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गुरुवार, 14 मई 2015

महत्व


   मेरी परवरिश एक छोटे से कस्बे में हुई; वहाँ ना कोई प्रसिद्ध लोग थे, ना ही मार्गों पर कोई भीड़-भाड़ थी और ना ही करने के लिए कुछ अधिक काम थे। लेकिन सांसारिकता के बुरे प्रभावों से दूर, मैं अपनी शान्त, सरल, तथा सीधी-सादी परवरिश के लिए सदा धन्यवादी रही हूँ। एक संध्या जब मैं और मेरे पति एक व्यावसायिक समारोह में रात्रि के भोजन पर आमंत्रित थे तो वहाँ उपस्थित एक स्त्री ने मुझ से पूछा कि मैं किस स्थान से हूँ; जब मैंने उसे अपने उस छोटे से कस्बे का नाम बताया तो वह तुरंत बोली, "क्या उस छोटे से स्थान को स्वीकारने में तुम्हें कोई संकोच नहीं होता?" मुझे समझ नहीं आया कि वह मज़ाक कर रही है या गंभीरता से यह कह रही है, किंतु तुरंत ही मेरा उत्तर था, "नहीं!" चाहे मेरा वह कस्बा आधुनिकता के मामले में छोटा समझा जाता हो किंतु जीवन के लिए महत्वपूर्ण बातों में वह कदापि छोटा नहीं था। मेरा परिवार एक ऐसे चर्च समूह का अंग था जहाँ अभिभावक अपने बच्चों की परवरिश परमेश्वर के वचन बाइबल में इफिसियों 6:4 में दिए गए निर्देशानुसार करते थे।

   हमारे प्रभु यीशु की परवरिश भी एक छोटे से स्थान नासरत में हुई थी। जब प्रभु यीशु की सेवकाई आरंभ हुई तो उसके विषय में नतनएल नामक एक व्यक्ति ने कहा, "...क्या कोई अच्छी वस्तु भी नासरत से निकल सकती है?..." (यूहन्ना 1:46)। प्रभु यीशु ने प्रमाणित कर दिया कि नतनएल के प्रश्न का उत्तर था "हाँ"; यद्यपि प्रभु यीशु की परवरिश एक छोटे से महत्वहीन स्थान नासरत में हुई वे संसार भर के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए और आज भी हैं।

   अनुभव ने मुझे सिखाया है और बाइबल भी इसको प्रमाणित करती है कि महत्व इस बात का नहीं है कि आप की परवरिश कहाँ पर हुई है, वरन इस बात का है कि वह परवरिश कैसी हुई है! कई बार लोग हमें बड़े स्थानों से आने वाले महत्वपूर्ण लोगों के अपेक्षा छोटा मानने लगते हैं, और यही हमें जताने का भी प्रयास करते हैं। किंतु सदा स्मरण रखे कि हम परमेश्वर के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं; इतने कि हमें अपने पास ले आने के लिए उसने अपने एकलौते पुत्र को बलिदान होने के लिए भेज दिया, ताकि हम अनन्त काल तक उसके साथ रहें। जब हम परमेश्वर के वचन के अनुसार अपने जीवन को चलाते हैं तो वह हमें आत्मा में बलवन्त और बुद्धिमान भी बना देता है, किसी के सामने छोटा नहीं रहने देता और अन्ततः अपने स्वर्गीय राज्य में आदर के साथ अनन्तकाल के लिए हमारा स्वागत करता है। - जूली ऐकैरमैन लिंक


हम कहाँ से आए हैं से अधिक महत्वपूर्ण है कि हम क्या बन सके हैं और सबसे महत्वपूर्ण है कि अन्ततः हम कहाँ जाएंगे।

और हे बच्‍चे वालों अपने बच्‍चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो। - इफिसियों 6:4

बाइबल पाठ: लूका 2:41-52
Luke 2:41 उसके माता-पिता प्रति वर्ष फसह के पर्व में यरूशलेम को जाया करते थे। 
Luke 2:42 जब वह बारह वर्ष का हुआ, तो वे पर्व की रीति के अनुसार यरूशलेम को गए। 
Luke 2:43 और जब वे उन दिनों को पूरा कर के लौटने लगे, तो वह लड़का यीशु यरूशलेम में रह गया; और यह उसके माता-पिता नहीं जानते थे। 
Luke 2:44 वे यह समझकर, कि वह और यात्रियों के साथ होगा, एक दिन का पड़ाव निकल गए: और उसे अपने कुटुम्बियों और जान-पहचानों में ढूंढ़ने लगे। 
Luke 2:45 पर जब नहीं मिला, तो ढूंढ़ते-ढूंढ़ते यरूशलेम को फिर लौट गए। 
Luke 2:46 और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उन की सुनते और उन से प्रश्न करते हुए पाया। 
Luke 2:47 और जितने उस की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरों से चकित थे। 
Luke 2:48 तब वे उसे देखकर चकित हुए और उस की माता ने उस से कहा; हे पुत्र, तू ने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूंढ़ते थे। 
Luke 2:49 उसने उन से कहा; तुम मुझे क्यों ढूंढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है? 
Luke 2:50 परन्तु जो बात उसने उन से कही, उन्होंने उसे नहीं समझा। 
Luke 2:51 तब वह उन के साथ गया, और नासरत में आया, और उन के वश में रहा; और उस की माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं।
Luke 2:52 और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 राजा 19-21
  • यूहन्ना 4:1-30