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बुधवार, 9 मार्च 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (25)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - सुसमाचार संबंधित गलत शिक्षाएं (6)

सही सुसमाचार के 7 गुण 

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं (इफिसियों 4:14)। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, पहले तो प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखा; फिर उसके बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखा; और अब पिछले कुछ लेखों से हमने सुसमाचार से संबंधित गलत शिक्षाओं के बारे में देखना आरंभ किया है, जिससे कि हम सही सुसमाचार क्या है देख और समझ सकें और गलत या भ्रष्ट को पहचान सकें, ताकि स्वयं भी गलत से बच कर रह सकें तथा औरों को भी बचा सकें। इस संदर्भ में पिछले लेखों में हमने सुसमाचार के विषय भ्रम और गलत शिक्षाएं को पहचानने के आधार को देखा था, फिर हमने सच्चे और उद्धार देने वाले सुसमाचार के शैतान द्वारा बिगाड़े जाने, भ्रष्ट किए जाने, और विभिन्न रीतियों से अप्रभावी किए जाने वाली आम युक्तियों के बारे में देखा। आज हम वास्तविक सुसमाचार के गुणों को देखेंगे, जिससे असली और नकली के मध्य पहचान कर सकें।

कलीसिया के आरंभ से ही शैतान ने गलत शिक्षाओं और झूठे प्रचारकों के द्वारा सुसमाचार को बिगाड़ना, उसे अप्रभावी बनाने वाली बातों के साथ मिलाकर लोगों में फैलाना आरंभ कर दिया था। उसका उद्देश्य यही था कि लोगों को भ्रामक बातों में फँसा कर, उन्हें धर्मी, वचन का पालन करने वाले, और प्रभु के खोजी होने के, आदि भ्रम में फँसाए रखे, और सच्चे सुसमाचार से दूर रखे। ऐसा होने से वे उद्धार से वंचित रह जाएंगे, यद्यपि उन्हें यही लगता रहेगा कि वे भी उद्धार पाए हुए हैं, स्वर्ग में जाने के योग्य हैं। किन्तु साथ ही परमेश्वर पवित्र आत्मा ने अपनी प्रेरणा से प्रभु के शिष्यों द्वारा उन बातों को भी लिखवा दिया तथा उपलब्ध करवा दिया, जो शैतान के इस झूठ को प्रकट करती हैं, और असली सुसमाचार की पहचान करवाती हैं, जिससे जो भी वचन को सच्चे समर्पित मन से, पवित्र आत्मा से सीखने का इच्छुक होगा, वह इस असली-नकली की पहचान को जान लेगा। पवित्र आत्मा की प्रेरणा से पौलुस प्रेरित ने गलातीयों की मण्डली को लिखी पत्री का आरंभ करते हुए कहा:मुझे आश्चर्य होता है, कि जिसने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं” (गलातियों 1:6-7)। गलातीयों की पत्री, इसी विषय, अर्थात सही सुसमाचार, गलत सुसमाचार, सुसमाचार से भटकना आदि बातों पर ही लिखी गई है, और इस पत्री के 1 और 2 अध्याय, वास्तविक सुसमाचार की पहचान करवाते हैं, प्रभु यीशु के असली सुसमाचार के गुण या स्वभाव, और प्रभावों का यहाँ पर वर्णन किया गया है।

हर नकली उत्पाद को बनाने वाले उस नकली को उसके असली मूल उत्पाद के समान ही दिखने वाला बनाते हैं, साथ ही उस नकली के असली के समान ही कार्य करने और प्रभावी होने के बात करते हैं। अर्थात उस के गुण यास्वभाव”, और उसकेप्रभावहमें असली और नकली की पहचान करवाते हैं। यही असली और नकली सुसमाचार के लिए भी सही है। आज हम असली सुसमाचार के गुणों, अर्थात उसके स्वभाव के बारे में देखेंगे। 

असली सुसमाचार के 7 गुण या स्वभाव:

  1. पौलुस इस पत्री का आरंभ अपनी सेवकाई और बुलाहट से आरंभ करता है। वह गलातीयों 1:1 में अपने पाठकों को यह स्पष्ट कर देता है कि उसकी नियुक्ति परमेश्वर के द्वारा है, न कि मनुष्यों की ओर से। क्योंकि यह उसके मसीही जीवन का दृढ़ सत्य था, इसीलिए उसकी वफादारी भी केवल और केवल प्रभु परमेश्वर के ही प्रति थी, अन्य किसी के प्रति नहीं। सच्चे सुसमाचार के प्रचारक का पहला गुण है कि वह न केवल परमेश्वर की ओर से अपनी सेवकाई के लिए नियुक्त होने का दावा भी करेगा, वरन उस दावे को जी कर के भी दिखाएगा। सही सुसमाचार का प्रचार करने वाले प्रचारक के व्यवहारिक जीवन में परमेश्वर के प्रति वफादारी और जवाबदेही, तथा सांसारिकता की बातों, संसार से प्रशंसा, बड़ाई, यश आदि से अलगाव भी दिखाई देगा।
  2. गलातियों 1:2 से प्रकट है कि सही सुसमाचार के प्रचारकों में बड़े-छोटे की भावना नहीं होगी; वह अपने सभी सहकर्मियों को, प्रभु की सेवकाई में लगे लोगों को समान आदर के साथ रखता है, सभी के साथ मेल-मिलाप रखते हुए, उन्हें भी अपनी सेवकाई का महत्वपूर्ण भाग बताता है, केवल अपने आप को ही बड़ा या मुख्य दिखाने के प्रयास नहीं करता है। 
  3. गलातियों 1:3 में पौलुस सही सुसमाचार का तीसरा गुण या स्वभाव लिखता है - वास्तविक सुसमाचार प्रभु यीशु मसीह की शांति और अनुग्रह के साथ आता है। अर्थात उस संदेश और उसके पालन से अनबन, विभाजन, फूट, बैर, टकराव, आदि नहीं होते; वरन वह हमेशा प्रेम, मेल-मिलाप, क्षमा, एकता, दीनता, नम्रता आदि मसीही गुणों के साथ आता है, जबकि नकली इसके विपरीत बातों के साथ आता है।
  4. गलातीयों 1:4 में वास्तविक सुसमाचार का चौथा स्वभाव दिया गया है, वह हमारे पापों से छुटकारे के लिए प्रभु यीशु के द्वारा दिए गए बलिदान का प्रचार करता है न कि मनुष्यों के अपने किसी कार्य या कर्मों के अनुसार भला बनने और उद्धार पाने का। साथ ही वह सांसारिक बातों, धन-संपत्ति, भौतिक समृद्धि, शारीरिक चंगाइयों, आदि का नहीं, और मसीह यीशु में विश्वास के द्वारा पापों की क्षमा पर बल देता है, उसे ही मुख्य विषय बनाए रखता है। साथ ही वह प्रभु यीशु मसीह के जीवन से परमेश्वर के प्रति मृत्यु सहने तक आज्ञाकारी होने के लिए भी सिखाता है (इब्रानियों 12:1-4; प्रकाशितवाक्य 2:10) 
  5. गलातियों 1:5 में सही सुसमाचार के प्रचार और प्रचारक का पाँचवां गुण दिया गया है, उसके द्वारा सदा ही प्रभु यीशु मसीह की स्तुति और बड़ाई, उसी की प्रशंसा, महिमा और गुणगान का प्रचार होगा, किसी मनुष्य का नहीं।
  6. गलातियों 1:6 सचेत करता है कि कोई भी सच्चा मसीही विश्वासी अपने आप को आवश्यकता से अधिक सिद्ध या स्थिर न समझ ले, जैसा कि 1 कुरिन्थियों 10:12 में भी लिखा गया है। यहाँ ध्यान कीजिए, कोई अविश्वासी नहीं अपितु, गलातिया की मसीही मण्डली के लोग, प्रभु के विश्वासी जन हीऔर ही सुसमाचारमें अर्थात गलत सुसमाचार में बहकाए और भरमाए गए थे। सही सुसमाचार का छठवाँ स्वभाव है कि वह सदा ही मनुष्य को उसकी दुर्बलता के बारे में, और प्रभु के सच्चे विश्वासी जन को सदा हर बात के लिए परमेश्वर पर निर्भर रहने, परमेश्वर के वचन से जाँचते रहने, और उसी के अनुसार चलने के लिए कहेगा। वह कभी किसी को भी अपने आप पर, अपनी बुद्धि और युक्ति पर भरोसा रखने और अपनी समझ या संसार की सलाह, संसार को सही लगने वाली बात के अनुसार करने को नहीं कहेगा।
  7. सही सुसमाचार का सातवाँ गुण है कि उससे लोगों में डर या घबराहट नहीं आती; ऐसा करना सुसमाचार को बिगाड़ने वालों का काम है। गलत सुसमाचार वाले लोग विभिन्न प्रकार के डर-भय दिखा कर लोगों को अपनी बातों का पालन करने के लिए बाध्य करते हैं। जब कि असली सुसमाचार लोगों को परमेश्वर की संतान होने के लिए प्रेरित करता है (यूहन्ना 1:12-13), पापों के दंड उठाने से मुक्ति पाने (रोमियों 8:1-2), और आशीषित अनन्त जीवन की बात करता है (मत्ती 19:19; 1 कुरिन्थियों 2:9), तो फिर उससे घबराहट या भय क्यों आएगा? नाहक ही भय और घबराहट उत्पन्न करना, लोगों को बाध्य करना, शिक्षाओं की जाँच-पड़ताल करने से रोकना शैतान और उसकी बातों का गुण है, प्रभु और उसके सुसमाचार का नहीं। 

सच्चे सुसमाचार के 7 गुणों या स्वभाव को देखने के बात, हम उसके प्रभाव को अगले लेख में देखेंगे। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप प्रभु परमेश्वर के सुसमाचार से संबंधित किसी गलत शिक्षाओं धारणाओं में न पड़े हों। सच्चे सुसमाचार के स्वभाव के अनुसार अपने आप को जाँचने के द्वारा यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आपने सच्चे सुसमाचार पर सच्चा विश्वास किया है, और आप सच्चे पश्चाताप और समर्पण तथा सच्चे मन से प्रभु यीशु से पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के जन बने हैं। न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाली ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें, यदि सही हों, तब ही उन्हें मानें, अन्यथा अस्वीकार कर दें। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • व्यवस्थाविवरण 8-10          
  • मरकुस 11:20-33 

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