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मंगलवार, 3 जून 2014

शब्द एवं व्यवहार


   मैं अपनी पत्नि के साथ एक विशेष मसीही संगीत कार्यक्रम देखने के लिए एक चर्च में गया। वहाँ बैठने के लिए अच्छा स्थान लेने के उद्देश्य से हम कार्यक्रम आरंभ होने के समय से पहले ही पहुँच गए और स्थान ग्रहण कर लिए। हमारे निकट ही उस चर्च के दो सदस्य बैठे थे जो आपस में बातचीत कर रहे थे और उनकी बातचीत हम तक स्पष्ट सुनाई दे रही थी। उनकी बातचीत अपने चर्च और उसकी हर बात से संबंधित आलोचना थी। उन्होंने वहाँ के पादरियों की, नेतृत्व की, संगीत की, सेवकाई प्राथमिकताओं की और चर्च के कार्य से संबंधित अन्य सभी बातों की, सभी की आलोचना करी। अपनी इस आलोचना और कटुता को करते हुए वे या तो अपने मध्य हम दो आगन्तुकों के बारे में बेपरवाह थे या फिर अनभिज्ञ।

   मैं सोचने लगा कि यदि हम इस शहर में नए होते तथा आराधना और संगति के लिए कोई स्थान ढूँढ़ रहे होते तो उनकी यह आलोचनात्मक बातचीत सुनकर इस चर्च से चले जाते। इससे भी बुरी बात यह कि यदि हम परमेश्वर के खोजी होकर इस चर्च में आए होते तो फिर परमेश्वर के संबंध में हमारे विचारों और हमारी खोज का क्या परिणाम होता? उनकी यह आलोचना तथा कटुता केवल शब्द एवं व्यवहार की ही बात नहीं थी, वरन और भी गंभीर बात यह थी कि उन्होंने अपने शब्दों के दूसरों पर होने वाले दुषप्रभाव की भी कोई परवाह नहीं करी।

   परमेश्वर का वचन बाइबल हमें सिखाती है कि हमें अपने शब्दों को कैसे प्रयोग करना चाहिए; राजा सुलेमान ने नीतिवचनों में लिखा, "जो संभल कर बोलता है, वही ज्ञानी ठहरता है; और जिसकी आत्मा शान्त रहती है, वही समझ वाला पुरूष ठहरता है" (नीतिवचन 17:27)। कहने का तात्पर्य यह है कि हम ऐसे शब्द बोलें और ऐसा व्यवहार करें जो शांति और मेल-मिलाप को बढ़ावा दें ना कि नासमझी के साथ वह सब कुछ बोलते रहें जो हम सोचते हैं या जानते हैं या समझते हैं कि हम जानते हैं, क्योंकि कौन हमारे शब्द सुन रहा है और उनका क्या प्रभाव होगा संभवतः हम इस बात से अनभिज्ञ हों! - बिल क्राउडर


सावधानी और सोच-समझ कर कहे गए शब्द वाकपटुता से कहीं भले होते हैं।

जहां बहुत बातें होती हैं, वहां अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुंह को बन्द रखता है वह बुद्धि से काम करता है। - नीतिवचन 10:19

बाइबल पाठ: याकूब 3:1-12
James 3:1 हे मेरे भाइयों, तुम में से बहुत उपदेशक न बनें, क्योंकि जानते हो, कि हम उपदेशक और भी दोषी ठहरेंगे। 
James 3:2 इसलिये कि हम सब बहुत बार चूक जाते हैं: जो कोई वचन में नहीं चूकता, वही तो सिद्ध मनुष्य है; और सारी देह पर भी लगाम लगा सकता है। 
James 3:3 जब हम अपने वश में करने के लिये घोड़ों के मुंह में लगाम लगाते हैं, तो हम उन की सारी देह को भी फेर सकते हैं। 
James 3:4 देखो, जहाज भी, यद्यपि ऐसे बड़े होते हैं, और प्रचण्‍ड वायु से चलाए जाते हैं, तौभी एक छोटी सी पतवार के द्वारा मांझी की इच्छा के अनुसार घुमाए जाते हैं। 
James 3:5 वैसे ही जीभ भी एक छोटा सा अंग है और बड़ी बड़ी डींगे मारती है: देखो, थोड़ी सी आग से कितने बड़े वन में आग लग जाती है। 
James 3:6 जीभ भी एक आग है: जीभ हमारे अंगों में अधर्म का एक लोक है और सारी देह पर कलंक लगाती है, और भवचक्र में आग लगा देती है और नरक कुण्ड की आग से जलती रहती है। 
James 3:7 क्योंकि हर प्रकार के बन-पशु, पक्षी, और रेंगने वाले जन्‍तु और जलचर तो मनुष्य जाति के वश में हो सकते हैं और हो भी गए हैं। 
James 3:8 पर जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता; वह एक ऐसी बला है जो कभी रुकती ही नहीं; वह प्राण नाशक विष से भरी हुई है। 
James 3:9 इसी से हम प्रभु और पिता की स्‍तुति करते हैं; और इसी से मनुष्यों को जो परमेश्वर के स्‍वरूप में उत्पन्न हुए हैं श्राप देते हैं। 
James 3:10 एक ही मुंह से धन्यवाद और श्राप दोनों निकलते हैं। 
James 3:11 हे मेरे भाइयों, ऐसा नहीं होना चाहिए। 
James 3:12 क्या सोते के एक ही मुंह से मीठा और खारा जल दोनों निकलते हैं? हे मेरे भाइयों, क्या अंजीर के पेड़ में जैतून, या दाख की लता में अंजीर लग सकते हैं? वैसे ही खारे सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 28-30