ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

शान्त


   वर्षों पहले मैं पत्रों का उत्तर कुछ ही सप्ताह के अन्दर दे देता था, और मेरे साथ पत्राचार करने वाले इससे प्रसन्न रहते थे। फिर फैक्स मशीनें आ गईं, और उत्तर कुछ ही दिनों के भीतर दिए जाने लगे। आज ईमेल, मैसेजिंग, और मोबाइल फोनों के कारण, मुझसे उत्तर की उसी दिन अपेक्षा की जाती है!

   परमेश्वर के वचन बाइबल की एक जानी-पहचानी आयात है, “चुप हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियों में महान हूं, मैं पृथ्वी भर में महान हूं” (भजन 46:10)। बाइबल के इस पद में मैं परमेश्वर की ओर से समान महत्व की दो आज्ञाओं को पढ़ता हूँ: पहली, हमें शान्त या चुप रहना है – यह ऐसी बात है, आज का जीवन जिसके विरुद्ध चलता और चलवाता है। इस उत्तेजित और कोलाहल भरे सँसार में कुछ पलों की शान्ति भी हमारे लिए सामान्यतः उपलब्ध नहीं रहती है। हमारी शान्ति ही हमें दूसरी आज्ञा के लिए तैयार करती है: “जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियों में महान हूं, मैं पृथ्वी भर में महान हूं ।” यह सँसार, जो परमेश्वर के अस्तित्व को महिमा देने की बजाए उसे दबा देना चाहता है, इसमें रहते और कार्य करते हुए मैं कैसे समय निकालूं जिसमें होकर मैं परमेश्वर के साथ समय ऐसा बिता सकूँ, जिसके द्वारा वह मेरे भीतरी जीवन को पोषित कर सके।

   पैट्रीश्या हम्पल लिखती हैं कि “प्रार्थना वह आदत है जो हर बात पर ध्यान करवाती है।” आहा, प्रार्थना...ध्यान लगाने की आदत। शान्त हो जाओ और जान लो। प्रार्थना में सबसे पहला कदम होता है कि इस बात को समझें और जानें कि परमेश्वर परमेश्वर ही है। इस तथ्य को समझने और इस पर ध्यान केंद्रित करने से शेष सभी बातें स्वतः ही ध्यान के केन्द्र में आ जाती हैं। प्रार्थना हमें हमारी असफलताओं, कमजोरियों, और सीमाओं को उस महान प्रभु परमेश्वर के सम्मुख स्वीकार करवा देती है, जो मानवीय कमजोरियों के प्रति अनन्त करुणा के साथ व्यवहार करता है। - फिलिप यैन्सी


प्रार्थना में परमेश्वर हमारे मनों को शान्त कर सकता है।

मैं तुम्हें शान्‍ति दिए जाता हूं, अपनी शान्‍ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। - यूहन्ना 14:27

बाइबल पाठ: भजन 46
Psalms 46:1 परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलने वाला सहायक।
Psalms 46:2 इस कारण हम को कोई भय नहीं चाहे पृथ्वी उलट जाए, और पहाड़ समुद्र के बीच में डाल दिए जाएं;
Psalms 46:3 चाहे समुद्र गरजे और फेन उठाए, और पहाड़ उसकी बाढ़ से कांप उठें।।
Psalms 46:4 एक नदी है जिसकी नहरों से परमेश्वर के नगर में अर्थात परमप्रधान के पवित्र निवास भवन में आनन्द होता है।
Psalms 46:5 परमेश्वर उस नगर के बीच में है, वह कभी टलने का नहीं; पौ फटते ही परमेश्वर उसकी सहायता करता है।
Psalms 46:6 जाति जाति के लोग झल्ला उठे, राज्य राज्य के लोग डगमगाने लगे; वह बोल उठा, और पृथ्वी पिघल गई।
Psalms 46:7 सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।
Psalms 46:8 आओ, यहोवा के महाकर्म देखो, कि उसने पृथ्वी पर कैसा कैसा उजाड़ किया है।
Psalms 46:9 वह पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है; वह धनुष को तोड़ता, और भाले को दो टुकड़े कर डालता है, और रथों को आग में झोंक देता है!
Psalms 46:10 चुप हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियों में महान हूं, मैं पृथ्वी भर में महान हूं!
Psalms 46:11 सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।


एक साल में बाइबल: 
  • गिनती 4-6
  • मरकुस 4:1-20