हाल ही में हमारे परिवार को अपना इन्टरनैट केबल उपलब्ध करने वाला प्रदायक बदलना पड़ा। पहले वाले प्रदायक ने वायदा किया कि उनका इन्टरनैट उपकरण लौटाने के लिये वे डाक-टिकिट लगा एक डब्बा देंगे। हम प्रतीक्षा करते रहे किंतु डब्बा नहीं आया; मैंने उन्हें फोन किया, फिर भी डब्बा तो नहीं आया वरन उसका बिल आ गया।
इस का समाधान करने के लिये मैंने उस उपकरण को अपने डाक-खर्च पर उनहें लौटा दिया, फिर उन्हें कई सन्देश भेजे यह जानने के लिये कि वह उपकरण उन्हें मिल गया या नहीं - पर उन सन्देशों का भी कोई उत्तर नहीं मिला। फिर कुछ समय बाद मुझे उनसे उपकरण वापसी के लिये पैसे लौटाने का एक चैक मिला - दो पैसे का!
इस तरह के अनुभव बहुत कुण्ठित करने वाले होते हैं। एक साधरण सी बात बुरे, अव्यक्तिगत तथा अधूरे व्यवहार के कारण कितनी जटिल और परेशान करने वाली बन जाती है।
यदि हमारी कलीसियाओं में भी किसी को ऐसे ही अव्यक्तिगत तथा अधूरे व्यवहार का सामना करना पड़ता होगा तो यह उनके लिये भी ऐसे ही दुख का कारण होगी। यदि कलीसिया में कोई अपने वैवाहिक जीवन के लिये मार्गदर्शन, अथवा बच्चों की परवरिश के लिये सलाह, या किसी बुरी परिस्थिति में पड़े अपने किसी किशोर बच्चे के लिये मर्गदर्शन की मदद के लिये आये और उसे नीरस और अव्यक्तिगत व्यवहार का सामना करना पड़े तो उसे कैसा लगेगा?
पहली मसीही कलीसिया सिद्ध तो नहीं थी, परन्तु वे एक दुसरे की सहायता करते थे। यरुशलेम की प्रथम कलीसिया के विष्य में लिखा है "और वे अपनी अपनी सम्पत्ति और सामान बेच बेचकर जैसी जिस की आवश्यकता होती थी बांट दिया करते थे" (प्रेरितों २:४५)।
दूसरों की आवश्यक्ता जानने के लिये अच्छा संपर्क बनाना अनिवार्य है। इससे ही हम दुसरों की व्यक्तिगत और व्यावाहरिक सहायता कर सकेंगे, जब भी उनहें इसकी आवश्यक्ता होगी। तब अपने आत्मिक और भौतिक संसाधानों को हम प्रत्येक की आवश्यक्ता के अनुसार, परमेश्वर के प्रेम का पात्र होने के कारण, उनहें उपलब्ध करा सकेंगे। - डैनिस फिशर
जिनका भला करना चाहिये, यदि तुझ में शक्ति रहे, तो उनका भला करने से न रूकना। - नीतिवचन ३:२७
एक साल में बाइबल:
इस का समाधान करने के लिये मैंने उस उपकरण को अपने डाक-खर्च पर उनहें लौटा दिया, फिर उन्हें कई सन्देश भेजे यह जानने के लिये कि वह उपकरण उन्हें मिल गया या नहीं - पर उन सन्देशों का भी कोई उत्तर नहीं मिला। फिर कुछ समय बाद मुझे उनसे उपकरण वापसी के लिये पैसे लौटाने का एक चैक मिला - दो पैसे का!
इस तरह के अनुभव बहुत कुण्ठित करने वाले होते हैं। एक साधरण सी बात बुरे, अव्यक्तिगत तथा अधूरे व्यवहार के कारण कितनी जटिल और परेशान करने वाली बन जाती है।
यदि हमारी कलीसियाओं में भी किसी को ऐसे ही अव्यक्तिगत तथा अधूरे व्यवहार का सामना करना पड़ता होगा तो यह उनके लिये भी ऐसे ही दुख का कारण होगी। यदि कलीसिया में कोई अपने वैवाहिक जीवन के लिये मार्गदर्शन, अथवा बच्चों की परवरिश के लिये सलाह, या किसी बुरी परिस्थिति में पड़े अपने किसी किशोर बच्चे के लिये मर्गदर्शन की मदद के लिये आये और उसे नीरस और अव्यक्तिगत व्यवहार का सामना करना पड़े तो उसे कैसा लगेगा?
पहली मसीही कलीसिया सिद्ध तो नहीं थी, परन्तु वे एक दुसरे की सहायता करते थे। यरुशलेम की प्रथम कलीसिया के विष्य में लिखा है "और वे अपनी अपनी सम्पत्ति और सामान बेच बेचकर जैसी जिस की आवश्यकता होती थी बांट दिया करते थे" (प्रेरितों २:४५)।
दूसरों की आवश्यक्ता जानने के लिये अच्छा संपर्क बनाना अनिवार्य है। इससे ही हम दुसरों की व्यक्तिगत और व्यावाहरिक सहायता कर सकेंगे, जब भी उनहें इसकी आवश्यक्ता होगी। तब अपने आत्मिक और भौतिक संसाधानों को हम प्रत्येक की आवश्यक्ता के अनुसार, परमेश्वर के प्रेम का पात्र होने के कारण, उनहें उपलब्ध करा सकेंगे। - डैनिस फिशर
परमेश्वर आपका ख्याल रखता है - आप दूसरों का रखिये।
बाइबल पाठ: प्रेरितों के काम २:४०-४७जिनका भला करना चाहिये, यदि तुझ में शक्ति रहे, तो उनका भला करने से न रूकना। - नीतिवचन ३:२७
एक साल में बाइबल:
- नेहेमियाह ४-६
- प्रेरितों के काम २:२२-४७
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