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सोमवार, 27 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 33

 

पाप का समाधान - उद्धार - 29 - कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (3.1)

हम पिछले दो लेखों से प्रभु यीशु मसीह द्वारा सेंत-मेंत उपलब्ध करवाए गए पापों की क्षमा और उद्धार से संबंधित कुछ सामान्यतः उठाए जाने वाले प्रश्नों को देख रहे हैं। पिछले लेख में हमने देखा था कि उद्धार अनन्तकालीन है, कभी खोया अथवा गंवाया नहीं जा सकता है। उद्धार गँवाने की बात परमेश्वर के वचन और उसके चरित्र तथा गुणों से कदापि मेल नहीं खाती है, वरन उनके विरुद्ध है। किन्तु कुछ लोग यह विचार रखते हैं कि यदि मनुष्य धार्मिकता का जीवन न जीए, और पाप करे, तो फिर उसका उद्धार जा सकता है। साथ ही वे यह भी तर्क भी देते हैं कि यदि उद्धार कभी नहीं जा सकता है, तब तो परमेश्वर ने मनुष्यों को पाप करने का लाइसेंस दे दिया है - एक बार उद्धार पा लो, और फिर उसके बाद जैसा चाहो वैसा करो, क्योंकि उद्धार तो जाएगा नहीं, स्वर्ग तो हर हाल में मिलेगा ही। किन्तु यह भी मनुष्यों को भरमाने के लिए, और प्रभु यीशु के सिद्ध और पूर्ण कार्य में मनुष्यों की अपने ही प्रयासों की धार्मिकता और कर्मों को मिलाने की शैतान द्वारा फैलाई जाने वाली एक गलत शिक्षा, एक गलत धारणा है, और आज हम इसी प्रश्न के विषय देखेंगे।

प्रश्न: क्या कभी गँवाए न जा सकने वाले अनन्त उद्धार के सिद्धांत में, बिना किसी भय के पाप करते रहने की स्वतंत्रता निहित नहीं है? 

उत्तर: यदि परमेश्वर ने हमें अनन्त उद्धार का प्रावधान उपलब्ध करवाया है, तो अवश्य ही कुछ सोच-समझ कर, कुछ जानते-बूझते हुए ही करवाया होगा। उपरोक्त संभावना यदि हम सीमित बुद्धि और ज्ञान वाले मनुष्यों के मन में आ सकती है तो उस असीम ज्ञान और समझ रखने वाले परमेश्वर से भी छिपी हुई नहीं होगी, कि यदि पाप की प्रवृत्ति रखने वाले मनुष्य को अनन्त, कभी न गँवाया जा सकने वाला उद्धार प्रदान कर दिया, तो वह फिर निडर होकर मनमानी और पाप करने के लिए इसका दुरुपयोग अवश्य ही करेगा। इसीलिए परमेश्वर के विषय लिखा है, “क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है” (1 कुरिन्थियों 1:25)। वास्तविकता यही है कि इस संभावना को उठाने और मानने वाले लोग, परमेश्वर के वचन के प्रति अपने अधूरे ज्ञान और अपूर्ण समझ के कारण शैतान द्वारा बहकाए और पथभ्रष्ट किए जा रहे हैं; जैसा कि यशायाह ने लिखा, “इसलिये अज्ञानता के कारण मेरी प्रजा बंधुआई में जाती है, उसके प्रतिष्ठित पुरूष भूखों मरते और साधारण लोग प्यास से व्याकुल होते हैं” (यशायाह 5:13) 

यदि लोग पाप और उसके कारण उत्पन्न परिस्थितियों, तथा परमेश्वर के वचन में दी गई अन्य संबंधित शिक्षाओं एवं उदाहरणों का ध्यान करें, तो उन्हें स्वतः ही स्पष्ट हो जाएगा कि अनन्त उद्धार के सिद्धांत में पाप करते रहने की स्वतंत्रता निहित नहीं है; वरन एक चेतावनी है कि मनुष्य अपने उद्धार की कीमत और महत्व को समझे अन्यथा परिणाम बहुत दुखदायी होंगे, इस लोक में भी और परलोक में भी। जैसा हम पहले देख चुके हैं, वास्तव में अपने पापों से पश्चाताप करने वाले, और प्रभु यीशु को सच्चे मन से जीवन समर्पित करने वाले व्यक्ति के अंदर परमेश्वर पवित्र आत्मा आकर निवास करने लगते हैं, जो उसे पाप के विषय कायल करते हैं। यदि उस व्यक्ति से किसी कारणवश कभी कोई पाप हो भी जाए, तो उसमें निवास करने वाले परमेश्वर पवित्र आत्मा उसे उस पाप में बने नहीं रहने देते हैं, वरन उसे उभारते और उकसाते हैं कि वह व्यक्ति अपने पाप के लिए पश्चाताप कर ले; उसको परमेश्वर के सम्मुख स्वीकार कर के उसके लिए क्षमा माँग ले, ताकि परमेश्वर उसे वापस क्षमा की स्थिति में बहाल कर देक्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढाँपा गया हो। क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो। जब मैं चुप रहा तब दिन भर कराहते कराहते मेरी हड्डियां पिघल गई। क्योंकि रात दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा; और मेरी तरावट धूप काल की सी झुर्राहट बनती गई। जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, मैं यहोवा के सामने अपने अपराधों को मान लूंगा; तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया” (भजन संहिता 32:1-5); साथ ही 1 यूहन्ना 1:9 भी देखिए। इसलिए सच्चे मन से, और पूर्ण समर्पण से मसीह यीशु पर विश्वास लाने वाला व्यक्ति, जिसने प्रभु यीशु द्वारा उसके लिए चुकाई गई उसके पापों की कीमत को, प्रभु यीशु के बलिदान और पुनरुत्थान के मूल्य तथा महत्व को समझा है, वह कभी इस प्रवृत्ति के साथ कोई भी कार्य नहीं करेगा कि अब अनन्त उद्धार तो मिल ही गया है, इसलिए जैसा जी में आए कर लो, कोई हानि नहीं होगी। यह विचार और व्यवहार वही रखेगा जो अभी भी अपने पापों में ही है, जिसने वास्तव में उद्धार नहीं पाया है, और जो प्रभु द्वारा उसके उद्धार के लिए चुकाए गए दाम के मूल्य का एहसास नहीं करता है, जो प्रभु परमेश्वर के प्रति उसके इस महान अनुग्रह के लिए कृतज्ञ एवं दीन और नम्र नहीं है। 

उद्धार पाए हुए व्यक्ति की उसे पाप करने से रोकने वाली इस कृतज्ञता और समर्पण, तथा पवित्र आत्मा द्वारा उसे गलती से भी हुए पाप के लिए कायल करने के अतिरिक्त भी कुछ और संबंधित बातें हैं, जिनको समझने के लिए हमें वापस अदन की वाटिका में, प्रथम पाप के साथ घटी की घटनाओं का पुनःअवलोकन करके देखना होगा। जैसा हम पहले देख चुके हैं, पाप करने के बाद प्रथम मनुष्यों के साथ दो बातें हुईं - (i) वे तुरंत ही आत्मिक और शारीरिक मृत्यु के अंतर्गत आ गए - परमेश्वर से उनकी संगति टूट गई, और उनका शरीर क्षय होना आरंभ हो गया, जो अन्ततः शारीरिक मृत्यु में पहुँच गया; (ii) परमेश्वर ने उन्हें दंड दिया - स्त्री को आदम की अधीनता में कर दिया, उसकी प्रसव की पीड़ा बढ़ा दी, और आदम को दुख के साथ परिश्रम की रोटी खाने के अधीन कर दिया, उसके परिश्रम के बावजूद धरती उनके लिए कांटे और ऊंटकटारे उगाएगी; और उन दोनों को उस आशीष की विशिष्ट वाटिका के बाहर निकाल दिया गया। अर्थात पाप के कारण मनुष्य की परमेश्वर से संगति तो टूट ही चुकी है, किन्तु साथ ही मनुष्य जब भी पाप करता है उस पाप का दंड भी उसके जीवन में जुड़ जाता है, जिसे उसे इस पृथ्वी पर भुगतना ही होता है। साथ ही परलोक में उस पाप का प्रतिफल भी उसके नाम पर अर्जित हो जाता है, जिसे उसे परलोक में जाकर भुगतना होगा। 

इस पृथ्वी पर पाप का दण्ड भुगतने से संबंधित चर्चा कुछ लंबी है, इसलिए उसे हम अगले लेख में देखेंगे; आज हम परलोक के जीवन से संबंधित पाप के प्रभाव को देख लेते हैं। 

पाप का प्रभाव प्रत्येक मनुष्य के परलोक के जीवन पर भी पड़ता है। पापों की क्षमा पाए हुए मसीही विशासी को, इस पृथ्वी पर प्रभु की आज्ञाकारिता में उसकी उपयोगिता के लिए बिताए गए जीवन के अनुसार, स्वर्ग में आदर और प्रतिफल भी मिलेंगेभविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं” (2 तीमुथियुस 4:8)। किन्तु इसके साथ ही पृथ्वी पर उसके द्वारा की गई परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता तथा पाप उसके इन प्रतिफलों को बिगाड़ता भी रहता है। स्वर्ग में मनुष्य को मिलने वाले प्रतिफल इन दोनों - भले और बुरे के कुल योग के अनुसार दिए जाएंगे। किन्तु ये आदर और प्रतिफल मिलने से पहले प्रत्येक मसीही विश्वासी के जीवन के प्रत्येक कार्य की बहुत बारीकी से जाँच भी की जाएगी, “क्योंकि वह समय आ पहुंचा है, कि पहिले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए, और जब कि न्याय का आरम्भ हम ही से होगा तो उन का क्या अन्‍त होगा जो परमेश्वर के सुसमाचार को नहीं मानते? और यदि धर्मी व्यक्ति ही कठिनता से उद्धार पाएगा, तो भक्तिहीन और पापी का क्या ठिकाना?” (1 पतरस 4:17-18)। बाइबल से इस विषय से संबंधित कुछ और पदों को देखते हैं: 

  • हर पाप, हर अनाज्ञाकारिता, मसीही विश्वासी के प्रतिफलों को खराब करता है; और जिसका जीवन ऐसा रहा होगा कि उसकी लापरवाही और पापों ने उसके प्रतिफलों को या तो अर्जित ही नहीं होने दिया, अथवा बिगाड़ कर समाप्त कर दिया, वह फिर अनन्तकाल के लिए स्वर्ग में खाली हाथ ही प्रवेश करेगा और रहेगा, “तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिये कि आग के साथ प्रगट होगा: और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है। जिस का काम उस पर बना हुआ स्थिर रहेगा, वह मजदूरी पाएगा। और यदि किसी का काम जल जाएगा, तो हानि उठाएगा; पर वह आप बच जाएगा परन्तु जलते जलते” (1 कुरिन्थियों 3:13-15) 
  • न केवल कार्यों का, वरन हर एक मनुष्य को अपनी हर व्यर्थ बात, हर शब्द का भी हिसाब देना होगा, “और मैं तुम से कहता हूं, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे। क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा” (मत्ती 12:36-37) 
  • परमेश्वर मसीही विश्वासियों की बातचीत को ध्यान से सुनता है और उसके सम्मुख उन बातों का लेखा रखा जाता है, “तब यहोवा का भय मानने वालों ने आपस में बातें की, और यहोवा ध्यान धर कर उनकी सुनता था; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते थे, उनके स्मरण के निमित्त उसके साम्हने एक पुस्तक लिखी जाती थी” (मलाकी 3:16) 

 

इसलिए कोई भी यह न समझे कि उद्धार पाने के बाद पाप करने से उसे अब कोई हानि नहीं होगी। परमेश्वर मूर्ख नहीं है, कि मनुष्य उद्दंड होकर उसकी उदारता, कृपा, और प्रेम का दुरुपयोग कर ले और परमेश्वर बस एक मूक दर्शक ही बनकर मनुष्य द्वारा उसका अनुचित लाभ उठाते हुए देखता रह जाए। इसलिए शैतान के द्वारा फैलाई जा रही इन व्यर्थ और मिथ्या बातों पर ध्यान मत दीजिए। प्रभु के आपके प्रति प्रमाणित किए गए प्रेम, कृपा, और अनुग्रह, तथा उसके द्वारा आपको प्रदान किए जा रहे पाप-क्षमा प्राप्त करने के अवसर के मूल्य को समझिए, और अभी इस अवसर का लाभ उठा लीजिए। आपके द्वारा स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ आपके द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लेंआपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए।   

 

 बाइबल पाठ: रोमियों 6:11-18

रोमियों 6:11 ऐसे ही तुम भी अपने आप को पाप के लिये तो मरा, परन्तु परमेश्वर के लिये मसीह यीशु में जीवित समझो।

रोमियों 6:12 इसलिये पाप तुम्हारे मरनहार शरीर में राज्य न करे, कि तुम उस की लालसाओं के आधीन रहो।

रोमियों 6:13 और न अपने अंगों को अधर्म के हथियार होने के लिये पाप को सौंपो, पर अपने आप को मरे हुओं में से जी उठा हुआ जानकर परमेश्वर को सौंपो, और अपने अंगों को धर्म के हथियार होने के लिये परमेश्वर को सौंपो।

रोमियों 6:14 और तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्था के आधीन नहीं वरन अनुग्रह के आधीन हो।

रोमियों 6:15 तो क्या हुआ क्या हम इसलिये पाप करें, कि हम व्यवस्था के आधीन नहीं वरन अनुग्रह के आधीन हैं? कदापि नहीं।

रोमियों 6:16 क्या तुम नहीं जानते, कि जिस की आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को दासों के समान सौंप देते हो, उसी के दास हो: और जिस की मानते हो, चाहे पाप के, जिस का अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिस का अन्त धामिर्कता है

रोमियों 6:17 परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, कि तुम जो पाप के दास थे तौभी मन से उस उपदेश के मानने वाले हो गए, जिस के सांचे में ढाले गए थे।

रोमियों 6:18 और पाप से छुड़ाए जा कर धर्म के दास हो गए।

एक साल में बाइबल:

· यशायाह 3-4  

· गलातियों 6

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