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सोमवार, 21 जनवरी 2019

भरोसा



      जब मैं कॉलेज में बास्केटबॉल खेला करता था, तो खेल के प्रत्येक समय में मुझे जान-बूझकर निर्णय लेना और निभाना होता था कि मैं खेलने के लिए नियमित रूप से क्रीड़ास्थल तक जाऊँगा, और अपने प्रशिक्षक पर पूरा भरोसा रखते हुए उसके कहे के अनुसार करूँगा और खेलूँगा। यह मेरे स्वयँ के लिए तथा मेरी टीम के लिए भी कदापि लाभप्रद नहीं होता यदि मैं खेल के स्थान पर पहुँचकर कहने लगता, “देखिए प्रशिक्षक महोदय, मैं यहाँ आ गया हूँ और मैं गेंद को बास्केट में डालना, तथा उसे टप्पा खिलाते हुए लेकर भागना तो चाहता हूँ, परन्तु मुझ से दौड़ कर मैदान के चक्कर लगाने, पीछे रहकर रक्षक की भूमिका में खेलने, या पसीना बहाने के लिए मत कहिए!” प्रत्येक सफल खिलाड़ी को अपने प्रशिक्षक पर भरोसा रख कर उसके कहे के अनुसार करना होता है, अपने तथा टीम के भले के लिए।

      इसी प्रकार मसीही विश्वास के जीवन में भी हमें परमेश्वर को समर्पित “जीवित बलिदान” (रोमियों 12:1) बनना होता है। हम अपने उद्धारकर्ता और प्रभु से कहते हैं, “मैं आप पर भरोसा रखता हूँ; आप जो और जैसा चाहेंगे मैं वो और वैसा करूँगा।” हमारे ऐसे समर्पण एवँ आज्ञाकारिता के परिणामस्वरूप वह हमारे मनों को उन बातों पर लगाने में हमारी सहायता और मार्गदर्शन करता है जो उसे पसन्द हैं और हमारे तथा मसीही समाज की भलाई के लिए हैं, और इसके द्वारा हमें अपने स्वरूप में परिवर्तित करता रहता है।

      यह ध्यान रखना हमारे लिए लाभदायक है कि परमेश्वर हमें कभी ऐसे कार्य करने के लिए नहीं बुलाएगा जिनके लिए उसने हमें आवश्यक सामर्थ्य नहीं दे दी है, जैसा कि परमेश्वर के वचन बाइबल में पौलुस प्रेरित ने रोम के मसीही विश्वासियों को स्मरण करवाया: “और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न वरदान मिले हैं...” (पद 6)।

      यह जानते हुए कि हम अपने जीवनों और आवश्यकताओं के लिए परमेश्वर पर पूरा भरोसा रख सकते हैं, हम निश्चिन्त होकर उसकी आज्ञाकारिता में जीवन व्यतीत कर सकते हैं, इस ज्ञान से आश्वस्त कि जिसने हमें रचा है, वही हमारा रक्षक और मार्गदर्शक भी है। - डेव ब्रैनन


निश्चिन्त होकर अपने आप को परमेश्वर के हाथों में छोड़ देने में कोई जोखिम नहीं है।

परन्तु जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएंगे, वे उकाबों के समान उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे और श्रमित न होंगे, चलेंगे और थकित न होंगे। - यशायाह 40:31

बाइबल पाठ: रोमियों 12:1-8
Romans 12:1 इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान कर के चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।
Romans 12:2 और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।
Romans 12:3 क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।
Romans 12:4 क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही सा काम नहीं।
Romans 12:5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह हो कर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
Romans 12:6 और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे।
Romans 12:7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखाने वाला हो, तो सिखाने में लगा रहे।
Romans 12:8 जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे।
                                                                                                                                                        
एक साल में बाइबल: 
  • निर्गमन 1-3
  • मत्ती 14: 1-21