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रविवार, 10 मई 2020

दृष्टि



     एमी कार्माईकल (1867-1951) भारत में अनाथ लड़कियों को देवदासी बनाए जाने से बचाने और उन्हें नया जीवन देने के लिए सुविख्यात हैं। इस कठिन और थका देने वाले कार्य के मध्य में उनके पास कुछ समय ऐसे होते थे जिन्हें उन्होंने अपनी पुस्तक, ‘गोल्ड बाय मून्लाईट’ में “दर्शन के पल” कहा है। उन्होंने लिखा, “किसी व्यस्त दिन के मध्य में, हमें दूर स्थित एक देश की एक झलक दी जाती है और हम उस झलक भर को देख कर मार्ग में ही स्तब्ध खड़े रह जाते हैं।”

     परमेश्वर के वचन बाइबल में यशायाह भविष्यद्वक्ता ने एक ऐसे समय के विषय लिखा जब परमेश्वर के बलवाई लोग वापस उस की ओर मुड़ेंगे, “तू अपनी आंखों से राजा को उसकी शोभा सहित देखेगा; और लम्बे चौड़े देश पर दृष्टि करेगा” (यशायाह 33:17)। इस दूर स्थित देश को देखना, अपनी वर्तमान परिस्थितियों से ऊपर उठ कर अनन्त का दृष्टिकोण प्राप्त करना है। हमारी कठिनाईयों के समयों में परमेश्वर हमें हमारे जीवनों को उस के दृष्टिकोण से देखने और आशा रखने के लिए सक्षम करता है, “क्योंकि यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा हाकिम, यहोवा हमारा राजा है; वही हमारा उद्धार करेगा” (पद 22)।

     हर दिन, हम चुन सकते हैं कि निराश हो कर नीचे देखेंगे, या अपनी आँखें उस दूर स्थित देश की ओर, उस प्रभु परमेश्वर की ओर जो हमारा “महाप्रतापी यहोवा” (पद 21) है लगाएंगे।

     एमी कार्माईकल ने भारत में पचासे से भी अधिक वर्ष व्यतीत किए, उन युवतियों और जवान स्त्रियों की सहायता करने के लिए जिन्हें इसकी बहुत आवश्यकता थी। वह यह कैसे कर सकीं? उनका मन्त्र था, प्रति दिन अपनी दृष्टि प्रभु यीशु पर लगाए रखें और अपना जीवन उनकी देखभाल के सुपुर्द कर दें। यही हम भी कर सकते हैं – सदा, हर बात के लिए ,अपनी दृष्टि प्रभु यीशु पर लगाए रखो। - डेविड सी. मैक्कैसलैंड

अपनी दृष्टि और ध्यान प्रभु यीशु पर केन्द्रित रखो।

उठ, प्रकाशमान हो; क्योंकि तेरा प्रकाश आ गया है, और यहोवा का तेज तेरे ऊपर उदय हुआ है। देख, पृथ्वी पर तो अन्धियारा और राज्य राज्य के लोगों पर घोर अन्धकार छाया हुआ है; परन्तु तेरे ऊपर यहोवा उदय होगा, और उसका तेज तुझ पर प्रगट होगा। - यशायाह 60:1-2

बाइबल पाठ: यशायाह 33:17-22
यशायाह 33:17 तू अपनी आंखों से राजा को उसकी शोभा सहित देखेगा; और लम्बे चौड़े देश पर दृष्टि करेगा।
यशायाह 33:18 तू भय के दिनों को स्मरण करेगा: लेखा लेने वाला और कर तौल कर लेने वाला कहां रहा? गुम्मटों का गिनने वाला कहां रहा?
यशायाह 33:19 जिनकी कठिन भाषा तू नहीं समझता, और जिनकी लड़खड़ाती जीभ की बात तू नहीं बूझ सकता उन निर्दय लोगों को तू फिर न देखेगा।
यशायाह 33:20 हमारे पर्व के नगर सिय्योन पर दृष्टि कर! तू अपनी आंखों से यरूशेलम को देखेगा, वह विश्राम का स्थान, और ऐसा तम्बू है जो कभी गिराया नहीं जाएगा, जिसका कोई खूंटा कभी उखाड़ा न जाएगा, और न कोई रस्सी कभी टूटेगी।
यशायाह 33:21 वहां महाप्रतापी यहोवा हमारे लिये रहेगा, वह बहुत बड़ी बड़ी नदियों और नहरों का स्थान होगा, जिस में डाँडवाली नाव न चलेगी और न शोभायमान जहाज उस में हो कर जाएगा।
यशायाह 33:22 क्योंकि यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा हाकिम, यहोवा हमारा राजा है; वही हमारा उद्धार करेगा।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 राजाओं 10-12
  • यूहन्ना 1:29-51



गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

शान्त


   वर्षों पहले मैं पत्रों का उत्तर कुछ ही सप्ताह के अन्दर दे देता था, और मेरे साथ पत्राचार करने वाले इससे प्रसन्न रहते थे। फिर फैक्स मशीनें आ गईं, और उत्तर कुछ ही दिनों के भीतर दिए जाने लगे। आज ईमेल, मैसेजिंग, और मोबाइल फोनों के कारण, मुझसे उत्तर की उसी दिन अपेक्षा की जाती है!

   परमेश्वर के वचन बाइबल की एक जानी-पहचानी आयात है, “चुप हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियों में महान हूं, मैं पृथ्वी भर में महान हूं” (भजन 46:10)। बाइबल के इस पद में मैं परमेश्वर की ओर से समान महत्व की दो आज्ञाओं को पढ़ता हूँ: पहली, हमें शान्त या चुप रहना है – यह ऐसी बात है, आज का जीवन जिसके विरुद्ध चलता और चलवाता है। इस उत्तेजित और कोलाहल भरे सँसार में कुछ पलों की शान्ति भी हमारे लिए सामान्यतः उपलब्ध नहीं रहती है। हमारी शान्ति ही हमें दूसरी आज्ञा के लिए तैयार करती है: “जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियों में महान हूं, मैं पृथ्वी भर में महान हूं ।” यह सँसार, जो परमेश्वर के अस्तित्व को महिमा देने की बजाए उसे दबा देना चाहता है, इसमें रहते और कार्य करते हुए मैं कैसे समय निकालूं जिसमें होकर मैं परमेश्वर के साथ समय ऐसा बिता सकूँ, जिसके द्वारा वह मेरे भीतरी जीवन को पोषित कर सके।

   पैट्रीश्या हम्पल लिखती हैं कि “प्रार्थना वह आदत है जो हर बात पर ध्यान करवाती है।” आहा, प्रार्थना...ध्यान लगाने की आदत। शान्त हो जाओ और जान लो। प्रार्थना में सबसे पहला कदम होता है कि इस बात को समझें और जानें कि परमेश्वर परमेश्वर ही है। इस तथ्य को समझने और इस पर ध्यान केंद्रित करने से शेष सभी बातें स्वतः ही ध्यान के केन्द्र में आ जाती हैं। प्रार्थना हमें हमारी असफलताओं, कमजोरियों, और सीमाओं को उस महान प्रभु परमेश्वर के सम्मुख स्वीकार करवा देती है, जो मानवीय कमजोरियों के प्रति अनन्त करुणा के साथ व्यवहार करता है। - फिलिप यैन्सी


प्रार्थना में परमेश्वर हमारे मनों को शान्त कर सकता है।

मैं तुम्हें शान्‍ति दिए जाता हूं, अपनी शान्‍ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। - यूहन्ना 14:27

बाइबल पाठ: भजन 46
Psalms 46:1 परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलने वाला सहायक।
Psalms 46:2 इस कारण हम को कोई भय नहीं चाहे पृथ्वी उलट जाए, और पहाड़ समुद्र के बीच में डाल दिए जाएं;
Psalms 46:3 चाहे समुद्र गरजे और फेन उठाए, और पहाड़ उसकी बाढ़ से कांप उठें।।
Psalms 46:4 एक नदी है जिसकी नहरों से परमेश्वर के नगर में अर्थात परमप्रधान के पवित्र निवास भवन में आनन्द होता है।
Psalms 46:5 परमेश्वर उस नगर के बीच में है, वह कभी टलने का नहीं; पौ फटते ही परमेश्वर उसकी सहायता करता है।
Psalms 46:6 जाति जाति के लोग झल्ला उठे, राज्य राज्य के लोग डगमगाने लगे; वह बोल उठा, और पृथ्वी पिघल गई।
Psalms 46:7 सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।
Psalms 46:8 आओ, यहोवा के महाकर्म देखो, कि उसने पृथ्वी पर कैसा कैसा उजाड़ किया है।
Psalms 46:9 वह पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है; वह धनुष को तोड़ता, और भाले को दो टुकड़े कर डालता है, और रथों को आग में झोंक देता है!
Psalms 46:10 चुप हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियों में महान हूं, मैं पृथ्वी भर में महान हूं!
Psalms 46:11 सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।


एक साल में बाइबल: 
  • गिनती 4-6
  • मरकुस 4:1-20



सोमवार, 22 जनवरी 2018

केंद्रित


   मैंने एक कार्यस्थल पर कुछ लोगों के लिए मसीही विश्वास से संबंधित एक पाठ्यक्रम-कार्यशाला को संचालित किया था; कार्यशाला के बाद एक अधेड़ व्यक्ति मेरे पास आया और उसने मुझ से पूछा, “मैं लगभग अपने पूरे जीवन भर मसीही रहा हूँ, परन्तु मैं बारंबार अपने आप से निरुत्साहित होता हूँ। ऐसा क्यों है कि मैं वही काम करता रहता हूँ जिन्हें मैं करना नहीं चाहता हूँ; और जो मुझे करना चाहिए वह नहीं कर पाता हूँ। क्या परमेश्वर मुझसे थक नहीं गया होगा?” मेरे पास खड़े दो और व्यक्ति भी उसके इस प्रश्न का उत्तर सुनने के लिए आतुर लग रहे थे।

   यह एक सामान्य संघर्ष है जिसका अनुभव प्रेरित पौलुस ने भी किया था। परमेश्वर के वचन बाइबल में, पौलुस ने रोम के मसीही विश्वासियों को लिखी अपनी पत्री में लिखा, “और जो मैं करता हूं, उसको नहीं जानता, क्योंकि जो मैं चाहता हूं, वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है, वही करता हूं” (रोमियों 7:15)। परन्तु एक अच्छा समाचार भी है: हमें निराशा के इस फंदे में फंसे हुए नहीं रहना है। पौलुस ने इससे निकलने का जो मार्ग रोमियों 8 में लिखा, उसका सार यह है कि विधियों और नियमों को निभाने और पूरा करने के प्रयासों पर केंद्रित होने के स्थान पर हमें मसीह यीशु पर केंद्रित होना चाहिए। हम अपनी सामर्थ्य से अपनी पाप-प्रवृत्ति के बारे में कुछ नहीं कर सकते हैं; इसलिए नियम निभाने और विधियों को पूरा करने के और अधिक सबल प्रयास करने से कोई लाभ होने वाला नहीं है। इसके स्थान पर हमें उस पर अपने आप को केंद्रित करना चाहिए जो हम पर अनुग्रह करता है, और हमें परिवर्तित करने वाले उसके पवित्र-आत्मा के साथ सहयोग करना चाहिए।

   जब हम विधियों और नियमों पर केंद्रित रहते हैं, तो हमें निरंतर यह एहसास होता रहता है कि परमेश्वर के अनुग्रह को प्राप्त करने के योग्य भले हम कभी नहीं होने पाएँगे। परन्तु जब हम मसीह यीशु पर केंद्रित रहते हैं, तो हमें ध्यान रहता है कि वह हमारा सहायक बनकर सदा हमारे पक्ष में परमेश्वर के सम्मुख कार्य करता रहता है। - रैंडी किल्गोर


प्रभु यीशु पर केंद्रित रहें।

हे मेरे बालकों, मैं ये बातें तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात धार्मिक यीशु मसीह। और वही हमारे पापों का प्रायश्‍चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, वरन सारे जगत के पापों का भी। - 1 यूहन्ना 2:1-2

बाइबल पाठ: रोमियों 7:15- 8:4
Romans 7:15 और जो मैं करता हूं, उसको नहीं जानता, क्योंकि जो मैं चाहता हूं, वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है, वही करता हूं।
Romans 7:16 और यदि, जो मैं नहीं चाहता वही करता हूं, तो मैं मान लेता हूं, कि व्यवस्था भली है।
Romans 7:17 तो ऐसी दशा में उसका करने वाला मैं नहीं, वरन पाप है, जो मुझ में बसा हुआ है।
Romans 7:18 क्योंकि मैं जानता हूं, कि मुझ में अर्थात मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते।
Romans 7:19 क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता वही किया करता हूं।
Romans 7:20 परन्तु यदि मैं वही करता हूं, जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करने वाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है।
Romans 7:21 सो मैं यह व्यवस्था पाता हूं, कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूं, तो बुराई मेरे पास आती है।
Romans 7:22 क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं।
Romans 7:23 परन्तु मुझे अपने अंगो में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है।
Romans 7:24 मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?
Romans 7:25 मैं अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं: निदान मैं आप बुद्धि से तो परमेश्वर की व्यवस्था का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूं।
Romans 8:1 सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं: क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं।
Romans 8:2 क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया।
Romans 8:3 क्योंकि जो काम व्यवस्था शरीर के कारण दुर्बल हो कर न कर सकी, उसको परमेश्वर ने किया, अर्थात अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में, और पाप के बलिदान होने के लिये भेज कर, शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी।
Romans 8:4 इसलिये कि व्यवस्था की विधि हम में जो शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं, पूरी की जाए।


एक साल में बाइबल: 
  • निर्गमन 4-6
  • मत्ती 14:22-36