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रविवार, 9 अप्रैल 2017

पहचान


   हम समय समय पर ऐसे लोगों के बारे में पढ़ते-सुनते रहते हैं जो इस बात से आहत रहते हैं कि लोग उन्हें वह आदर और ओहदा नहीं देते हैं जिसके योग्य वे अपने आप को समझते हैं। इस बात से अप्रसन्न और क्रोधित होकर कुछ तो औरों पर यह कहकर चिल्लाते हैं, "क्या तुम जानते भी हो कि मैं कौन हूँ?" यदि आप को किसी से यह बात कहनी पड़े, तो इससे संबंधित एक और जानी पहचानी बात स्मरण हो आती है, "यदि आपको लोगों को यह बताना पड़ता है कि आप कौन हैं, तो संभवतः आप वह नहीं हैं जो आप अपने आप को समझते हैं!" ऐसे घमण्ड और अपनी दृष्टि में महत्वपूर्ण होने के बिलकुल विपरीत प्रभु यीशु मसीह का चरित्र है।

   पृथ्वी पर अपने जीवन और सेवकाई के अन्त समय के निकट जब प्रभु यीशु ने यरुशलेम में प्रवेश किया तो लोग उन की जयजयकार के नारे लगाने लगे (मत्ती 21:7-9)। जब नगर के लोगों ने उन नारे लगाने वालों से पूछा कि "यह कौन है?" तो उस भीड़ ने उत्तर दिया, "...यह गलील के नासरत का भविष्यद्वक्ता यीशु है" (मत्ती 21:10-11)। प्रभु यीशु अपने लिए कोई विशेष अधिकार या सम्मान माँगते हुआ नहीं आए थे; वरन वह दीन और नम्र बनकर आए ताकि अपने पिता परमेश्वर की इच्छानुसार अपने प्राण सारे संसार के सभी लोगों के उद्धार और पाप क्षमा के लिए बलिदान करें।

   जो बातें प्रभु यीशु ने कहीं और जो कार्य उन्होंने किए, उनसे उसे स्वतः ही उन्हें समाज के सभी लोगों से आदर मिला। असुरक्षित अनुभव करते रहने वाले शासकों और संसार के लोगों के समान उन्होंने कभी यह माँग नहीं रखी कि लोग उनका आदर करें। उनके द्वारा अपना बलिदान देने और उस बलिदान के समय सबसे अधिक दुःख उठाने का उनका समय, उनके जीवन का सबसे निम्न बिंदु था जहाँ वे निर्बल और असफल प्रतीत हो रहे थे। परन्तु प्रभु यीशु की पहचान और उद्देश्य की सामर्थ ने उन्हें इस कठिन और पीड़ादायक अन्धकारपूर्ण घड़ी से भी आदर एवं महिमा के साथ निकाला, और उनकी मृत्यु तथा पुनरुत्थान सारे संसार के सभी लोगों के लिए परमेश्वर के प्रेम और अनन्त जीवन का मार्ग बन गई; सारे संसार के इतिहास में सदा के लिए अभूतपूर्व और कभी भी किसी के भी द्वारा नहीं दोहराई जा सकने वाली घटना बन गई, बलिदान का ऐसा उत्कृष्ठ उदाहरण जो अनुपम था, है और सदा रहेगा।

   आज अपने कार्य के द्वारा प्रभु यीशु की संसार में अलग ही पहचान है, ऐसी पहचान जो हमारे जीवन और उपासना को पाने के सर्वथा योग्य हैं; उनकी इस पहचान को क्या आप समझते तथा स्वीकारते हैं? - डेविड मैक्कैसलैंड


यदि एक बार आपने प्रभु यीशु को उनकी वास्तविकता में पहचान लिया
 तो आप फिर कभी पहले के समान नहीं रह सकते हैं। - ओस्वॉल्ड चैम्बर्स

और जो भीड़ आगे आगे जाती और पीछे पीछे चली आती थी, पुकार पुकार कर कहती थी, कि दाऊद की सन्तान को होशाना; धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है, आकाश में होशाना। जब उसने यरूशलेम में प्रवेश किया, तो सारे नगर में हलचल मच गई; और लोग कहने लगे, यह कौन है? - मत्ती 21:9-10

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 2:1-11
Philippians 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्‍ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है। 
Philippians 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो। 
Philippians 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। 
Philippians 2:4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्‍ता करे। 
Philippians 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो। 
Philippians 2:6 जिसने परमेश्वर के स्‍वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। 
Philippians 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्‍वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। 
Philippians 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली। 
Philippians 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है। 
Philippians 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। 
Philippians 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 शमूएल 13-14
  • लूका 10:1-24


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