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रविवार, 29 दिसंबर 2024

Some Related Questions and their Answers / कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (3b)

 

पाप और उद्धार को समझना – 37

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पाप का समाधान - उद्धार - 34

कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (3b)


पिछले लेख से हमने बहुत लोगों द्वारा बहुधा उठाए जाएं वाले प्रश्न, "क्या कभी गँवाए न जा सकने वाले अनन्त उद्धार के सिद्धांत में, बिना किसी भय के पाप करते रहने की स्वतंत्रता निहित नहीं है?" पर विचार करना आरंभ किया था। हमने देखा था कि परमेश्वर भी इस संभावना से अवगत है, और उसने अपने इस प्रावधान के दुरुपयोग किए जाने को रोकने के लिए उपयुक्त प्रावधान किए हैं। हर एक पाप के दुष्परिणाम हैं, इस  पृथ्वी पर भी और परलोक में भी। इस पृथ्वी पर पाप का दण्ड भुगतने से संबंधित चर्चा कुछ लंबी है, इसलिए उसे हम अगले लेख में देखेंगे; आज हम परलोक के जीवन से संबंधित पाप के प्रभाव को देख लेते हैं। 


पाप का प्रभाव प्रत्येक मनुष्य के परलोक के जीवन पर भी पड़ता है। पापों की क्षमा पाए हुए मसीही विश्वासी को, इस पृथ्वी पर प्रभु की आज्ञाकारिता में उसकी उपयोगिता के लिए बिताए गए जीवन के अनुसार, स्वर्ग में आदर और प्रतिफल भी मिलेंगे “भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं” (2 तीमुथियुस 4:8)। किन्तु इस आज्ञाकारिता के साथ ही, पृथ्वी पर उसके द्वारा की गई परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता तथा पाप उसके इन प्रतिफलों को बिगाड़ता भी रहता है। स्वर्ग में मनुष्य को मिलने वाले प्रतिफल इन दोनों - भले और बुरे के कुल योग के अनुसार दिए जाएंगे। किन्तु ये आदर और प्रतिफल मिलने से पहले प्रत्येक मसीही विश्वासी के जीवन के प्रत्येक कार्य की बहुत बारीकी से जाँच भी की जाएगी, “क्योंकि अवश्य है, कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के सामने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपने अपने भले बुरे कामों का बदला जो उसने देह के द्वारा किए हों पाए।” (2 कुरिन्थियों 5:10); “क्योंकि वह समय आ पहुंचा है, कि पहिले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए, और जब कि न्याय का आरम्भ हम ही से होगा तो उन का क्या अन्त होगा जो परमेश्वर के सुसमाचार को नहीं मानते? और यदि धर्मी व्यक्ति ही कठिनता से उद्धार पाएगा, तो भक्तिहीन और पापी का क्या ठिकाना?” (1 पतरस 4:17-18)। 


यहाँ पर अक्सर लोग परमेश्वर द्वारा अंगीकार किए गए पापों को पीठ के पीछे फेंक देने, काली घटा के समान मिटा देने (यशायाह 38:17; 43:25; 44:22), आदि प्रतिज्ञाओं का हवाला देकर यह प्रमाणित करना चाहते हैं कि जिन पापों को परमेश्वर ने क्षमा कर दिया है, उनका कोई हिसाब नहीं लिया जाएगा। किन्तु उनकी यह धारणा, वचन की सही व्याख्या और शिक्षा के अनुकूल नहीं है। यह स्वयं में एक विस्तृत विषय है, जिसे हमने हाल ही में सम्पन्न हुई व्यावहारिक मसीही जीवन से सम्बन्धित लेखों की शृंखला में, इब्रानियों 6:1-2 में दी गई छः में से छठी बात, "अन्तिम न्याय" पर चर्चा के दौरा विस्तार से देखा और समझा था।   


मनुष्य के पाप से उसके परलोक के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव विषय से संबंधित कुछ बाइबल के पदों को देखते हैं: 


* हर पाप, हर अनाज्ञाकारिता, मसीही विश्वासी के प्रतिफलों को खराब करता है; और जिसका जीवन ऐसा रहा होगा कि उसकी लापरवाही और पापों ने उसके प्रतिफलों को या तो अर्जित ही नहीं होने दिया, अथवा बिगाड़ कर समाप्त कर दिया, वह फिर अनन्तकाल के लिए स्वर्ग में खाली हाथ ही प्रवेश करेगा और रहेगा, “तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिये कि आग के साथ प्रगट होगा: और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है। जिस का काम उस पर बना हुआ स्थिर रहेगा, वह मजदूरी पाएगा। और यदि किसी का काम जल जाएगा, तो हानि उठाएगा; पर वह आप बच जाएगा परन्तु जलते जलते” (1 कुरिन्थियों 3:13-15)। 


* न केवल कार्यों का, वरन हर एक मनुष्य को अपनी हर व्यर्थ बात, हर शब्द का भी हिसाब देना होगा, “और मैं तुम से कहता हूं, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे। क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा” (मत्ती 12:36-37)। 


     * परमेश्वर मसीही विश्वासियों की बातचीत को ध्यान से सुनता है और उसके सम्मुख उन बातों का लेखा रखा जाता है, “तब यहोवा का भय मानने वालों ने आपस में बातें की, और यहोवा ध्यान धर कर उनकी सुनता था; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते थे, उनके स्मरण के निमित्त उसके सामने एक पुस्तक लिखी जाती थी” (मलाकी 3:16)। 


इसलिए कोई भी यह न समझे कि उद्धार पाने के बाद पाप करने से उसे अब कोई हानि नहीं होगी। परमेश्वर मूर्ख नहीं है, कि मनुष्य उद्दंड होकर उसकी उदारता, कृपा, और प्रेम का दुरुपयोग कर ले और परमेश्वर बस एक मूक दर्शक ही बनकर मनुष्य द्वारा उसकी भली मनसा का अनुचित लाभ उठाते हुए देखता रह जाए। इसलिए शैतान के द्वारा फैलाई जा रही इन व्यर्थ और मिथ्या बातों पर ध्यान मत दीजिए। प्रभु के आपके प्रति प्रमाणित किए गए प्रेम, कृपा, और अनुग्रह, तथा उसके द्वारा आपको प्रदान किए जा रहे पाप-क्षमा प्राप्त करने के अवसर के मूल्य को समझिए, और अभी इस अवसर का लाभ उठा लीजिए। प्रभु यीशु ने तो अपना काम कर के दे दिया है; किन्तु क्या आपने उसके इस आपकी ओर बढ़े हुए प्रेम और अनुग्रह के हाथ को थाम लिया है, उसकी भेंट को स्वीकार कर लिया है? या आप अभी भी अपने ही प्रयासों के द्वारा वह करना चाह रहे हैं जो मनुष्यों के लिए कर पाना असंभव है।


आपके द्वारा स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ आपके द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें” आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए।   


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 Understanding Sin and Salvation – 37

English Translation

The Solution For Sin - Salvation - 34

Some Related Questions and their Answers (3b)


Since the previous article we have started considering the often raised question, "In the doctrine of eternal salvation, one that cannot ever be lost, isn’t the freedom to continue to sin with impunity implied?" We had seen that God is well aware of this possibility, and has put in place appropriate measures to deal with the misuse of this provision of His. Every sin has a harmful effect, both, in this world, as well as the next. The discussion about suffering the consequences of sin in this earthly life is a long one, and we will look into it in the next article. Today we will look at the effects of sin on the afterlife, i.e., the eternal life after a person dies and leaves this earth.


The effects of sin also come upon man’s afterlife, i.e., his spirit’s life, after his physical body’s death on earth. For the Christian Believer who has received forgiveness of sins, according to the life of obedience he has lived towards the Lord while on earth, how useful he has been on earth for the Lord, he will get honor and rewards in heaven “Finally, there is laid up for me the crown of righteousness, which the Lord, the righteous Judge, will give to me on that Day, and not to me only but also to all who have loved His appearing” (2 Timothy 4:8). But along with his obedience, his disobedience towards the Lord and the sins committed here on earth, also keep adversely affecting those heavenly rewards. Eventually in heaven, he will get the rewards according to the net result of his good and bad deeds, his life of obedience and utility for the Lord and his life of disobedience and creating problems for the Lord. These rewards will be given after a very minute and thorough scrutiny of each Believer’s life, “For we must all appear before the judgment seat of Christ, that each one may receive the things done in the body, according to what he has done, whether good or bad” (2 Corinthians 5:10); and “For the time has come for judgment to begin at the house of God; and if it begins with us first, what will be the end of those who do not obey the gospel of God? Now "If the righteous one is scarcely saved, Where will the ungodly and the sinner appear?"” (1 Peter 4:17-18). 


At this point people usually quote the promises of God about casting the confessed sins behind His back, wiping them away like a dark cloud (Isaiah 38:17; 43:25; 44:22), and try to prove that there will not be any accountability for the sins that have once been forgiven. But their this concept and understanding is not in accordance with the correct interpretation and teachings of the Word. This in itself is a long topic, and we have considered it in detail in a recently concluded series of articles on Practical Christian Living, when we were considering "Eternal Judgment," the sixth of the six Elementary Principles given in Hebrews 6:1-2.    

 

Let us look at some more verses from the Bible about the effects of sin on man's afterlife:


* Every sin, every disobedience spoils the rewards of the Christian Believer; and the person whose life has been one of carelessness and waywardness, then his sins could either not have allowed any heavenly rewards to get accumulated, or may have even eaten away all his heavenly rewards, and then though he will enter into heaven, but will remain empty handed for eternity, “each one's work will become clear; for the Day will declare it, because it will be revealed by fire; and the fire will test each one's work, of what sort it is. If anyone's work which he has built on it endures, he will receive a reward. If anyone's work is burned, he will suffer loss; but he himself will be saved, yet so as through fire” (1 Corinthians 3:13-15).


* Every person will not only have to give an account of everything he has done, but also give an account of every vain talk and words spoken by him, “But I say to you that for every idle word men may speak, they will give account of it in the day of judgment. For by your words you will be justified, and by your words you will be condemned."” (Matthew 12:36-37).


* God very carefully listens to the conversations of the Christian Believers, and they are recorded before Him “Then those who feared the Lord spoke to one another, And the Lord listened and heard them; So a book of remembrance was written before Him For those who fear the Lord And who meditate on His name” (Malachi 3:16).


Therefore, let no one think that sinning after being saved has no consequences, there will be no harm. God is not a fool and cannot be mocked; no man can take for granted and misuse His grace, benevolence, kindness, and love, and get away with it lightly; God will not remain a helpless, silent spectator to man making a mockery of His grace. Therefore, do not be beguiled and carried away by these false notions and unBiblical teachings being spread by Satan. Understand the value and importance of the love and sacrifice of the Lord Jesus to redeem you of your sins. The Lord Jesus has done His part; He has made ready and available salvation with all the benefits freely to everyone; but have you accepted His offer? Have you taken His hand of love and grace extended towards you and the free gift He offers; or are you still determined to do that which no man can ever accomplish through his own efforts?


If you are still not Born Again, have not obtained salvation, have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heart-felt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company, wants to see you blessed; but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.

 

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