भ्रामक शिक्षाओं के
स्वरूप - सुसमाचार के विषय गलत शिक्षाएं (5 ) - सुसमाचार को
अप्रभावी - कैसे? (2)
हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि
बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता
से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं (इफिसियों 4:14)। इन भ्रामक
शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक,
और ज्योतिर्मय स्वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं
(2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग,
और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक,
रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ
तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु
साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं।
जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2
कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि
कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे,
जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले;
जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार
जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”,
इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः
तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई
को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है,
कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने,
जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने
के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है।
पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा
देने वाले लोगों के द्वारा, पहले तो प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत
शिक्षाओं को देखा; फिर उसके बाद, परमेश्वर
पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की
वास्तविकता को वचन की बातों से देखा; और अब पिछले कुछ लेखों
से हमने सुसमाचार से संबंधित गलत शिक्षाओं के बारे में देखना आरंभ किया है,
जिससे कि हम सही सुसमाचार क्या है देख और समझ सकें और गलत या भ्रष्ट
को पहचान सकें, ताकि स्वयं भी गलत से बच कर रह सकें तथा औरों
को भी बचा सकें। इस संदर्भ में पिछले लेख में हमने सुसमाचार के
विषय भ्रम और गलत शिक्षाएं को पहचानने के आधार को देखा था। आज हम सच्चे और उद्धार
देने वाले सुसमाचार के शैतान द्वारा बिगाड़े जाने, भ्रष्ट किए
जाने, और विभिन्न रीतियों से अप्रभावी किए जाने वाली आम
युक्तियों के बारे में देखेंगे।
सुसमाचार को अप्रभावी करने के
लिए शैतान की गलत शिक्षाएं और बातें
हमने पिछले लेख में देखा था कि सुसमाचार
का सार 1 कुरिन्थियों
15:1-4 में दिया गया है। तात्पर्य यह, कि
जिस भी सुसमाचार प्रचार में इन पदों की बातें नहीं हैं, या
इन पदों की बातों के अतिरिक्त भी बातें डाली गई हैं, अर्थात,
इन पदों में से कुछ घटाया या बढ़ाया गया है, वह
“सुसमाचार” भ्रष्ट है, बिगाड़ा
हुआ है, अस्वीकार्य है, क्योंकि वह
अप्रभावी है! ये पद और उनके तथ्य हमारे लिए सुसमाचार संबंधित हर शिक्षा को जाँचने
और परखने की कसौटी प्रदान करते हैं।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए, हम संक्षेप में देखेंगे
कि शैतान किस प्रकार से अपनी युक्तियों में हमें फंसा कर, परमेश्वर
की बात से हमारा ध्यान अपनी बात की ओर लाकर और उसे मनवाकर, हमारे
लिए सुसमाचार को अप्रभावी कर देता है:
- सुसमाचार केवल गैर-मसीहियों के लिए, जो ईसाई नहीं हैं, उन्हीं के लिए है: वास्तविकता में सुसमाचार संसार के प्रत्येक
व्यक्ति के लिए है, चाहे उसका धर्म, धारणा, मान्यता कुछ भी हो; ईसाइयों या मसीहियों के लिए भी (प्रेरितों 17:30-31)। सभी को उसके लिए व्यक्तिगत रीति से निर्णय लेना है।
- ईसाई धर्म और उससे संबंधित रीतियों के निर्वाह से सुसमाचार का भी पालन
हो जाता है: वास्तविकता में किसी भी प्रकार की कोई भी औपचारिकता के निर्वाह
के द्वारा सुसमाचार का पालन नहीं होता है। सुसमाचार का व्यक्ति के जीवन में
कार्यकारी होना उसके सच्चे समर्पित मन से अपने पापों के लिए पश्चाताप और
प्रभु यीशु से पापों के क्षमा माँगकर उसे समर्पित हो जाने से आरंभ होता है।
- प्रभु
यीशु मसीह से चंगाई प्राप्त करना भी सुसमाचार पर विश्वास करने और प्रभु का जन
हो जाने का प्रमाण है: प्रभु यीशु ने जिसने चाही, उन सभी चंगाई दी, किसी से कोई भेदभाव नहीं किया (प्रेरितों 10:38)। किन्तु जिन्हें प्रभु ने चंगा किया था, पिलातुस
एक सामने वे ही लोग बहुत ज़ोर देकर उसे क्रूस पर चढ़ाए जाने की माँग करने लगे,
और उसे क्रूस पर मरवा दिया। वे अपने स्वार्थ के लिए यीशु के जुड़े साथ हुए थे; सच्चे मन से प्रभु को समर्पण नहीं किया था; प्रभु के जन नहीं बने थे।
- प्रभु
यीशु मसीह और उसके वचन के बारे में ज्ञान में बढ़ना, सुसमाचार का पालन करने के समान
है: बाइबल और प्रभु परमेश्वर के बारे में सांसारिक ज्ञान की बहुत सी बातें और
शिक्षाएं हैं उपलब्ध और प्रचलित, और यह ज्ञान लोगों को विश्वास में नहीं लाता है, परमेश्वर और उसके वचन पर संदेह उत्पन्न करके उन से दूर करता है। इसी
प्रकार से बाइबल कॉलेज और सेमनरियों से शिक्षा पाने वाला हर जन प्रभु का
सच्चा समर्पित विश्वासी नहीं होता है। बहुत से लोगों के लिए यह शिक्षा-दीक्षा
केवल नौकरी करने और सांसारिक कमाई का एक साधन है। न वे स्वयं प्रभु को
समर्पित होते हैं, न औरों को यह सिखाते हैं; वरन धर्म-कर्म-अनुष्ठानों की औपचारिकता के निर्वाह के द्वारा ही काम
चलाते रहने की शिक्षाओं में उलझे और उलझाए रखते हैं। वे स्वयं भी नरक के भागी
हैं, और जाने कितनों को नरक का भागी बना दे रहे हैं।
- चंगाइयों
और आश्चर्यकर्मों को करना प्रभु की सामर्थ्य का और प्रभु के सुसमाचार के पालन
करने का प्रमाण है: इस धारणा को मानने वालों को मत्ती 7:21-23 पर बहुत गंभीरता से ध्यान
और मनन करना चाहिए। मत्ती
में उल्लेखित उन लोगों ने
प्रभु यीशु के नाम से बहुत कुछ किया, किन्तु प्रभु यीशु ने अंत में उन्हें “कुकर्म
करने वाले” कह दिया, और यह भी कह
दिया कि प्रभु ने उन्हें कभी नहीं जाना था। यहूदा इस्करियोती भी अन्य शिष्यों
के साथ प्रचार और चंगाई की सेवकाइयों में गया था, इन
अभियानों में सम्मिलित होकर कार्य किया था, और किसी को
भी उस पर कभी संदेह नहीं हुआ। किन्तु उसमें इस सामर्थ्य के होने और उसके
द्वारा इसे उपयोग करने के बावजूद, न तो उसका जीवन बदला,
और न ही वह वास्तव में कभी प्रभु का जन बना; अन्ततः उसे धोखा देकर पकड़वा दिया, मरवा दिया। ये बातें सुसमाचार
को मानने का प्रमाण नहीं हैं, क्योंकि शैतान भी ऐसी ही
बातों के द्वारा लोगों को भरमाता है, तथा प्रभु भी इन
बातों में रुचि और विश्वास रखने वालों को उन आत्माओं के वक्ष में कर देता है
(2 थिस्सलुनीकियों 2:9-11)।
- सुसमाचार
प्रचार में मनुष्यों के ज्ञान और समझ को मिलाना भी सुसमाचार को व्यर्थ और
अप्रभावी कर देता है: पिछले
लेख में कही गई निर्गमन
20:24-25 की
बात को ध्यान कीजिए - जहाँ मनुष्य परमेश्वर की बात को सुधारने और सँवारने का
प्रयास करते हैं, उसे अशुद्ध और अनुपयोगी कर देते हैं।
पौलुस ने अपनी सेवकाई के विषय लिखा, “क्योंकि मसीह
ने मुझे बपतिस्मा देने को नहीं, वरन सुसमाचार सुनाने
को भेजा है, और यह भी शब्दों के ज्ञान के अनुसार
नहीं, ऐसा न हो कि मसीह का क्रूस व्यर्थ ठहरे”
(1 कुरिन्थियों 1:17)। सुसमाचार को उसकी
सादगी, स्पष्टता, और शुद्धता में,
जैसा वह है, वैसा ही दिया जाना है;
अन्यथा मनुष्य की किसी भी बात की मिलावट के द्वारा वह अशुद्ध
और अप्रभावी, परमेश्वर के उद्देश्यों के लिए अनुपयोगी
हो जाता है।
·
सुसमाचार में भले कार्यों का योगदान
सिखाना भी उसे भ्रष्ट और अप्रभावी करना है। वचन में यह स्पष्ट लिखा और सिखाया गया
है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार के भले कार्यों के द्वारा या कैसे भी कर्मों
से उद्धार नहीं पा सकता है; यह केवल और केवल विश्वास द्वारा ही हो सकता है,
क्योंकि उद्धार परमेश्वर से कमाया नहीं जा सकता है, उसे केवल दान के रूप में परमेश्वर से स्वीकार किया जा सकता है: “जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के
साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।); क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से
तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है” (इफिसियों 2:5,
8)। मनुष्य के सभी भले कार्य परमेश्वर की दृष्टि में मैले चिथड़ों के
समान हैं, “हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं,
और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के
सब पत्ते के समान मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों
ने हमें वायु के समान उड़ा दिया है” (यशायाह 64:6));
वे किसी भी रीति से परमेश्वर के शुद्ध और पवित्र कार्य को संवार
नहीं सकते हैं; बिगाड़ अवश्य सकते हैं, और
बिगाड़ते भी हैं।
·
सुसमाचार का उद्देश्य भली मनसा और भले
कार्य करना समझाना है: यह शिक्षा देना मनुष्यों को भरमाना है, क्योंकि संसार भर में ऐसे अनेकों लोग हैं और हुए हैं जो मसीही विश्वास में
नहीं हैं और न ही सुसमाचार पर विश्वास करते हैं; किन्तु उनके
जीवन नैतिकता के भले कार्यों तथा औरों की भलाई करने से भरे हुए हैं, और इसके लिए वे लोगों में बहुत आदरणीय हैं, सुविख्यात
हैं। अर्थात, भले कार्य और भलाई करना सुसमाचार से नहीं है;
व्यक्ति का विवेक और मानसिकता भी उसे इनके लिए प्रेरित और कार्यकारी
कर सकती है, करती है। क्योंकि न्याय के दिन प्रभु यीशु मसीह
के द्वारा, सुसमाचार के आधार पर ही लोगों का न्याय होगा,
“जिस दिन परमेश्वर मेरे सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा
मनुष्यों की गुप्त बातों का न्याय करेगा” (रोमियों 2:16),
इसलिए सुसमाचार का उद्देश्य लोगों को भले कामों के लिए प्रेरित करना
नहीं, उन्हें उद्धार पाने के लिए प्रेरित करना है, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना
और समझना अति-आवश्यक है कि आप प्रभु परमेश्वर के सुसमाचार से संबंधित किसी गलत
शिक्षाओं धारणाओं में न पड़े हों। यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आपने सच्चे सुसमाचार पर सच्चा
विश्वास किया है, आप सच्चे पश्चाताप और समर्पण तथा सच्चे
मन से प्रभु यीशु से पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के जन बने हैं। न खुद
भरमाए जाएं, और
न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाली ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर ध्यान दें, और लोगों
की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें, यदि
सही हों, तब ही उन्हें मानें, अन्यथा
अस्वीकार कर दें।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- व्यवस्थाविवरण
5-7
- मरकुस 11:1-19
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