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शनिवार, 21 जुलाई 2018

आज्ञाकारिता



      पहले बार जब मैंने अपनी पत्नि के साथ मिलकर एक लेख लिखने की परियोजना पर कार्य करना आरंभ किया, तो शीघ्र ही यह प्रगट हो गया कि इस परियोजना में मुख्य बाधा मेरे द्वारा काम को टालना होगी। इस परियोजना में उसका काम था मेरे लिखे हुए को संपादित करना और नियुक्त समय के अनुसार मुझसे काम को पूरा करवाना; और मेरा काम था यह करने में उसे खिसियाना! अधिकांशतः उसका धैर्य और योजनाबद्ध तरीके से काम करवाना, नियत समय एवं निर्देशानुसार के अनुसार मेरे काम न करने की प्रवृत्ति पर भारी पड़ते थे।

      मैं प्रतिज्ञा करता था कि दिन भर में लिखने का इतना कार्य कर लूँगा। पहले घंटे तो मैं बड़ी मेहनत के साथ काम करता रहता। फिर अपने काम करने की क्षमता से निश्चिन्त होकर, मैं काम से थोड़ा विश्राम लेने की सोचता। थोड़ी ही देर में, मेरा विश्राम का समय समाप्त हो जाता। यह जानते हुए कि अब मुझे अपनी पत्नि से इसके लिए कुछ सुनना पड़ेगा, मैं बच निकलने के लिए कुछ और करने की सोचता। मैं कुछ ऐसे घरेलू कार्य करने लगता जो मेरी पत्नि को बिलकुल पसन्द नहीं हैं, और सामान्यतः यदि मैं उन्हें कर देता तो मुझे उस से शाबाशी मिलती थी।

      परन्तु इस परियोजना के लिए, उसे प्रसन्न करने की मेरी यह योजना व्यर्थ चली जाती।

      कभी-कभी मैं ऐसे ही खेल परमेश्वर के साथ भी खेलता हूँ। वह मेरे जीवन में कुछ लोगों को किसी विशेष सेवकाई के लिए लेकर आता है, या मुझसे कुछ विशेष कार्य करवाना चाहता है। जैसे योना परमेश्वर द्वारा उसके लिए निर्धारित कार्य से विमुख होकर विपरीत दिशा में चला गया था (योना 4:2), वैसे ही मैं भी अपना ही मार्ग चुन लेता हूँ। फिर मैं परमेश्वर को कुछ अच्छे कार्यों या आत्मिक गतिविधियों द्वारा प्रसन्न करने का प्रयास करता हूँ। जबकि परमेश्वर मुझ से केवल अपनी आज्ञाकारिता, और उसकी प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करवाना चाहता है। निश्चय ही परमेश्वर को प्रभावित करने के मेरे ये सभी प्रयास व्यर्थ ठहरते हैं।

      क्या आप भी उन कार्यों को करने से मन चुरा रहे हैं, जिन्हें आप जानते हैं कि परमेश्वर आपके द्वारा करवाना चाहता है? मेरा विश्वास कीजिए; सच्ची संतुष्टि उसके द्वारा सौंपे गए कार्य को, उसके मार्गदर्शन और उसकी सामर्थ्य के द्वारा करने से ही आती है।

      परमेश्वर केवल अपनी आज्ञाकारिता ही के द्वारा प्रसन्न होता है। - रैंडी किल्गोर


केवल परमेश्वर आज्ञाकारिता ही उसको प्रसन्न करती है।

शमूएल ने कहा, क्या यहोवा होमबलियों, और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन मानना तो बलि चढ़ाने और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है। - 1 शमूएल 15:22

बाइबल पाठ: योना 4
Jonah 4:1 यह बात योना को बहुत ही बुरी लगी, और उसका क्रोध भड़का।
Jonah 4:2 और उसने यहोवा से यह कह कर प्रार्थना की, हे यहोवा जब मैं अपने देश में था, तब क्या मैं यही बात न कहता था? इसी कारण मैं ने तेरी आज्ञा सुनते ही तर्शीश को भाग जाने के लिये फुर्ती की; क्योंकि मैं जानता था कि तू अनुग्रहकारी और दयालु परमेश्वर है, विलम्ब से कोप करने वाला करूणानिधान है, और दु:ख देने से प्रसन्न नहीं होता।
Jonah 4:3 सो अब हे यहोवा, मेरा प्राण ले ले; क्योंकि मेरे लिये जीवित रहने से मरना ही भला है।
Jonah 4:4 यहोवा ने कहा, तेरा जो क्रोध भड़का है, क्या वह उचित है?
Jonah 4:5 इस पर योना उस नगर से निकल कर, उसकी पूरब ओर बैठ गया; और वहां एक छप्पर बना कर उसकी छाया में बैठा हुआ यह देखने लगा कि नगर को क्या होगा?
Jonah 4:6 तब यहोवा परमेश्वर ने एक रेंड़ का पेड़ लगा कर ऐसा बढ़ाया कि योना के सिर पर छाया हो, जिस से उसका दु:ख दूर हो। योना उस रेंड़ के पेड़ के कारण बहुत ही आनन्दित हुआ।
Jonah 4:7 बिहान को जब पौ फटने लगी, तब परमेश्वर ने एक कीड़े को भेजा, जिसने रेंड़ का पेड़ ऐसा काटा कि वह सूख गया।
Jonah 4:8 जब सूर्य उगा, तब परमेश्वर ने पुरवाई बहा कर लू चलाई, और घाम योना के सिर पर ऐसा लगा कि वह मूर्च्छा खाने लगा; और उसने यह कह कर मृत्यु मांगी, मेरे लिये जीवित रहने से मरना ही अच्छा है।
Jonah 4:9 परमेश्वर ने योना से कहा, तेरा क्रोध, जो रेंड़ के पेड़ के कारण भड़का है, क्या वह उचित है? उसने कहा, हां, मेरा जो क्रोध भड़का है वह अच्छा ही है, वरन क्रोध के मारे मरना भी अच्छा होता।
Jonah 4:10 तब यहोवा ने कहा, जिस रेंड़ के पेड़ के लिये तू ने कुछ परिश्रम नहीं किया, न उसको बढ़ाया, जो एक ही रात में हुआ, और एक ही रात में नाश भी हुआ; उस पर तू ने तरस खाया है।
Jonah 4:11 फिर यह बड़ा नगर नीनवे, जिस में एक लाख बीस हजार से अधिक मनुष्य हैं, जो अपने दाहिने बाएं हाथों का भेद नहीं पहिचानते, और बहुत घरेलू पशु भी उस में रहते हैं, तो क्या मैं उस पर तरस न खाऊं?
     

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 29-30
  • प्रेरितों 23:1-15