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मंगलवार, 11 जनवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया या मण्डली - उद्देश्य


प्रभु यीशु की कलीसिया में होकर पाप से पूर्व की स्थिति बहाल कर रहा है

  पिछले लेखों में हमने मत्ती 16:18 में प्रभु के कहे वाक्य - “...मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा...” से देखा है कि कलीसिया कोई स्थान अथवा भवन नहीं है, वरन उन लोगों का समूह है जो प्रभु यीशु को जगत का एकमात्र उद्धारकर्ता स्वीकार करते हैं, और इस आधार पर, उन्होंने प्रभु यीशु से पापों की क्षमा और उद्धार प्राप्त करके अपने आप को पूर्णतः प्रभु को समर्पित किया है। प्रभु यीशु कहे गए इस वाक्यांश से हमने प्रभु की इस कलीसिया के विषय तीन बातें देखीं - पहली प्रभु यीशु ही अपने लोगों को एकत्रित कर रहा है, और उसके लोगों में किसी अन्य आधार पर कोई भी व्यक्ति सम्मिलित नहीं रह सकता है, प्रभु उन्हें पृथक कर देता है, या कर देगा। दूसरी बात उसके लोगों की देखभाल और रख-रखाव के लिए प्रभु की इस कलीसिया का संपूर्ण स्वामित्व प्रभु यीशु ही के पास है; प्रभु ने कुछ लोगों को कलीसिया की कुछ ज़िम्मेदारियां अवश्य दी हैं, किन्तु स्वामी वह स्वयं ही है, और अपने लोगों की जरा से भी हानि या उनके प्रति कोई भी लापरवाही उसे स्वीकार नहीं है। और तीसरी बात है कि प्रभु की कलीसिया अभी निर्माणाधीन है, प्रभु यीशु ही उसे बना रहा है; उसकी कलीसिया में कौन कहाँ पर किस प्रकार से उपयोग होगा, यह केवल प्रभु यीशु ही निर्धारित एवं कार्यान्वित करता है। अर्थात प्रभु यीशु की कलीसिया से संबंधित हर बात पूर्णतः प्रभु ही के नियंत्रण में है, किसी भी मनुष्य या मानवीय संस्था का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है, चाहे इस संसार में उस मनुष्य अथवा संस्था का कोई भी स्थान आया सम्मान क्यों न हो। 

प्रभु यीशु ने अपने स्वर्गारोहण से पहले अपने शिष्यों को जो महान आज्ञा दी (मत्ती 28:18-20; मरकुस 16:15-19; लूका 24:47; प्रेरितों 1:8), वह सारे संसार के सभी लोगों, सभी जातियों में जा कर पापों से पश्चाताप करने और यीशु को प्रभु स्वीकार करने के द्वारा प्रभु यीशु में पापों की क्षमा और उद्धार के सुसमाचार प्रचार करने के लिए थी।  अर्थात, प्रभु का दृष्टिकोण केवल किसी एक स्थान विशेष के लोगों के लिए नहीं है, वरन सारे संसार के सभी लोगों के लिए है, इसलिए प्रभु यीशु की कलीसिया किसी स्थान अथवा जाति विशेष तक ही सीमित नहीं है, वरन विश्वव्यापी है। प्रभु संसार के सभी स्थानों और लोगों में से अपने विश्वासियों को एकत्रित करके अपनी विश्वव्यापी कलीसिया बनाने में लगा हुआ है। हम मसीही विश्वासी सुसमाचार प्रचार के द्वारा प्रभु के इस कार्य में उसके सहायक हैं - सुसमाचार प्रचार के द्वारा लोगों को प्रभु के पास लाते हैं, प्रभु से जोड़ते हैं; और जो सच्चे मन तथा पूर्ण समर्पण से प्रभु के साथ जुड़ता है, उसे अपना उद्धारकर्ता स्वीकार करता है और अपना जीवन उसे समर्पित करता है, प्रभु उसे अपनी कलीसिया में उसके लिए उपयुक्त और उचित स्थान निर्धारित करके, उसे उस स्थान और दायित्व के निर्वाह के लिए तैयार करता है, प्रयोग करता है। किन्तु साथ ही प्रभु यीशु प्रत्येक व्यक्ति के पापों से पश्चाताप और उसके प्रति उस व्यक्ति के समर्पण की वास्तविक मनोदशा भी भली-भांति जानता है। इसलिए उसकी कलीसिया में वही बना रह सकता है, और उपयोगी हो सकता है जो प्रभु के मानकों पर सही होता है; अन्य सभी लोग देर-सवेर, अथवा जगत के अंत के समय के पृथक किए जाने में कलीसिया से बाहर निकाल कर अनन्त विनाश में भेज दिए जाएंगे। इसलिए हम सभी के लिए अभी यह अवसर है कि कलीसिया में अपने होने के विषय अपनी सही जाँच-परख कर लें, और यदि कोई सुधार लाना है तो उसे अभी समय रहते कर लें, क्योंकि किसके पास समय और अवसर कब तक है कोई नहीं जानता है; इस निर्णय को टालना बहुत हानिकारक, अनन्तकाल के लिए पीड़ादायक हो सकता है (इब्रानियों 3:7-19) 

इस कलीसिया को बनाने का, हम मनुष्यों को अपने साथ इतनी बारीकी से जाँच-परख कर, जोड़ने के पीछे, प्रभु यीशु का क्या उद्देश्य है, क्या उपक्रम है? इसे समझने के लिए हमें सृष्टि के आरंभ के समय में, अदन की वाटिका में घटित हुई पहले पाप की घटना पर जाना पड़ेगा, जब शैतान ने हव्वा को बहका कर आदम और हव्वा से परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता करवाई, और पाप को सृष्टि में प्रवेश मिल गया, पाप के दुष्प्रभाव ने सारी सृष्टि को बिगाड़ दिया (रोमियों 8:19-22)। इस दुखद घटना से पूर्व, मनुष्य निष्पाप दशा में परमेश्वर के साथ संगति और सहभागिता रखता था, जो पाप के कारण टूट गई। मनुष्य के साथ इसी संगति और सहभागिता को पुनः स्थापित करने, शैतान द्वारा मनुष्यों में बोए गए पाप केबीजको निकाल बाहर करने, और मनुष्य को उसका वह आदर और स्थान बहाल करने के लिए जो परमेश्वर ने उसकी रचना करने के समय उसे दिया था (उत्पत्ति 1:28), प्रभु परमेश्वर अपने लोगों अपने साथ एकत्रित कर रहा है। इसीलिए वह इतनी बारीकी से देखभाल कर, स्वयं ही इस पूरी प्रक्रिया को पूरा कर रहा है, जिससे शैतान का कोई अंश भी उसमें न रह जाए। उसके इस उद्देश्य और कार्य-विधि को हम बाइबल के नए नियम मेंकलीसियाके लिए दिए गए विभिन्न रूपकों (metaphors) के द्वारा समझ सकते हैं; जिन्हें हम अगले लेख से देखना आरंभ करेंगे।

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो एक बार फिर आप से आग्रह है कि अभी समय रहते अपनी वास्तविक स्थिति को जाँच-समझ लें। किसी भी परिवार विशेष में जन्म लेने, किसी भी डिनॉमिनेशन के नियम, रीतियाँ, प्रथाएं, और त्यौहार-व्यवहार आदि का निर्वाह करने, अपने परिवार के लोगों के कितनी भी पीढ़ियों से मसीही या ईसाई होने या अभी वर्तमान में भी किसी मसीही सेवकाई में लगे होने, आदि बातों के द्वारा कोई भी प्रभु की कलीसिया का अंग नहीं बनता है। यह केवल व्यक्तिगत रीति से, समझते-बूझते हुए, अपने पापों से पश्चाताप करने और यीशु को प्रभु स्वीकार करके अपना जीवन उसे समर्पित कर देने, और फिर केवल उसी की आज्ञाकारिता में जीवन जीने से होता है (प्रेरितों 17:30-31; रोमियों 10:9-10)। यदि जरा सा भी संदेह है, तो आपसे विनम्र निवेदन है कि अभी इस कार्य को कर लें, कदापि कोई आनाकानी न करें, इस निर्णय को टालें नहीं।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • उत्पत्ति 27-28     
  • मत्ती 8:18-34