ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 18 जुलाई 2019

तैयार



      मेरे शहर के एक चर्च में लोगों का स्वागत करने के लिए एक अद्वितीय कार्ड का प्रयोग किया जाता है; ऐसा कार्ड जिससे सब के लिए परमेश्वर का प्रेम और अनुग्रह प्रदर्शित होता है। उस कार्ड पर लिखा है, “यदि आप एक...संत, पापी, पराजित, विजयी” – और इससे आगे अनेकों अन्य शब्द जो संघर्षरत लोगों की स्थिति का वर्णन करते हैं, जैसे कि – “शराबी , पाखंडी, धोखेबाज़, भयभीत, अनुपयुक्त...हैं, तो आपका यहाँ पर स्वागत है।” उस चर्च के एक पास्टर ने मुझे बताया कि, “प्रत्येक इतवार को होने वाली आराधना सभा में, चर्च में उपस्थित हम सभी लोग ऊँची आवाज़ में इसे एक साथ पढ़ते हैं।”

      कितनी ही बार हम उपनामों को स्वीकार कर लेते हैं और उन्हें हमें परिभाषित करने देते हैं। परन्तु परमेश्वर का अनुग्रह उपनामों की कोई परवाह नहीं करता है, क्योंकि उसका अनुग्रह हमारे प्रति उसके प्रेम पर आधारित है, न कि हमारे अपने प्रति आँकलन पर। हम अपने आप को चाहे अद्भुत समझें अथवा भयानक, योग्य समझें अथवा अयोग्य और अनुपयुक्त, हम परमेश्वर से अनन्त जीवन का दान प्राप्त कर सकते हैं। प्रेरित पौलुस ने रोम के मसीही विश्वासियों को स्मरण दिलाया कि, “क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिये मरा” (रोमियों 5:6)।

      प्रभु की हमसे यह अपेक्षा नहीं है कि हम अपने आप परिवर्तित हो जाएँगे। वरन वह हमें आमंत्रित करता है कि हम जैसे भी हैं, वैसे ही उसके पास आ जाएँ, और हमें उसमें आशा, चंगाई और स्वतंत्रता मिलेगी : “परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा” (पद 8)। हम जैसे भी हैं, जो भी हैं, जहाँ भी हैं, हमारी यथास्थिति में प्रभु परमेश्वर हमें स्वीकार करने के लिए तैयार है। - डेविड मैक्कैस्लैंड


परमेश्वर की क्षमा हमारे पराजित अथवा घमण्डी, 
किसी भी उपनाम की उपेक्षा करने को तैयार है।

यहोवा कहता है, आओ, हम आपस में वादविवाद करें: तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तौभी वे हिम के समान उजले हो जाएंगे; और चाहे अर्गवानी रंग के हों, तौभी वे ऊन के समान श्वेत हो जाएंगे। यदि तुम आज्ञाकारी हो कर मेरी मानो। - यशायाह 1:18-19

बाइबल पाठ: रोमियों 5:1-11
Romans 5:1 सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें।
Romans 5:2 जिस के द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक, जिस में हम बने हैं, हमारी पहुंच भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें।
Romans 5:3 केवल यही नहीं, वरन हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज।
Romans 5:4 ओर धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है।
Romans 5:5 और आशा से लज्ज़ा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है।
Romans 5:6 क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिये मरा।
Romans 5:7 किसी धर्मी जन के लिये कोई मरे, यह तो र्दुलभ है, परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का भी हियाव करे।
Romans 5:8 परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।
Romans 5:9 सो जब कि हम, अब उसके लोहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा क्रोध से क्यों न बचेंगे?
Romans 5:10 क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे?
Romans 5:11 और केवल यही नहीं, परन्तु हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जिस के द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्वर के विषय में घमण्ड भी करते हैं।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 20-22
  • प्रेरितों 21:1-17