५:१७-३३