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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

प्रलोभन और परीक्षा

   यद्यपि प्रलोभन और परीक्षा अधिकांशतः साथ ही आते हैं, दोनो में फर्क की एक महीन रेखा है। परमेश्वर के वचन बाइबल के नए नियम की मूल यूनानी भाषा में दोनो के लिए एक ही शब्द प्रयोग हुआ है। याकूब १:२,३ में कहा गया है कि "हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसे पूरे आनन्‍द की बात समझो..." और मत्ती २६:४१ में प्रभु यीशु ने अपने चेलों से कहा कि "जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो" - पहला उदाहरण भले के लिए है और दूसरा खतरे से बचने के लिए।

   १९वीं सदी के एक पास्टर एलेक्ज़ैंडर मैक्लैरन ने प्रलभोन और परीक्षा के बीच की इस महीन रेखा के फर्क को समझाया। उन्होंने कहा, "प्रलोभन कहता है, इस मज़ेदार काम को करो, इस बात से चिंतित मत हो कि यह कम बुरा है। जबकि परीक्षा कहती है, इस सही और भले काम को करो, इस बात की चिंता मत करो कि इसे करने में कष्ट होगा। एक मधुर और सुखद प्रतीत होने किंतु बहका देने वाली धुन है जो अन्तरात्मा को सुला कर धीरे से विनाश की ओर मोड़ देती है तो दूसरा श्रेष्ठ लक्ष्यों की प्राप्ति के संघर्ष के लिए रणभेरी की आवाज़ है।"

   प्रत्येक कठिनाई प्रलोभन भी बन सकती है और परीक्षा भी। जब हम कष्ट और परेशानियों से बचने के लिए समझौते करके छोटे और गलत रास्ते अपनाते हैं तो कठिनाई प्रलोभन बन जाती है। किंतु जब हम हर गलत बात का विरोध करके कठिनाईयों को आगे बढ़ने के अवसर के रूप में देखते हैं तो वह हमारी उन्नति के लिए परीक्षा बन जाती है। जब हम उन्नति के इन अवसरों को स्वीकार करते रहते हैं, और परमेश्वर के पवित्र आत्मा की अगुवाई और सामर्थ में सही लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहते हैं, तो परमेश्वर के वचन "तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे" (याकूब १:४) की पूर्ति की ओर अग्रसर भी होते रहते हैं।

   प्रलोभन और परीक्षा में हमारा रवैया, हमारी उन्न्ति अथवा अवनति को निर्धारित करता है। - डेनिस डी हॉन


परमेश्वर आपको परीक्षाओं द्वारा सामर्थी और उन्नत करना चाहता है तो शैतान प्रलोभनों द्वारा गिराने के प्रयास में रहता है।

हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसे पूरे आनन्‍द की बात समझो... - याकूब १:२,३
 
बाइबल पाठ: याकूब १:१-१५
    Jas 1:1  परमेश्वर के और प्रभु यीशु मसीह के दास याकूब की ओर से उन बारहों गोत्रों  को जो तित्तर बित्तर होकर रहते हैं नमस्‍कार पहुंचे।
    Jas 1:2  हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो
    Jas 1:3  तो इसे पूरे आनन्‍द की बात समझो, यह जान कर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्‍पन्न होता है।
    Jas 1:4  पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे।
    Jas 1:5  पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी।
    Jas 1:6  पर विश्वास से मांगे, और कुछ सन्‍देह न करे; क्‍योंकि सन्‍देह करने वाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है।
    Jas 1:7  ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा।
    Jas 1:8  वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है।
    Jas 1:9  दीन भाई अपने ऊंचे पद पर घमण्‍ड करे।
    Jas 1:10  और धनवान अपनी नीच दशा पर: क्‍योंकि वह घास के फूल की नाई जाता रहेगा।
    Jas 1:11  क्‍योंकि सूर्य उदय होते ही कड़ी धूप पड़ती है और घास को सुखा देती है, और उसका फूल झड़ जाता है, और उस की शोभा जाती रहती है; उसी प्रकार धनवान भी अपने मार्ग पर चलते चलते धूल में मिल जाएगा।
    Jas 1:12  धन्य है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्‍योंकि वह खरा निकल कर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिस की प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करने वालों को दी है।
    Jas 1:13  जब किसी ही परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्‍योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वही किसी की परीक्षा आप करता है।
    Jas 1:14  परन्‍तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंच कर, और फंस कर परीक्षा में पड़ता है।
    Jas 1:15  फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्‍पन्न करता है।
 
एक साल में बाइबल: 
  • नीतिवचन २५-२६ 
  • २ कुरिन्थियों ९