पाप और उद्धार को समझना – 23
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पाप का समाधान - उद्धार - 20
प्रभु यीशु ही क्रूस पर चढ़ाए और मारे गए (3)
पिछले लेख में हमने देखा था कि परमेश्वर के वचन बाइबल में दिए गए प्रभु यीशु की मृत्यु से सम्बन्धित तथ्यों के सामने, मसीह-विरोधी लोगों द्वारा दी जाने वाली ऐसी कोई धारणा नहीं ठहर सकती है कि प्रभु यीशु क्रूस पर मरे नहीं थे। प्रभु यीशु की मृत्यु एक वास्तविकता है, एक प्रमाणित और अकाट्य तथ्य है। जैसा कि हम आने वाले लेखों में देखेंगे, मसीही विश्वास का आधार प्रभु यीशु की मृत्यु और उनका मृतकों में से पुनरुत्थान है। इसी लिए शैतान अनेकों तरह से प्रयास करता है की लोगों के मनों में प्रभु की मृत्यु और पुनरुत्थान के बारे में सन्देह उत्पन्न करे, और उन्हें प्रभु में विश्वास न करने दे। किन्तु परमेश्वर का वचन बाइबल उसकी प्रत्येक युक्ति को झूठा प्रमाणित करता है। पिछले लेख में हमने यह भी देखा था कि प्रभु के मारे जाने और कब्र में दफनाए जाने के बाद, यहूदी धर्म के अगुवों के द्वारा रोमी गवर्नर की सहायता से यह सुनिश्चित किया गया था कि प्रभु के शिष्य आकर उसके देह को चुराकर न ले जाएँ, और फिर यह बात फैला दें कि वह जी उठा है। वैसे भी, पहले के लेखों से प्रकट है की डर के मारे प्रभु को छोड़ कर जान बचा कर भागे हुए शिष्यों के लिए यह करना असम्भव था। वे तो प्रभु को क्रूस पर से उतारकर दफनाने के लिए भी सामने नहीं आए थे, तो रोमी सैनिकों के पहरे में से प्रभु की देह को कैसे निकाल कर ले जाए?
आज, इन तथ्यों के संदर्भ में हम उस मिथ्या धारणा की ओर आते हैं, जिसके अंतर्गत लोग कहते हैं कि प्रभु यीशु क्रूस पर मरे नहीं, केवल बेहोश हुए, और फिर कब्र के ठन्डे वातावरण में कुछ समय के बाद उन्हें होश आया, और तब वे कब्र से बाहर निकाल कर आ गए, कहीं चले गए, और शिष्यों ने यह कह दिया कि वे जीवित हो उठे हैं। किन्तु उपरोक्त तथ्यों के सामने यह धारणा पूर्णतः निराधार है, बिना तथ्यों का ध्यान किए भ्रम फैलाने के लिए बनाई गई है। ध्यान कीजिए:
* रोमी गवर्नर पिलातुस के कहने पर सूबेदार और सिपाहियों ने जाकर यह निश्चित किया कि प्रभु यीशु वास्तव में मर गया है। वे रोमी सैनिक क्रूस पर चढ़ाए हुओं के मरे अथवा जीवित होने की पहचान में अनुभवी थे, उन्होंने देखा कि प्रभु यीशु मर गए हैं, इसलिए उनके साथ क्रूसित किए गए शेष दोनों डाकुओं के समान, उन्होंने प्रभु यीशु की टांगें नहीं तोड़ीं, वरन छाती को भाले से भेद अवश्य दिया, और फिर पिलातुस को बता दिया कि प्रभु यीशु मर गया है। यदि उन्होंने पिलातुस से झूठ बोल होता, और यह बात सामने आ जाती, तो उस सूबेदार और उन सिपाहियों की मौत निश्चित थी, इसलिए वे प्रभु यीशु की मृत्यु का झूठा समाचार पिलातुस को देने का जोखिम नहीं उठा सकते थे।
* प्रभु की देह को पचास सेर सामग्री में और कफन में लपेट कर (केवल ढाँप कर नहीं) कब्र में रखा गया था। क्या यह संभव कि कब्र के अंदर होश आने पर सारे शरीर की कोड़ों से उधेड़ दी गई स्थिति, और हाथों तथा पैरों में शरीर का वज़न सहन कर सकने लायक मोटी कीलों के घावों वाला व्यक्ति, जिसकी छाती तो रोमी भाले ने छेद दिया अहो, वह बिना किसी सहायता के, अकेले अपने आप ही पचास सेर सामग्री तथा लिपटे हुए कफन को खोल कर उतार देगा और खड़ा हो जाएगा?
* क्या इतनी यातना सहने और फिर इतना लहू बह जाने के बाद किसी भी मनुष्य के शरीर में यह कर पाने की सामर्थ्य बचेगी?
* क्या ऐसा घायल और निर्बल व्यक्ति अंदर से अकेले ही कब्र के मुँह पर लगे मोहर बंद भारी पत्थर को स्वयं ही लुढ़का कर बाहर आने पाएगा? उन घायल हाथों और पैरों में, उसे भेदी गई छाती में, और लहू बहने से दुर्बल हो गई देह में क्या यह सब करने की शक्ति एवं क्षमता शेष रही होगी?
* यदि एक बार को मान भी लिया जाए कि प्रभु यीशु उस भारी पत्थर को लुढ़का कर बाहर आ गया, तो फिर उन पहरेदारों ने उसे पकड़ क्यों नहीं लिया? वह अकेला और घायल, दुर्बल था; और पहरेदार कई थे - यीशु को पकड़ लेने में उन्हें क्या कठिनाई हो सकती थी?
यदि वह निष्पाप, निष्कलंक, निर्दोष, पवित्र, और सिद्ध प्रभु मेरे और आपके पापों के लिए घोर यातनाएं सहने और क्रूस की अत्यंत पीड़ादायक मृत्यु सहने के लिए तैयार हो गया, तो क्या हम उससे आशीष और अनन्त जीवन पाने, नरक की अनन्त पीड़ा से बचने के लिए तैयार नहीं होंगे? वह तो केवल हमारा भला ही चाहता है, जिसके लिए उसने हमारा सारा दुख सह लिया; तो फिर हम क्यों उसके इस आमंत्रण को अस्वीकार करें? शैतान की किसी बात में न आएं, किसी गलतफहमी में न पड़ें, अभी समय और अवसर के रहते स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों से पश्चाताप कर लें, अपना जीवन उसे समर्पित कर के, उसके शिष्य बन जाएं। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।” आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा।
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Understanding Sin and Salvation – 23
The Solution For Sin - Salvation - 20
The Lord Jesus WAS Crucified & Died on the Cross (3)
In the previous article we have seen that in the face of the facts related to the death of the Lord Jesus given in God’s Word the Bible, the notion given by opponents of Christ Jesus, that He did not die on the cross cannot stand. The death of the Lord Jesus is a fact, it is a proven and undeniable fact. As we will see in the coming articles, the basis of the Christian Faith is the death and resurrection of the Lord Jesus. That is why Satan keeps trying to create doubts about the Lord’s death and resurrection in various ways amongst the people, to keep them from believing in the Lord. But God’s Word the Bible disproves every one of his ploys. In the previous article we had also seen that after the death and burial of the Lord Jesus, the Jewish religious leaders with the help of the Roman Governor had ensured that the Lord’s disciples would not be able to steal away the body of the Lord, and then spread the claim that He had risen from the dead. In any case, it is apparent from the earlier articles that the disciples who were scared and had run away to save their lives, would never come forward to do this. They did not even come forward to take the body of the Lord from the cross to bury it, then how would it be possible for them to steal the body being guarded by the Roman Soldiers?
Today, bearing the above Biblical facts in mind, let us turn back to the false notion that people have, that the Lord Jesus only became unconscious on the cross, did not die, and in the cool environment of the grave, He regained consciousness, revived, came out of the grave, and walked away to some unknown place, and the disciples spread the claim that He had risen from the dead. But in light of the above facts, this notion is absolutely baseless, is a concocted story spread to deceive people. Consider some things here:
* On the orders of Pilate, the Roman Governor, the soldiers went to ascertain that the Lord had indeed died on the cross. Those Roman soldiers were experienced in recognizing whether the person hanging on the cross was dead or not. They broke the legs of the other two criminals crucified with the Lord, but did not break the legs of the Lord, still they did pierce His chest to confirm His death, and told the same to Pilate. Had they lied to Pilate, and had this at any time come to the knowledge of Pilate, then that Centurion and those soldiers would certainly have been killed as punishment; so, there is no way they could have taken the risk of giving a false report to Pilate and risked their lives because of it.
* The Lord’s body was not just covered, but wrapped in linen cloth along with a hundred pounds of material. Now, is it at all possible that a person whose body had been badly bruised by the scourging, whose hands and feet had been pierced with thick nails, by which he hung on the cross, and whose chest had been pierced by a Roman spear, he, without any help would be able to unwrap himself from the hundred pounds of material and cloth, and stand up?
* After having suffered all this excruciating torture, would there be any strength left in any person to still be able to do this?
* Would such a bruised, battered, and weak person, all by himself, be able to get up, walk, push away the heavy stone from the mouth of the grave? Would he have any strength left in his body to do any of this?
* Even if only for arguments sake, it is accepted that the Lord could do all this, push away the heavy stone with His pierced hands, and step out of the grave, then what about the guards placed there? Why did they not catch and hold Him down? He was alone, bruised and battered, weak, and the guards were many - so why could they not catch the Lord?
If that sinless, spotless, blameless, holy, and perfect man, the Lord Jesus, was willing to suffer such excruciating torture and suffer the unimaginably painful death of the cross for my sins and yours, then why should we not accept His offer of eternal life and blessings, and consent to be saved form the torments of hell for eternity? He only wants our benefit, to only do good for us; and for this He suffered all the pain; so then why should we not accept His loving invitation He is freely and graciously extending to us? Do not let Satan deceive you through his smooth-talks, do not get carried away in any contrived misrepresentations or misconceptions regarding the Lord Jesus. While you have the time and opportunity now, surrender your life to Him and agree to become His obedient disciple.
If you are still not Born Again, have not obtained salvation, have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heart-felt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company, wants to see you blessed; but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.