Click Here for the English Translation
आरम्भिक बातें – 48
बपतिस्मों – 28
कितने बपतिस्मे?
पिछले लेखों में बपतिस्मे से संबंधित मूल बातों को देखने के बाद हमने बपतिस्मे से संबंधित विवादित और असमंजस में डालने वाली बातों को देखना आरंभ किया। इनके अंतर्गत हमने पहले उद्धार और पाप क्षमा के लिए बपतिस्मे की कथित अनिवार्यता के बारे में वचन की बातों को देखा, और फिर “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” पाने के बारे में ज़ोर देकर दी जाने वाले शिक्षा और संबंधित बातों को देखा। हमने देखा था कि परमेश्वर के वचन बाइबल के आधार पर ये दोनों ही बातें गलत हैं, बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार नहीं हैं। आज हम एक और संबंधित बात को परमेश्वर के वचन के आधार पर देखेंगे, और यह बात भी इसी की पुष्टि करती है कि तथाकथित “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” बाइबल की शिक्षाओं के अनुरूप नहीं है, अस्वीकार्य है। जिस बात को हम आज देखने जा रहे हैं, वह है बाइबल में कितने प्रकार के बपतिस्मे हैं? मसीही विश्वासी को गिनती तथा प्रकार में कितने बपतिस्मे लेने की आवश्यकता है? यह और भी अधिक महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि हमारे वर्तमान में ज़ारी अध्ययन में इब्रानियों 6:1-2 में दी गई आरंभिक बातों में से तीसरी, “बपतिस्मों” बहुवचन में है।
इस प्रश्न पर विचार आरंभ करने से पहले हमें बाइबल की सही व्याख्या करने से संबंधित उन मूल बातों को एक बार फिर से ध्यान करना आवश्यक है, जिनका उल्लेख हमने इस शृंखला के आरंभिक लेखों में किया था। सही व्याख्या के लिए अनिवार्य इन बातों में से इस लेख के संदर्भ में इस बात का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि बाइबल की बातों में परस्पर कोई विरोधाभास नहीं है। यदि कोई भी व्याख्या, या शिक्षा, या सिद्धांत बाइबल की बातों में कोई भी विरोधाभास उत्पन्न करता है तो वह गलत है, अनुचित है, अस्वीकार्य है। साथ ही एक दूसरी बात का भी ध्यान रखना है कि बाइबल की किसी भी बात की प्रत्येक व्याख्या, उससे संबंधित अन्य पदों या शिक्षाओं, तथा उसके अपने संदर्भ में ही की जाए। कभी भी किसी भी व्याख्या को उस पद या बात के संदर्भ से बाहर लेने, या संबंधित बातों की अनदेखी करने के साथ करने से हमेशा ही गलत बातें और धारणाएं ही उत्पन्न होंगी और प्रचार की जाएंगी।
पिछले लेखों में “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” के बारे में दी जाने वाली शिक्षाओं को समझने के लिए हमने इस विषय के प्रथम लेख में शब्दों “से” और “का” के अर्थ और उनके प्रयोग से होने वाले वाक्यांश के अर्थ में पूर्ण बदलाव को देखा था। हमने वचन के उदाहरणों से यह समझा था कि “से” उस माध्यम या वस्तु को दिखाता है जिसमें बपतिस्मा दिया जाता है, और “का” उसे या उसके अधिकार को दिखाता है जिसके कहे के अनुसार, या जिसकी आज्ञाकारिता में बपतिस्मा दिया या लिया जाता है। हमने यह भी देखा था कि बाइबल में “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” कहीं नहीं लिखा गया है; जहाँ भी लिखा गया है “पवित्र आत्मा से बपतिस्मा” ही लिखा गया है।
यह ध्यान में रखते हुए देखिए कि इफिसियों 4:5 में लिखा है कि “एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा”, अर्थात, बपतिस्मा केवल एक ही है। यदि “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” कोई पृथक अनुभव या कार्य है, तो फिर तो दो बपतिस्मे हो जाते हैं - एक वह जो प्रभु यीशु का है और दूसरा वह जो पवित्र आत्मा का है; और तब परमेश्वर का यह वचन झूठा हो जाता है। इस धारणा के अनुसार फिर बाइबल में विरोधाभास या गलती आ जाती है - क्योंकि तब एक बपतिस्मा पानी से हुआ जो कि प्रभु यीशु के कहे के अनुसार लिया गया, और फिर दूसरा बपतिस्मा पवित्र आत्मा का हुआ। किन्तु बाइबल तो एक ही बपतिस्मे की बात करती है। इसलिए या तो पवित्र आत्मा का बपतिस्मा है ही नहीं, और बपतिस्मा केवल पानी में दिया जाने वाला ही एकमात्र बपतिस्मा है; नहीं तो यहाँ पर, इफिसियों 4:5 में गलत लिखा है, जिसका अर्थ हुआ कि बाइबल में गलतियाँ और परस्पर विरोधाभास हैं!
किन्तु बाइबल में गलती होने का प्रश्न तो तभी उठता है जब वाक्यांश “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” को सही स्वीकार किया जाए; अर्थात पवित्र आत्मा के कहे के अनुसार या पवित्र आत्मा की ओर से एक अन्य बपतिस्मा होना स्वीकार किया जाए। किन्तु परमेश्वर पवित्र आत्मा ने तो ऐसी कोई शिक्षा या आज्ञा कभी कहीं पर भी, किसी को भी नहीं दी है। जैसा हम यूहन्ना 16:13-14 से देखते हैं, परमेश्वर पवित्र आत्मा की सेवकाई में उनके द्वारा कोई नई बात बताना निर्धारित ही नहीं है। वह तो केवल मसीही विश्वासियों को प्रभु यीशु की बातों को स्मरण करवाने और सिखाने का कार्य करेगा। आप देख सकते हैं कि इस वाक्यांश में शैतान ने “से” के स्थान पर “का” लगाने के द्वारा कितनी चालाकी और दुष्टता से चुपके से न केवल एक बिलकुल गलत सिद्धांत बनाकर अनगिनत लोगों को उसमें फंसा और उलझा दिया है, वरन उस ने परमेश्वर पवित्र आत्मा के कार्यों के विषय यूहन्ना 14 और 16 अध्यायों में प्रभु यीशु द्वारा दी गई शिक्षाओं को भी बदल दिया है। इस से उसने परमेश्वर के वचन में गलतियाँ और विरोधाभास डाल दिए हैं - और वे भी इस झूठ के साथ कि यह मसीही सेवकाई तथा प्रभु की भक्ति के लिए आवश्यक है - किन्तु वास्तविकता यही है कि, बाइबल के अनुसार, यह न तो मसीही सेवकाई और न ही प्रभु की भक्ति के लिए आवश्यक अथवा उचित है।
किन्तु यदि, जैसे कि बाइबल में हर जगह पर लिखा भी गया है, इसे “पवित्र आत्मा से बपतिस्मा” समझा और स्वीकार किया जाता है, तो फिर इफिसियों 4:5 के साथ कोई विरोधाभास उत्पन्न नहीं होता है। वचन की हर संबंधित बात के साथ सच्चाई और खराई बनी रहती है, वचन के अर्थ में कोई अन्तर नहीं आता है। एक से अधिक बपतिस्मा होने को सही ठहरने के प्रयास में इसी से संबंधित एक और पद का दुरुपयोग किया जाता है, जहाँ बहुवचन “बपतिस्मे” लिखा गया है। इसके बारे में हम अगले लेख में देखेंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
******************************************************************
The Elementary Principles – 48
Baptisms - 28
How Many Baptisms?
After considering the basics about baptism from God’s Word, for the past some articles we have been looking at the controversial and confusing things about baptism. In these, we first considered the alleged necessity of baptism for salvation and forgiveness of sins, and then about the so-called “baptism of the Holy Spirit" and its related issues, from the Scriptures. We saw that Biblically speaking both of these are invalid and are not in accordance with the teachings of God’s Word. Today we will look at another related issue, again from the Word of God, which also confirms that the so-called "baptism of the Holy Spirit" does not conform to the teachings of the Bible, and is unacceptable. What we are going to look at today is how many different baptisms are there in the Bible? How many baptisms in number and type does a Christian need to undergo? This becomes all more important since in our ongoing study of the essential principles given in Hebrew 6:1-2, the third essential principle is “Baptisms,” stated in plural.
Before we begin to consider this question, we need to recall and remember the basics of Biblical interpretation, that have been mentioned in the earlier articles of this series. These basics are essential for a correct Interpretation of these issues. And, in the context of today’s article, it is very important to have in mind the fact that there are no contradictions in the Bible. If any interpretation, or teaching, or doctrine produces any contradiction in what the Bible says, then that teaching, doctrine, or interpretation is wrong, unreasonable, and unacceptable. Another thing to keep in mind is that every interpretation of anything in the Bible should always be done in its context, and also keeping in mind the other verses or teachings related to it. Whenever any interpretation is done by taking that verse or matter out of its context, or disregarding the other related teachings and verses, it will always lead to false interpretations and misconceptions being generated and propagated.
To understand the teachings about the phrase “the baptism of the Holy Spirit,” in the initial article on this topic, we looked at the implications of the words “with” and “of” and how the meaning of the phrase totally changes, when these words are interchanged. We understood from the examples of the Scriptures that "with" refers to the medium in which baptism is carried out, and "of" refers to the authority, according to whom, or for whose obedience one is baptized. We also saw that "the baptism of the Holy Spirit" is nowhere written in the Bible; Wherever it is written, it is the phrase “baptism with the Holy Spirit” that is written.
Keeping these in mind, note that Ephesians 4:5 states that "one Lord, one faith, one baptism", i.e., there is only one baptism. If the "baptism of the Holy Spirit'' is a separate experience or work, then there are two baptisms – first of the Lord Jesus and the second of the Holy Spirit; if so, then God’s Word becomes false. Because then, according to this concept, there are contradictions or mistakes in the Bible - because then one baptism is with water taken as instructed by the Lord Jesus, and the other is a baptism of the Holy Spirit. But the Bible talks about only one baptism. Therefore, either there is no baptism of the Holy Spirit, and the one and only baptism is the baptism given in water; else, what is written here in Ephesians 4:5, is wrong, which means the Bible has errors and contradictions!
But the possibility of errors in the Bible will only arise if the phrase “baptism of the Holy Spirit” is accepted to be true; i.e., it is accepted that there is another baptism that is according to or on the authority of the Holy Spirit. But God the Holy Spirit never ever gave any such teaching or instruction anywhere, or to any person. As we see in John 16:13-14, God the Holy Spirit, in His ministry amongst the Christian Believers, will never bring anything new from His side. He only functions to remind and teach the Christian Believers about the teachings the Lord Jesus has already given. You can see how subtly and deviously, by changing “with” into “of” in this phrase, Satan has not only built and entangled countless number of people in a false doctrine, but has also altered the Lord Jesus’s teachings about the functions of God Holy Spirit given in John chapter 14 and 16. And thereby he has also brought in errors and contradictions in the Holy Word of God - all in the garb of something necessary for Christian ministry and something reverential - whereas actually, Biblically speaking, it is neither necessary nor reverential.
But if, as it is written everywhere in the Bible, it is understood and accepted as "baptism with the Holy Spirit," then there is no contradiction with Ephesians 4:5. The accuracy and integrity of everything related to baptism in the Word of God remains intact, the meaning of the Word remains unchanged. In a further attempt to justify their erroneous stand on more than one baptism, another related verse is misused, where the plural "baptisms" has been used. We will see about this in the next article.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.