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शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

मैं कर सकता हूँ

बच्चों की एक कहानी है, एक छोटे ट्रेन ईंजन के बारे में। एक चढ़ाई पर आकर उसने ट्रेन को ऊपर ले जाने की ठान ली और अपने अप से कहता गया ’मैं सोचता हूँ कि मैं यह कर सकता हूँ’ और चढ़ता गया। थोड़ी देर में उसका विचार निश्चय में बदल गया और फिर उसने कहना शुरू कर दिया ’मैं जानता हूँ कि मैं कर सकता हूँ।’

कोई इस बात से इन्कार नहीं करेगा कि मसीह के अनुयायीयों को सकारात्मक सोच के साथ जीवन निर्वाह करना है। किंतु क्या कभी आप अपने आप को अपनी योग्यताओं और सामर्थ पर अधिक और आप में बसने वाले परमेश्वर के आत्मा की सामर्थ पर कम भरोसा रखते हुए पाते हैं?

यूहन्ना १५ में प्रभु यीशु ने समझाया कि उसके अनुयायीयों को पूर्ण्तयाः उस पर निर्भर रहना चाहिये, उसने कहा " मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो, जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्‍योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते" (यूहन्ना १५:५)। पौलुस ने स्मरण दिलाया कि "जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं" (फिलिप्पियों ४:१३); और "कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्‍व में सामर्थ पाकर बलवन्‍त होते जाओ" (इफिसियोम ३:१६) जिससे "...कि यह असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर ही की ओर से ठहरे" (२ कुरिन्थियों ४:७)।

परमेश्वर की उपलब्ध सामर्थ के द्वारा, उसमें होकर हम वह सब कुछ कर सकते हैं जो वह हमसे चाहता है। हम अपना भरोसा अपनी सीमित योग्यताओं और सामर्थ पर नहीं, वरन परमेश्वर की असीमित सामर्थ और वाचाओं पर रख सकते है।

इसलिये आज अपनी हर परिस्थिति और कठिनाई में, हमें उपलब्ध उस असीम सामर्थ के आधार पर, उस छोटे ट्रेन इंजन से कहीं अधिक दृढ़ता से हम कह सकते हैं "मैं जानता हूँ मैं कर सकता हूँ; मैं जानता हूँ मैं कर सकता हूँ - प्रभु यीशु के कारण।" - सिंडी हैस कैस्पर


परमेश्वर के काम परमेश्वर की सामर्थ से ही पूरे होते हैं

अब जो ऐसा सामर्थी है, कि हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हम में कार्य करता है - इफीसियों ३:२०


बाइबल पाठ: इफीसियों ३:१४-२१

मैं इसी कारण उस पिता के साम्हने घुटने टेकता हूं,
जिस से स्‍वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है।
कि वह अपनी महिमा के धन के अनुसार तुम्हें यह दान दे, कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्‍व में सामर्थ पाकर बलवन्‍त होते जाओ।
और विश्वास के द्वारा मसीह तुम्हारे हृदय में बसे कि तुम प्रेम में जड़ पकड़ कर और नेव डाल कर।
सब पवित्र लागों के साथ भली भांति समझने की शक्ति पाओ कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई कितनी है।
और मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है, कि तुम परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाओ।
अब जो ऐसा सामर्थी है, कि हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हम में कार्य करता है,
कलीसिया में, और मसीह यीशु में, उस की महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १०५, १०६ १
  • कुरिन्थियों ३

1 टिप्पणी:

  1. आप इसा महिसा जी के वचन को परमेश्वर का वचन ही क्यों कहते हैं.

    परमेश्वर शब्द ... भारतीय संस्कृति का है. और क्रिश्चियन पश्चिम के. कैसे ये लोग इस संस्कृति को आत्मसात कर के, इसी संस्कृति से खिलवाड़ कर रहे हैं........ ताजुब होता है. पर पश्चिम के पैसे का असर देख कर चुप हो जाते हैं.

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