नैतिक होने से हम धर्मी भी हों, ऐसा अनिवार्य नहीं। परन्तु जो धर्मी होगा, वह अवश्य ही नैतिक भी होगा। संसार तथा कभी कभी मसीही विश्वासी भी यह मान लेते हैं कि क्योंकि संसार की नज़रों में उनका चरित्र और चालचलन किसी भी उलाहना या आलोचना से परे है, इसलिए वे परमेश्वर के सामने भी सही होंगे। लेकिन यह आवश्यक नहीं है, बाइबल बताती है कि मनुष्य परमेश्वर के साथ ठीक हुए बिना भी अपने कार्यों तथा प्रयासों से नैतिक तो हो सकता है लेकिन परमेश्वर को ग्रहण योग्य नहीं, क्योंकि परमेश्वर की धार्मिकता का स्तर मनुष्यों और संसार के स्तर से भिन्न और सिद्ध है।
बाइबल की यह स्पष्ट शिक्षा है कि परमेश्वर को केवल पापों के लिए पश्चाताप, पापों से मन फिराव तथा प्रभु यीशु द्वारा मिलने वाली पापों से क्षमा द्वारा उत्पन्न धार्मिकता ही स्वीकार है; अन्य किसी भी माध्यम से कोई संसार के समक्ष तो नैतिक और धर्मी हो सकता है, परमेश्वर के समक्ष नहीं। परमेश्वर को मनुष्यों से केवल अपनी आज्ञाकारिता चाहिए, उनके ’धर्म के कार्य’ नहीं (निर्गमन १९:५; यर्मियाह ७:२३, होशिया ६:६)। बाइबल हमारे धर्म के कार्यों को "मैले चिथड़ों" की संज्ञा देती है (यशायाह ६४:६)। पौलुस प्रेरित का जीवन इस बात का उत्तम उदाहरण है। पौलुस एक कुलीन यहूदी घराने मे पैदा हुआ, धर्म की शिक्षा उसने अपने समय के सबसे उत्तम गुरू गमलीएल से पाई, धर्म की शिक्षाओं के पालन में उसने कोई कमी नहीं छोड़ी, किसी को दोष देने का कोई अवसर नहीं दिया; किंतु जब प्रभु यीशु मसीह से उसका सामना हुआ तो प्रभु की पवित्रता के सम्मुख उस ने अपने धर्म की नैतिकता की तुच्छता को पहचाना, और अपने कर्मों की नैतिकता को त्याग कर उसने प्रभु से पश्चातप की धार्मिकता को सदा काल के लिए ले लिया। इस बात का विवरण उसने फिलिप्पियों को लिखी अपनी पत्री में किया।
पुराने नियम में अय्युब की पुस्तक में भी अय्युब की कहानी इसी बात को दिखाती है। संसार में अय्युब के समान कोई धर्मी और नैतिक नहीं था (अय्युब १:१), स्वयं परमेश्वर ने दो दफा इस बात को कहा - अय्युब १:८ एवं २:३। लेकिन इसी अय्युब ने जब परमेश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन पाया तो वह पुकार उठा, "मैं कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं; इसलिये मुझे अपने ऊपर घृणा आती है, और मैं धूलि और राख में पश्चात्ताप करता हूँ। (अय्युब ४२:५, ६)।
यह जानते हुए कि लोग नैतिक तथा धर्मी तो हो सकते हैं परन्तु परमेश्वर को ग्रहणयोग्य नहीं, हमें अपने जीवनों को जाँचने की आवश्यक्ता है। हम परमेश्वर की धार्मिकता के पैमाने पर कहाँ खड़े हैं? क्या हम "मैले चीथड़ों" द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करने और उसे ग्रहणयोग्य होने की कोशिश में लगे हैं या उसके द्वारा प्रभु यीशु में दीये गए मार्ग पर चलकर उस तक पहुंचने वाले लोग हैं? हम शरीर के किन्ही कार्यों से नहीं केवल आत्मा के समर्पण और परमेश्वर की आज्ञाकारिता से ही उसे ग्रहणयोग्य बन सकते हैं।
हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। - यशायाह ६४:६
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों ३:१-११
Php 3:1 निदान, हे मेरे भाइयो, प्रभु में आनन्दित रहो: वे ही बातें तुम को बार बार लिखने में मुझे तो कोई कष्ट नहीं होता, और इस में तुम्हारी कुशलता है।
Php 3:2 कुत्तों से चौकस रहो, उन बुरे काम करने वालों से चौकस रहो, उन काट कूट करने वालों से चौकस रहो।
Php 3:3 क्योंकि खतनावाले तो हम ही हैं जो परमेश्वर के आत्मा की अगुवाई से उपासना करते हैं, और मसीह यीशु पर घमण्ड करते हैं और शरीर पर भरोसा नहीं रखते।
Php 3:4 पर मैं तो शरीर पर भी भरोसा रख सकता हूं यदि किसी और को शरीर पर भरोसा रखने का विचार हो, तो मैं उस से भी बढ़कर रख सकता हूं।
Php 3:5 आठवें दिन मेरा खतना हुआ, इस्त्राएल के वंश, और बिन्यामीन के गोत्र का हूं; इब्रानियों का इब्रानी हूं, व्यवस्था के विषय में यदि कहो तो फरीसी हूं।
Php 3:6 उत्साह के विषय में यदि कहो तो कलीसिया का सताने वाला, और व्यवस्था की धामिर्कता के विषय में यदि कहो तो निर्दोष था।
Php 3:7 परन्तु जो जो बातें मेरे लाभ की थीं, उन्हीं को मैं ने मसीह के कारण हानि समझ लिया है।
Php 3:8 वरन मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं।
Php 3:9 और उस में पाया जाऊं; न कि अपनी उस धामिर्कता के साथ, जो व्यवस्था से है, वरन उस धामिर्कता के साथ जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है।
Php 3:10 और मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागी हाने के मर्म को जानूं, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं।
Php 3:11 ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुंचूं।
एक साल में बाइबल:
बाइबल की यह स्पष्ट शिक्षा है कि परमेश्वर को केवल पापों के लिए पश्चाताप, पापों से मन फिराव तथा प्रभु यीशु द्वारा मिलने वाली पापों से क्षमा द्वारा उत्पन्न धार्मिकता ही स्वीकार है; अन्य किसी भी माध्यम से कोई संसार के समक्ष तो नैतिक और धर्मी हो सकता है, परमेश्वर के समक्ष नहीं। परमेश्वर को मनुष्यों से केवल अपनी आज्ञाकारिता चाहिए, उनके ’धर्म के कार्य’ नहीं (निर्गमन १९:५; यर्मियाह ७:२३, होशिया ६:६)। बाइबल हमारे धर्म के कार्यों को "मैले चिथड़ों" की संज्ञा देती है (यशायाह ६४:६)। पौलुस प्रेरित का जीवन इस बात का उत्तम उदाहरण है। पौलुस एक कुलीन यहूदी घराने मे पैदा हुआ, धर्म की शिक्षा उसने अपने समय के सबसे उत्तम गुरू गमलीएल से पाई, धर्म की शिक्षाओं के पालन में उसने कोई कमी नहीं छोड़ी, किसी को दोष देने का कोई अवसर नहीं दिया; किंतु जब प्रभु यीशु मसीह से उसका सामना हुआ तो प्रभु की पवित्रता के सम्मुख उस ने अपने धर्म की नैतिकता की तुच्छता को पहचाना, और अपने कर्मों की नैतिकता को त्याग कर उसने प्रभु से पश्चातप की धार्मिकता को सदा काल के लिए ले लिया। इस बात का विवरण उसने फिलिप्पियों को लिखी अपनी पत्री में किया।
पुराने नियम में अय्युब की पुस्तक में भी अय्युब की कहानी इसी बात को दिखाती है। संसार में अय्युब के समान कोई धर्मी और नैतिक नहीं था (अय्युब १:१), स्वयं परमेश्वर ने दो दफा इस बात को कहा - अय्युब १:८ एवं २:३। लेकिन इसी अय्युब ने जब परमेश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन पाया तो वह पुकार उठा, "मैं कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं; इसलिये मुझे अपने ऊपर घृणा आती है, और मैं धूलि और राख में पश्चात्ताप करता हूँ। (अय्युब ४२:५, ६)।
यह जानते हुए कि लोग नैतिक तथा धर्मी तो हो सकते हैं परन्तु परमेश्वर को ग्रहणयोग्य नहीं, हमें अपने जीवनों को जाँचने की आवश्यक्ता है। हम परमेश्वर की धार्मिकता के पैमाने पर कहाँ खड़े हैं? क्या हम "मैले चीथड़ों" द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करने और उसे ग्रहणयोग्य होने की कोशिश में लगे हैं या उसके द्वारा प्रभु यीशु में दीये गए मार्ग पर चलकर उस तक पहुंचने वाले लोग हैं? हम शरीर के किन्ही कार्यों से नहीं केवल आत्मा के समर्पण और परमेश्वर की आज्ञाकारिता से ही उसे ग्रहणयोग्य बन सकते हैं।
मसीह से मिली पवित्रता ही परमेश्वर को ग्रहण्योग्य धार्मिकता का स्त्रोत है।
हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। - यशायाह ६४:६
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों ३:१-११
Php 3:1 निदान, हे मेरे भाइयो, प्रभु में आनन्दित रहो: वे ही बातें तुम को बार बार लिखने में मुझे तो कोई कष्ट नहीं होता, और इस में तुम्हारी कुशलता है।
Php 3:2 कुत्तों से चौकस रहो, उन बुरे काम करने वालों से चौकस रहो, उन काट कूट करने वालों से चौकस रहो।
Php 3:3 क्योंकि खतनावाले तो हम ही हैं जो परमेश्वर के आत्मा की अगुवाई से उपासना करते हैं, और मसीह यीशु पर घमण्ड करते हैं और शरीर पर भरोसा नहीं रखते।
Php 3:4 पर मैं तो शरीर पर भी भरोसा रख सकता हूं यदि किसी और को शरीर पर भरोसा रखने का विचार हो, तो मैं उस से भी बढ़कर रख सकता हूं।
Php 3:5 आठवें दिन मेरा खतना हुआ, इस्त्राएल के वंश, और बिन्यामीन के गोत्र का हूं; इब्रानियों का इब्रानी हूं, व्यवस्था के विषय में यदि कहो तो फरीसी हूं।
Php 3:6 उत्साह के विषय में यदि कहो तो कलीसिया का सताने वाला, और व्यवस्था की धामिर्कता के विषय में यदि कहो तो निर्दोष था।
Php 3:7 परन्तु जो जो बातें मेरे लाभ की थीं, उन्हीं को मैं ने मसीह के कारण हानि समझ लिया है।
Php 3:8 वरन मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं।
Php 3:9 और उस में पाया जाऊं; न कि अपनी उस धामिर्कता के साथ, जो व्यवस्था से है, वरन उस धामिर्कता के साथ जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है।
Php 3:10 और मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागी हाने के मर्म को जानूं, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं।
Php 3:11 ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुंचूं।
एक साल में बाइबल:
- भजन ४०-४२
- प्रेरितों २७:१-२६
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