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बुधवार, 10 जुलाई 2024

Growth through God’s Word / परमेश्वर के वचन से बढ़ोतरी – 126

 

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आरम्भिक बातें – 87


विश्वासियों का न्याय – 1

 

अभी तक हमने इब्रानियों 6:1-2 में दी गई आरंभिक बातों में से छठी बात, “अन्तिम न्याय” के सम्बन्ध में कुछ बातों को देखा है। हमने प्रेरितों 17:3-31 से देखा कि परमेश्वर ने सारे सँसार का, सभी मनुष्यों का न्याय होना निर्धारित किया है। परमेश्वर ने इस न्याय के होने के लिए एक दिन निर्धारित किया हुआ है, प्रभु यीशु मसीह को न्यायी नियुक्त किया है, और वह धार्मिकता से न्याय करेगा; और इसीलिए परमेश्वर सभी स्थानों पर सभी लोगों को यह आज्ञा देता है कि अपने पापों से पश्चाताप करें, बचाए जाने या उद्धार पाने के लिए उस की ओर मुड़ें और आने वाले न्याय के लिए तैयार हों। हमने देखा है कि प्रभु यीशु केवल उन्हीं बातों के आधार पर न्याय करेगा जो परमेश्वर के वचन बाइबल में लिखी हुई हैं, न कि मनुष्यों के बनाए हुए नियमों, तरीकों, और परंपराओं के आधार पर, और न ही किसी भी डिनॉमिनेशन की शिक्षाओं और रीतियों के अनुसार। साथ ही किसी भी व्यक्ति की, वह चाहे कोई भी क्यों न हो, उसकी इस न्याय में कोई भूमिका नहीं होगी, कोई भी प्रभु के न्याय पर ऐसे या वैसे कोई भी प्रभाव नहीं डालने पाएगा। हमने यह भी देखा कि यह न्याय सदा काल के लिए, अपरिवर्तनीय, और कभी मिटाया न जा सकने वाला होगा। मृत्यु होने पर मनुष्य का आत्मा अपने अनन्तकालीन स्थान पर पहुँच जाता है – या तो सुख और शान्ति के स्थान में, अन्यथा पीड़ा के स्थान में; और वह जहाँ भी पहुँचता है, हमेशा के लिए वैसे ही स्थान में बना रहेगा। परमेश्वर के वचन में किसी अन्तरिम स्थान की धारणा का, जहाँ पर मृतकों की आत्माओं को रखा जाता है और पृथ्वी पर लोग उन के लिए जो करते हैं उसके आधार पर उन्हें निकाल कर स्वर्ग में ले जाया जाए, का कोई प्रावधान नहीं है। न ही परमेश्वर का वचन बहुत से लोगों की इस धारणा का कोई समर्थन करता है कि क्योंकि परमेश्वर प्रेमी और दयालु है, इसलिए अन्ततः वह सभी को क्षमा कर देगा और उन्हें अपने साथ स्वर्ग में ले लेगा। ये सभी झूठी, गलत, और शैतानी शिक्षाएँ हैं, जो कभी पूरी होने वाली नहीं हैं; और जो इन बातों में विश्वास रखते हैं, वे एक बहुत बड़ी, कभी पार न हो सकने वाली, कभी पलटी नहीं जाने वाली, अनन्तकालीन समस्या में जा रहे हैं, जिस में वो सदा काल तक फँसे रहेंगे।

आज से हम अन्तिम न्याय के एक अन्य पक्ष पर विचार आरम्भ करेंगे; यह एक ऐसा पक्ष है जिस पर सिखाया जाना या प्रचार किया जाना बहुत ही कम होता है, और जिस के बारे में लोगों में काफी दुविधा और गलतफहमियाँ हैं। इसलिए इस पक्ष के विषय यहाँ पर जो लिखा जाएगा, पाठकों के लिए उस पर काफी मनन करने तथा इस के बारे में अन्तिम लेख के लिखे जाने तक धैर्य के साथ प्रतीक्षा करने, तथा फिर जो कुछ लिखा गया है उसे दोहराने के बाद ही निष्कर्ष निकाल पाने की आवश्यकता होगी। हम आज से जो देखने जा रहे हैं, कि अन्तिम न्याय मसीही विश्वासियों का होगा, न कि अविश्वासियों का; यह बाइबल का एक ऐसा तथ्य है जो लगभग सभी मसीहियों या ईसाइयों की सामान्य समझ के विपरीत जाता है! बाइबल में सामान्यतः जिस न्याय की बात की जाती है वह परमेश्वर के लोगों का न्याय है, न कि उनका जिन्होंने परमेश्वर का तिरस्कार कर दिया है और कभी उस के अनुयायी या उसके लोग बने ही नहीं हैं।

आज हम आरम्भ करेंगे बाइबल के दो बहुत महत्वपूर्ण, अटल, अपरिवर्तनीय तथ्यों के साथ, जिन का इस विषय पर जिसे हम आरम्भ कर रहे हैं महत्वपूर्ण प्रभाव है। पहला तथ्य है कि उद्धार सदा काल के लिए है; जिस ने एक बात उद्धार पा लिया है वह अनन्त काल के लिए पा लिया है और अब से लेकर अनन्तकाल तक अपने उस उद्धार में बना रहेगा। किसी का अभी उद्धार, किसी भी कारण से, किसी भी तरीके से, जा नहीं सकता है, चाहे उस व्यक्ति ने कैसा भी जीवन क्यों न जिया हो, उस के काम कैसे भी क्यों न रहे हों; इन बातों से उसके अनन्तकाल के प्रतिफलों पर तो प्रभाव पड़ेगा, लेकिन उस के उद्धार पाए हुए होने की दशा पर कोई प्रभाव नहीं होगा; वह हमेशा ही परमेश्वर की सन्तान, कलीसिया का एक सदस्य, प्रभु की देह और दुल्हन का एक भाग, और हमेशा अन्य विश्वासियों के साथ स्वर्ग में परमेश्वर के साथ रहने का अधिकारी बना ही रहेगा। दूसरी बात, वाक्यांश “न्याय किया जाना” का सीधा और साधारण सा अर्थ है कि कुछ निर्धारित मानकों के आधार पर किसी को जाँचा-परखा जाना, उस जाँचने और परखने के आधार पर निष्कर्ष निकालना, और फिर जाँचने-परखने तथा निष्कर्ष के आधार पर उसे उचित परिणामों को दे देना। बाइबल के अनुसार भी, “न्याय किया जाना” का हमेशा ही अर्थ अविश्वासियों, भक्तिहीनों, दुष्टों, और उद्धार न पाए हुओं से हिसाब लेकर उनको उनके द्वारा किये या नहीं किये के लिए दण्ड देना नहीं है। वाक्यांश “न्याय किया जाना” मसीही विश्वासियों पर भी उसी अर्थ के साथ वैसे ही लागू किया जा सकता है; और इस में फिर उन्हें उनके द्वारा किये या नहीं किये के लिए उचित परिणाम देना भी सम्मिलित है।

और उन लोगों को शान्त करने के लिए जिनके मन में घंटियाँ बजने लगी हैं, और जिन्हें परमेश्वर के वचन याद आ रहे हैं कि परमेश्वर की यह प्रतिज्ञा है कि, उसने हमारे पापों को अपनी पीठ पीछे फेंक दिया है, एक काली घटा के समान मिटा दिया है, वह कभी हमारे पापों को स्मरण नहीं करेगा – जी हाँ, यह सभी सत्य है, पूर्णतः बाइबल के अनुसार है, और परमेश्वर के इन कथनों में कोई विरोधाभास या कुछ भी गलती नहीं है, और ये बातें सभी वास्तव में उद्धार पाए हुए लोगों के लिए बिल्कुल सही और उन पर लागू हैं। इस अध्ययन में हम आते समयों में, आगे के लेखों में, इन बातों को देखेंगे, उन के निहितार्थों को और मसीही विश्वासियों पर उनके लागू किए जाने के बारे में भी देखेंगे।

अगले लेख में हम अनन्तकालीन न्याय के एक ऐसे पक्ष के बारे में बाइबल के कुछ उदाहरणों को देखेंगे, जो यहाँ इस पृथ्वी से आरम्भ होता है, और फिर हमेशा के लिए अनन्तकाल ताक बना रहता है।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

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English Translation


The Elementary Principles – 87


Judgment of Believers – 1

 

   In our study of the “Eternal Judgment,” the sixth elementary principle given in Hebrews 6:1-2, so far, we have seen from Acts 17:30-31 that God has ordained for the whole world, all human beings to be judged. God has fixed a day for this to happen, and has made the Lord Jesus the Judge, and He will judge in righteousness; and therefore God commands everyone, everywhere to prepare themselves for this judgment by repenting of their sins and turning to Him to be saved. We have seen that the Lord Jesus will judge only on the basis of whatever is written in God’s Word the Bible, and not on the basis of any man-made rules, regulations, and practices, not on the basis of any denominational teachings and practices; and no person, whosoever he may be, will have any role whatsoever in this judgment, none can in any way influence the Lord’s judgment one way or the other. We have also seen that this judgment is eternal, unalterable, irrevocable. On death, the soul of the person goes to his eternal state – either in a place of peace and bliss, or in the place of torment; and wherever it reaches, it will always stay in the place like that. There is no provision in God’s Word of an interim place where the souls of the dead are held, and depending upon what people do for them on earth, they may be taken to heaven. Neither does God’s Word support the belief of many that since God is loving and forgiving, so eventually, He will forgive everyone and take them all into heaven. These are false satanic teachings, that will never happen, and those who believe in them are heading for a huge, unsurmountable, irreversible, eternal problem for their eternity.

Today we will begin to consider another aspect of the Eternal Judgment; it is an aspect usually not taught or preached, and about which people usually have some confusion and misunderstanding. Therefore, this aspect will require the readers to do some serious pondering over what is written, waiting for the final article about this topic, and then revising it all to draw their final conclusions. What we are going to start looking into today is a Biblical fact that goes contrary to the common thinking of practically all the Christian Believers – the last and final judgment will be of the Christian Believers, and not of the unbelievers! The judgment God’s Word the Bible usually talks about is the judgment of God’s people, not of those who have rejected God and have never become His people, His followers.

Let us start by stating two very important, absolute and unchangeable Biblical facts that have an important bearing on this consideration that we are about to begin. First is that salvation is eternal; once saved is always saved till and into eternity; no-one will ever lose their salvation, not on any grounds, not by any means, no matter how, or what kind of life the truly saved or Born-Again person may have lived. As we will see in the course of this study, the saved person’s life and deeds will affect his eternal rewards, but will never ever alter his status of being saved, of being a child of God, of being a part of the Church, the Body and Bride of the Lord Jesus, of being entitled to stay in heaven for eternity with the other truly Born-Again Christian Believers and the Lord God. Secondly, the term “judgment” simply means evaluating based on some criteria, through that evaluation coming to a conclusion, and handing out the results of the evaluation and conclusions. Even Biblically speaking, “judgment” does not always and necessarily mean taking the unbelievers, the ungodly, the wicked, and the unsaved to task and making them pay for all that they have done and not done. The term “judgment” can just as well apply to the evaluation of the Christian Believers, and then making them receive the consequences of all that they have done and not done.

And for the benefit of those, whose mental alarm-bells are ringing, and they are recalling God’s statement that God has promised that He will never remember their sins, He has cast them all behind His back, land like a dark cloud He has wiped them away forever – yes, that is very true, is absolutely Biblical, there is nothing wrong or contradictory in those statements of God, they are true and applicable to all the truly saved people of God; and in due course we will consider them, their implications, and their application for the Christian Believers, in this study.

In the next article we will see Biblical examples of an aspect of the eternal judgment that starts here on earth, and carries on forever into eternity.

If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

 

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