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मंगलवार, 16 जुलाई 2024

Growth through God’s Word / परमेश्वर के वचन से बढ़ोतरी – 132

 

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आरम्भिक बातें – 93


विश्वासियों का न्याय – 7

 

इब्रानियों 6:1-2 में दी गई छठी आरम्भिक बात “अन्तिम न्याय” पर हमारे इस अध्ययन में, हमने देखा है कि क्यों न्याय विश्वासियों का किया जाएगा, न कि अविश्वासियों का; और हमने बाइबल के कुछ पदों और खण्डों को भी देखा है जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि न्याय विश्वासियों का होगा। आज हम परमेश्वर के वचन बाइबल से कुछ अन्य पदों और खण्डों को देखेंगे जो यह बताते हैं कि न्याय विश्वासियों का ही होगा। नया-जन्म प्राप्त करने के बाद, प्रत्येक मसीही विश्वासी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह 2 कुरिन्थियों 5:15, 17 “और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएं परन्तु उसके लिये जो उन के लिये मरा और फिर जी उठा। सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं” के अनुसार जीवन व्यतीत करेगा। साथ ही उनसे यह भी आशा रखी जाती है कि वे स्वर्गीय दृष्टिकोण रखेंगे “सो जब तुम मसीह के साथ जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहां मसीह वर्तमान है और परमेश्वर के दाहिनी ओर बैठा है। पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ” (कुलुस्सियों 3:1-2), तथा अपने लिए स्वर्ग में खज़ाने एकत्रित करेंगे “अपने लिये पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो; जहां कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहां चोर सेंध लगाते और चुराते हैं। परन्तु अपने लिये स्वर्ग में धन इकट्ठा करो, जहां न तो कीड़ा, और न काई बिगाड़ते हैं, और जहां चोर न सेंध लगाते और न चुराते हैं” (मत्ती 6:19-20)। मसीही विश्वासियों का न्याय या आँकलन इसी लिए किया जाना है क्योंकि पापों से पश्चाताप करके प्रभु यीशु को उद्धारकर्ता ग्रहण करने, नया-जन्म पाए हुए मसीही विश्वासी होने के बाद उन्होंने जो जीवन जिया है; अर्थात उनके जीवन जीने का रवैया, उनका व्यवहार, उन्होंने क्या कहा और नहीं कहा, क्या किया और नहीं किया, आदि, उसके अनुसार उन्हें प्रतिफल और परिणाम दिए जाएँ। न्याय का समय वह समय होगा जब इसका आँकलन होगा कि मसीही विश्वासी से जो अपेक्षाएं रखी गईं, जो जिम्मेदारियाँ उसे सौंपी गईं, जो शिक्षाएँ और निर्देश उसे दिए गए, उन बातों के निर्वाह के लिए वह कहाँ खड़ा है; और उन्होंने जहाँ और जैसा अपने आप को रखा है, उसी के अनुसार उन्हें, उनका जो बनता है वह दिया जाएगा। मसीही विश्वासियों के इस अवश्यम्भावी न्याय के बारे में और बेहतर समझने तथा पुष्टि करने के लिए, कुछ अन्य पदों पर भी विचार कीजिए।

मलाकी 3:16-17 में लिखा है “तब यहोवा का भय मानने वालों ने आपस में बातें की, और यहोवा ध्यान धर कर उनकी सुनता था; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते थे, उनके स्मरण के निमित्त उसके सामने एक पुस्तक लिखी जाती थी। सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि जो दिन मैं ने ठहराया है, उस दिन वे लोग मेरे वरन मेरे निज भाग ठहरेंगे, और मैं उन से ऐसी कोमलता करूंगा जैसी कोई अपने सेवा करने वाले पुत्र से करे।” इस से हम देखते हैं कि परमेश्वर विश्वासियों की प्रत्येक बात-चीत को सुनता है, और न केवल सुनता है, वरन वह स्मरण के लिए एक पुस्तक में लिखी भी जाती है; और इस का उपयोग परमेश्वर के ठहराए हुए दिन में, उसके लोगों को उनके प्रतिफल देने के लिए किया जाएगा।

मत्ती 25:14-30 तथा लूका 19:12-27 में प्रभु यीशु द्वारा दिए गए दो दृष्टान्त हैं, स्वामी के द्वारा अपने सेवकों को ‘तोड़े’ या धन दिए जाने, और फिर जिन सेवकों को उसने दिया था उन से हिसाब लेने के बारे में। स्वामी ने हिसाब केवल उन्हीं से लिया जिन्हें उस ने दिया था, किसी अन्य से नहीं। स्वामी ने जो हिसाब लिया, वह उसी के बारे में था जो उसने उन सेवकों दिया था, और उन सेवकों ने जो उसके सामने प्रस्तुत किया, फिर उसके अनुसार उन्हें प्रतिफल दिए – यह सब कुछ सभी के सामने बिना कुछ भी छिपाए बिल्कुल खुल कर किया गया। स्वामी द्वारा हिसाब लेना अन्यायपूर्ण या मनमानी रीति से किया गया नहीं था; इसी प्रकार से उसके द्वारा दिए गए प्रतिफल भी उसी पर आधारित थे जो उन सेवकों ने उसके सामने रखा। प्रभु ने अपने सभी लोगों को, अपने सभी विश्वासियों को अपना उद्धार, अपना पवित्र आत्मा, पवित्र आत्मा का कोई-न-कोई वरदान, कुछ ज़िम्मेदारियाँ दी हैं; इस लिए वह सभी विश्वासियों से उस सब का हिसाब लेगा, जो उसने उन्हें दिया है, कि उन्होंने उसके दिए हुए को प्रभु की महिमा तथा उसके राज्य के लिए किस प्रकार से उपयोग किया।

उस न्याय, उस आँकलन, उसके द्वारा हिसाब लिए जाने के समय, हर एक बात, यहाँ तक की मन में छुपी बातें भी उजागर कर दी जाएंगी, खोल कर सामने रख दी जाएंगी, जैसा कि प्रभु ने लूका 12:2 में कहा है “कुछ ढपा नहीं, जो खोला न जाएगा; और न कुछ छिपा है, जो जाना न जाएगा।” और पौलुस ने 1 कुरिन्थियों 3:13 में लिखा है “…तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा…” और 1 कुरिन्थियों 4:5 में भी “सो जब तक प्रभु न आए, समय से पहिले किसी बात का न्याय न करो: वही तो अन्धकार की छिपी बातें ज्योति में दिखाएगा, और मनों की बातों को प्रगट करेगा, तब परमेश्वर की ओर से हर एक की प्रशंसा होगी।” हर एक व्यक्ति की हर एक बात को खुली और प्रकट करके, उजागर करके, प्रभु न्याय करेगा और प्रतिफल देगा, और जैसा हम 2 कुरिन्थियों 5:10 में देख चुके हैं, इसमें व्यक्ति की भली और बुरी दोनों ही बातें न्याय के लिए ली जाएंगी। इसलिए उसके द्वारा किए गए न्याय के विषय कोई भी प्रभु पर किसी भी प्रकार के पक्षपात या पूर्वाग्रह का आरोप नहीं लगाने पाएगा। लेकिन उस समय की हमारी दशा के बारे में सोचिए जब हमारे जीवनों और मनों में जो कुछ भी है, वह उजागर कर दिया जाएगा, और खोल कर सबके सामने रख दिया जाएगा, और तब हमारा न्याय होगा। इसीलिए प्रभु ने हमेशा इसी बात पर ज़ोर दिया है कि विश्वासियों को कोई भी गलत बात अपने अन्दर आने ही नहीं देनी चाहिए; इससे पहले कि कुछ गलत हम में जड़ पकड़े उसे रोक या मिटा देना चाहिए, अन्यथा एक बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

इस प्रकार से परमेश्वर के वचन में बारम्बार यह दिखाया गया है कि विश्वासियों से उनके जीवनों का हिसाब लिया जाएगा। अगले लेख में भी हम इस पर तथा इसके निहितार्थों पर विचार ज़ारी रखेंगे।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

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English Translation


The Elementary Principles – 93


Judgment of Believers – 7

   

 In studying “Eternal Judgment,” the sixth elementary principle given in Hebrews 6:1-2, we have seen the rationale, why the judgment will be of the Believers, and not the unbelievers; and we have seen some Bible verses and passages that affirm that the judgment will be of the Believers. Today, we will continue considering some other verses and passages from God’s Word the Bible that speak of the judgment to be of the Believers. On being Born-Again, every Christian Believer is expected to live in accordance with 2 Corinthians 5:15, 17, which says, “and He died for all, that those who live should live no longer for themselves, but for Him who died for them and rose again. Therefore, if anyone is in Christ, he is a new creation; old things have passed away; behold, all things have become new.” They are also expected to have a heavenly outlook “If then you were raised with Christ, seek those things which are above, where Christ is, sitting at the right hand of God. Set your mind on things above, not on things on the earth” (Colossians 3:1-2) and store up treasures in heaven for themselves “Do not lay up for yourselves treasures on earth, where moth and rust destroy and where thieves break in and steal; but lay up for yourselves treasures in heaven, where neither moth nor rust destroys and where thieves do not break in and steal” (Matthew 6:19-20). The Chrisitan Believers will be judged or evaluated, since they are to be given the rewards and consequences of their lives lived as Born-Again Christian Believers, i.e., their manner of living and behavior, the things they have said, done, or not done, after having repented of their sins and accepted the Lord Jesus as their Savior. Judgment time will be the time to see where each Christian Believer stands in fulfilling the expectations from him, the responsibilities, teachings, and instructions given to him; and then they will receive whatever is their due accordingly. Consider some other verses to help us better understand and affirm about this impending judgment of the Believers:

It is written in Malachi 3:16-17 Then those who feared the Lord spoke to one another, And the Lord listened and heard them; So, a book of remembrance was written before Him For those who fear the Lord And who meditate on His name. "They shall be Mine," says the Lord of hosts, "On the day that I make them My jewels. And I will spare them As a man spares his own son who serves him." From this we see that God listens to every conversation of the Believers, and all that the people of God say to each other, is not only heard by God but is also recorded in “book of remembrance” i.e., in a book which will be used “On the day” to reward God’s people.

In Matthew 25:14-30 and Luke 19:12-27, the two parables that the Lord gave about talents or money being given to his servants by an owner, the owner took an account only from those to whom he had given; and not from any of the others. Moreover, the owner took an account only of what he had given to them, and rewarded his servants according to the results they put before him – all of this was done openly, in front of all, without hiding anything from anyone. His taking an account was not unjust and arbitrary, and similarly his rewards were based upon how the servants had utilized what had been given to them. The Lord has given His salvation, His Holy Spirit, some gift of the Holy Spirit, and responsibilities to all of His people, to each and every one of His Believers; therefore, He will take an account from all the Believers of all that He has given to them, and how they have utilized His provisions for the Lord’s glory and Kingdom.

At the time of this accounting, or evaluation, this judgment, everything, including the things hidden in one’s heart will all be brought out into the open, as the Lord Jesus has said in Luke 12:2, “For there is nothing covered that will not be revealed, nor hidden that will not be known.” And Paul says in 1 Corinthians 3:13 “…each one's work will become clear; for the Day will declare it…” and in 1 Corinthians 4:5 “Therefore judge nothing before the time, until the Lord comes, who will both bring to light the hidden things of darkness and reveal the counsels of the hearts. Then each one's praise will come from God.” Having made everything about everyone open and public, evident to all, the Lord will judge and give the rewards, and as we have seen in 2 Corinthians 5:10, it will include both the good and the bad things of every person. Therefore, no one will be able to accuse Him of any bias or partiality about carrying out the judgment. But imagine our condition when everything about us, in our lives and in our hearts, is brought out and laid open before everyone else. That is why the emphasis of the Lord has been to not let any wrong thing come or dwell in the Believers; stop or eliminate it before it takes root in them; else there will be a heavy price to pay.

So, over and over in God’s Word, God has stated that the accounting will be from the Believers. We will continue to look into this and its implications in the next article.

If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

 

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