ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

आवश्यक्ताएं या अभिलाषाएं?

लेखक और वक्ता चार्ल्स एलन ने अपनी पुस्तक God's Psychiatry में एक रोचक सत्य कथा लिखी है: जब दूसरा विश्वयुद्ध अपनी समाप्ति के निकट था, तब "मित्र देशों" की सेनाओं ने बहुत से अनाथ और भूखे बच्चों को विशेष कैम्पों में एकत्रित कर लिया, जहां उनकी अच्छे से देखरेख होती थी और भरपूरी से खाने को मिलता था। इतनी अच्छी देखभाल और भोजन के बावजूद भी उनमें से बहुतेरे बेचैन रहते और रात को ठीक से सो नहीं पाते थे। वे घबराये हुए और भयभीत प्रतीत होते थे। एक मनोवैज्ञनिक ने इसका कारण समझा और सुझाव दिया जो बहुत कारगर रहा। उसने कहा कि रात को सोने के लिये लेटते समय प्रत्येक बच्चे को ब्रैड का एक टुकुड़ा पकड़ने को दिया जाए। उन्हें इसे खाना नहीं था, केवल पकड़े रहना था और पकड़े पकड़े ही सो जाना था। हाथ में पकड़ी हुई रोटी के टुकड़े ने अद्भुत नतीजे दिखाए। बच्चे निष्चिंत होकर सो सके क्योंकि उन्हें अब विश्वास था कि उनके पास सवेरे के लिये रोटी है और कल उन्हें भूखा नहीं रहना होगा।

हम में से अधिकांश के पास आज और कल के लिये भी काफी भोजन और जीव्न की सभी आवश्यक्ताएं हैं। फिर भी उन बच्चों की तरह हम मन में बेचैन और परेशान रहते हैं। क्यों? या तो हम परमेश्वर की विश्वासयोग्यता पर भरोसा नहीं रखते, या हमें लगता है कि जो कुछ हमारे पास है वह हमारी आवश्यक्ताओं के लिये काफी नहीं है।

हमने अभिलषाओं और आवश्यक्ताओं को एक दूसरे से बदल डाला है - अब हमें हमारी अभिलाषाएं ही आवश्यक्ताएं प्रतीत होती हैं, और उनकी पूर्ति की चिंता हमें बेचैन रखती है।

भजन ३७:४ "यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा" का परमेश्वर का वायदा भी इस बात को नहीं सिखाता कि परमेश्वर हमारी हर इच्छा को पूरी करने का आश्वासन देता है। यह वायदा एक सशर्त वायदा है - पहले हमें परमेश्वर यहोवा को अपने सुख का मूल मानना है, अर्थात परमेश्वर पर पूरा विश्वास, उससे पूरा प्रेम, उसकी पूरी आज्ञाकारिता; तब ही वह हमारी इच्छाओं को पूरा भी करेगा, क्योंकि तब हमारी इच्छाएं भी स्वतः ही परमेश्वर की इच्छाओं के अनुरूप हो जाएंगीं। सच्ची सन्तुष्टि इसी से मिलती है। - डेनिस डी हॉन


सच्ची सन्तुष्टी बड़ी दौलत रखने से नहीं अपितु छोटी अभिलाषाएं रखने से मिलती है।

यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा। - भजन ३७:४


बाइबल पाठ: लूका १२:२२-३४

फिर उस [प्रभु यीशु] ने अपने चेलों से कहा: इसलिये मैं तुम से कहता हूं, अपने प्राण की चिन्‍ता न करो, कि हम क्‍या खाएंगे? न अपने शरीर की कि क्‍या पहिनेंगे?
क्‍योंकि भोजन से प्राण, और वस्‍त्र से शरीर बढ़कर है।
कौवों पर ध्यान दो, वे न बोते हैं, न काटते, न उन के भण्‍डार और न खत्ता होता है, तौभी परमेश्वर उन्‍हें पालता है तुम्हारा मूल्य पक्षियों से कहीं अधिक है।
तुम में से ऐसा कौन है, जो चिन्‍ता करने से अपनी अवस्था में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है?
इसलिये यदि तुम सब से छोटा काम भी नहीं कर सकते, तो और बातों के लिये क्‍यों चिन्‍ता करते हो?
सोसनों के पौधों पर ध्यान करो कि वे कैसे बढ़ते हैं; वे न परिश्र्म करते, न कातते हैं: तौभी मैं तुम से कहता हूं, कि सुलैमान भी, अपने सारे वैभव में, उन में से किसी एक के समान वस्‍त्र पहिने हुए न था।
इसलिये यदि परमेश्वर मैदान की घास को जो आज है, और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा पहिनाता है तो हे अल्प विश्वासियों, वह तुम्हें क्‍यों न पहिनाएगा?
और तुम इस बात की खोज में न रहो, कि क्‍या खाएंगे और क्‍या पीएंगे, और न सन्‍देह करो।
क्‍योंकि संसार की जातियां इन सब वस्‍तुओं की खोज में रहती हैं: और तुम्हारा पिता जानता है, कि तुम्हें इन वस्‍तुओं की आवश्यकता है।
परन्‍तु उसके राज्य की खोज में रहो, तो ये वस्‍तुऐं भी तुम्हें मिल जाएंगी।
हे छोटे झुण्‍ड, मत डर क्‍योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे।
अपनी संपत्ति बेचकर दान कर दो और अपने लिये ऐसे बटुए बनाओ, जो पुराने नहीं होते, अर्थात स्‍वर्ग पर ऐसा धन इकट्ठा करो जो घटता नहीं और जिस के निकट चोर नहीं जाता, और कीड़ा नहीं बिगाड़ता।
क्‍योंकि जहां तुम्हारा धन है, वहां तुम्हारा मन भी लगा रहेगा।

एक साल में बाइबल:
  • लैव्यवस्था ८-१०
  • मत्ती २५:३१-४६

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें