ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

’वायरस’


   संसार भर में स्वाईन फ्लू के फैलने से लोगों का ध्यान इस रोग के कारण - H1N1 वायरस की ओर गया। वायरस अति सूक्षम जीवाणु होते हैं जो किसी अन्य जीव के अन्दर रहते और पनपते हैं, और उसे ही नष्ट कर देते हैं। कुछ प्रकार के वायरस उस जीव में कई वर्षों तक बने रहते हैं, इससे पहले कि उनके होने का पता चले; और इस अज्ञात रहने के समय में वे उस जीव के अन्दर बहुत हानि कर देते हैं। वायरस को जीव से बाहर निकाल दें तो वह रह नहीं पाता, मर जाता है।

   इसी प्रकार से पाप को भी जीवित और कार्यकारी होने के लिए एक व्यक्ति चाहिए होता है। अपने आप में, पाप, जैसे कि घमण्ड, लालच, क्रोध, स्वार्थ इत्यादि केवल शब्द हैं; किंतु जब पाप किसी मनुष्य पर हावी हो जाता है तो फिर वह उसे नष्ट करके ही जाता है।

   किंतु परमेश्वर का धन्यवाद हो कि प्रभु यीशु मसीह के क्रूस पर दिए गए बलिदान के द्वारा, उस पर विश्वास लाने वाला प्रत्येक विश्वासी पाप से छुड़ाया गया है (रोमियों ६:१८)। अब परमेश्वर का पवित्र आत्मा प्रत्येक विश्वासी में बसकर उसे शरीर की अभिलाशाओं के कारण पाप के ’वायरस’ को पनपने की शक्ति मिलने का प्रतिरोध करने में सहायता करता है (गलतियों ५:१६)। यद्यपि मसीही विश्वासी से पाप हो सकता है, किंतु परमेश्वर का आत्मा उसे पाप में बने नहीं रहने देता, "हम जानते हैं, कि जो कोई परमेश्वर से उत्‍पन्न हुआ है, वह पाप नहीं करता; जो परमेश्वर से उत्‍पन्न हुआ, उसे वह बचाए रखता है: और वह दुष्‍ट उसे छूने नहीं पाता" (१ युहन्ना ५:१८)। अभी हम मसीही विश्वासी परमेश्वर के पवित्र आत्मा पर निर्भर होकर चलते हैं, और एक दिन परमेश्वर की महिमा के सामने निर्दोष होकर खड़े होंगे (यहूदा १:२४)।

   क्या यह आपके लिए एक बड़ी निश्चिंतता की बात नहीं है कि यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो ’पाप के वायरस’ से संक्रामित इस संसार में आप बिना संक्रमण के खतरे के विचरण कर सकते हैं? - सी. पी. हिया


पाप रोग का इलाज केवल मसीह यीशु ही है।

और पाप से छुड़ाए जाकर धर्म के दास हो गए। - रोमियों ६:१८

बाइबल पाठ: रोमियों ६:१४-२३
Rom 6:14  और तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्‍योंकि तुम व्यवस्था के आधीन नहीं वरन अनुग्रह के आधीन हो।
Rom 6:15  तो क्‍या हुआ? क्‍या हम इसलिये पाप करें, कि हम व्यवस्था के आधीन नहीं वरन अनुग्रह के आधीन हैं? कदापि नहीं। 
Rom 6:16  क्‍या तुम नहीं जानते, कि जिस की आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को दासों की नाईं सौंप देते हो, उसी के दास हो: और जिस की मानते हो, चाहे पाप के, जिस का अन्‍त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिस का अन्‍त धामिर्कता है 
Rom 6:17  परन्‍तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, कि तुम जो पाप के दास थे तौभी मन से उस उपदेश के मानने वाले हो गए, जिस के सांचे में ढाले गए थे। 
Rom 6:18   और पाप से छुड़ाए जाकर धर्म के दास हो गए। 
Rom 6:19   मैं तुम्हारी शारीरिक र्दुबलता के कारण मनुष्यों की रीति पर कहता हूं, जैसे तुम ने अपने अंगो को कुकर्म के लिये अशुद्धता और कुकर्म के दास करके सौंपा था, वैसे ही अब अपने अंगों को पवित्रता के लिये धर्म के दास करके सौंप दो। 
Rom 6:20  जब तुम पाप के दास थे, तो धर्म की ओर से स्‍वतंत्र थे। 
Rom 6:21  सो जिन बातों से अब तुम लज्ज़ित होते हो, उन से उस समय तुम क्‍या फल पाते थे?
Rom 6:22  क्‍योंकि उन का अन्‍त तो मृत्यु है परन्‍तु अब पाप से स्‍वतंत्र होकर और परमेश्वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिस से पवित्रता प्राप्‍त होती है, और उसका अन्‍त अनन्‍त जीवन है। 
Rom 6:23  क्‍योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्‍तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्‍त जीवन है।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन ६३-६५
  •  रोमियों ६

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें