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बुधवार, 27 अप्रैल 2016

प्रेम


   जब हैन्स ऐग्डे 1721 में मिशनरी होकर ग्रीनलैंड गए, तब वे वहाँ की स्थानीय इन्युइट लोगों की भाषा नहीं जानते थे। साथ ही, क्योंकि वे स्वभाव से अपना रौब बना कर रखने वाले थे, इस कारण उन्हें स्थानीय लोगों के प्रति प्रेम तथा दया दिखाने के लिए काफी प्रयास करना पड़ता था। सन 1733 में ग्रीनलैंड में चेचक की महामारी फैली जिससे दो तिहाई इन्युइट लोगों का सफाया हो गया; मृतकों में ऐग्डे की पत्नि भी थीं। इन्युइट लोगों के समान ही दुखः भोगने के इस अनुभव ने ऐग्डे के कठोर स्वभाव को पिघला दिया, और वे लोगों की शारीरिक तथा आत्मिक सेवा जी-जान से करने लगे। क्योंकि उनकी यह नई जीवन शैली परमेश्वर के प्रेम की उन बातों के अनुरूप थी जिन्हें वे लोगों को बताते और सुनाते थे, इन्युइट लोग जान और समझ सके कि परमेश्वर उन से भी प्रेम करता है, उनका भला चाहता है। अपने दुखः के समय में भी वे लोग परमेश्वर की ओर मुड़े और उसे ग्रहण किया।

   हो सकता है कि इस घटना के इन्युइट लोगों के समान आप की भी स्थिति हो, और आप अपने आस-पास के लोगों में परमेश्वर और उसके प्रेम को नहीं देख पा रहे हों। या, हो सकता है कि आप हैन्स ऐग्डे के समान हों, जो परमेश्वर के प्रेम को अपने जीवन से ऐसे जी कर दिखाने के लिए संघर्ष कर रहे थे जिससे लोग परमेश्वर की ओर मुड़ें।

   क्योंकि परमेश्वर जानता है कि हम मनुष्य कमज़ोर और ज़रुरतमन्द हैं, इसलिए अपने प्रेम को हमें दिखाने और समझाने के लिए परमेश्वर ने अपने पुत्र प्रभु यीशु मसीह को हमारे पापों के निवारण के लिए बलिदान होने को भेजा (यूहन्ना 3:16)। हमारी भलाई के लिए अपने निष्पाप और निष्कलंक पुत्र के बलिदान कर देने के द्वारा परमेश्वर ने सप्रमाण दिखाया कि वह हम से कितना प्रेम करता है।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में 1 कुरिन्थियों 13 में लिखित प्रेम की व्याख्या का सदेह उदाहरण प्रभु यीशु मसीह हैं। केवल प्रभु यीशु से ही हम सच्चा निस्वार्थ प्रेम करने का अर्थ सीखते हैं और उसे अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करने से हम उससे दूसरों के प्रति सच्चा प्रेम करने की सामर्थ पाते हैं। - रैंडी किलगोर


मैं कभी किसी के लिए परमेश्वर के स्वरूप को देखने से बाधित करने वाली बाधा ना बनूँ।

क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। - यूहन्ना 3:16

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 13:1-13
1 Corinthians 13:1 यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं। 
1 Corinthians 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं। 
1 Corinthians 13:3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं। 
1 Corinthians 13:4 प्रेम धीरजवन्‍त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। 
1 Corinthians 13:5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। 
1 Corinthians 13:6 कुकर्म से आनन्‍दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्‍दित होता है। 
1 Corinthians 13:7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। 
1 Corinthians 13:8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्‍त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा। 
1 Corinthians 13:9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी। 
1 Corinthians 13:10 परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा। 
1 Corinthians 13:11 जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दी। 
1 Corinthians 13:12 अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं। 
1 Corinthians 13:13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम थे तीनों स्थाई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 राजा 1-2
  • लूका 19:28-48