मैं और मेरे मित्र एक चित्रकला प्रदर्शनी देखने गए जो प्रभु यीशु द्वारा दी गई उड़ाऊ पुत्र की कहानी पर आधारित थी। हम सब यह सोच कर गए थे कि यह हमारे लिए एक गंभीर मनन और सीखने का अवसर होगा। हम प्रदर्शनी स्थल पर पहुंचे और जानकारी लेने वहाँ सहायता देनेवाले लोगों की मेज़ पर गए। उस मेज़ पर प्रदर्शनी से संबंधित जानकारी पुस्तिकाएं और विषय से संबंधित अन्य पुस्तकें रखी हुईं थीं, तथा प्रदर्शनी के स्थान की ओर इशारा करने वाला एक सूचना चिन्ह भी रखा था।
सहायता देने वालों की उस मेज़ पर कुछ और भी रखा था जिसे देखकर हम सब मन ही मन अनुमान लगाने लगे कि चित्रकला के विषय के साथ इसका क्या संबंध हो सकता है - वह थी एक प्लेट जिस में रोटी थी, एक ग्लास और एक अंगोछा। हमने कलपना करी कि संभवतः यह उस भोज का सूचक होगा जो उड़ाऊ पुत्र के घर वापस लौटने पर उसके पिता ने आयोजित किया था, और पिता पुत्र के सम्बंध और सहभागिता को दिखाने कि लिए यहाँ रखा गया है। जब हमने उसे ज़रा ध्यानपूर्वक देखा तो समझ आया कि प्ल्र्ट कुछ गन्दी थी, रोटी खाने के बाद की बची हुई रोटी थी - कोई भोजन करने के बाद अपने भोजन की प्लेट ऐसे ही उस मेज़ पर प्रदर्शनी से संबंधित चीज़ों के साथ छोड़कर चला गया था। उस मेज़ पर रखे पुस्तक, पुस्तिकाओं और प्रदर्शनी संबंधित अन्य वस्तुओं से उस प्लेट, गिलास और अंगोछे का कोई लेना देना नहीं था; उन से संबंधित हमारी कलपनाएं बिलकुल गलत थीं।
यह जान कर, अपनी कलपना की उड़ान पर, हम सब को अच्छी हंसी आई। लेकिन बाद में मैं यह सोचने लगी कि क्या संभव नहीं कि ऐसे ही हम कितनी बार परमेश्वर के वचन में वह सब देखने लगते हैं जो वहाँ है ही नहीं। यह मानकर चलने की बजाए कि बाइबल की किसी बात के विषय में हमारे विचार सही ही हैं, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी व्याख्या बाइबल में उस विषय पर दी गई सभी जानकारी के अनुकूल है कि नहीं। प्रेरित पतरस ने अपनी पत्री में मसीही विश्वासियों को इस बात के बारे में चिताते हुए लिखा: "पर पहिले यह जान लो कि पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती" (२ पतरस १:२०)।
परमेश्वर के वचन को गंभीरता से लेना हमारा कर्तव्य है, उस की व्याख्या और चर्चा से पहले यह जाँच लेना अति आवश्यक है कि हम यह पवित्र आत्मा की प्रेर्णा से, वचन के संदर्भ का ध्यान रखते हुए और संपूर्ण वचन में उस विषय के बारे में कही गई बातों के अनुसार ही कुछ कहें; ना कि अपनी इच्छा के अनुसार और अपने अभिमान कि रक्षा करते हुए परमेश्वर के वचन को जैसे चाहें तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करें। - ऐनी सेटास
संदर्भ से बाहर करी गई वचन की व्याख्या खतरनाक झूठ या अतिश्योक्ति हो सकती है।
बाइबल पाठ: २ पतरस १:१६-२१
2Pe 1:16 क्योंकि जब हम ने तुम्हें अपने प्रभु यीशु मसीह की सामर्थ का, और आगमन का समाचार दिया था तो वह चतुराई से गढ़ी हुई कहानियों का अनुकरण नहीं किया था वरन हम ने आप ही उसके प्रताप को देखा था।
2Pe 1:17 कि उस ने परमेश्वर पिता से आदर, और महिमा पाई जब उस प्रतापमय महिमा में से यह वाणी आई कि यह मेरा प्रिय पुत्र है जिस से मैं प्रसन्न हूं।
2Pe 1:18 और जब हम उसके साथ पवित्र पहाड़ पर थे, तो स्वर्ग से यही वाणी आते सुना।
2Pe 1:19 और हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं का वचन है, वह इस घटना से दृढ़ ठहरा है और तुम यह अच्छा करते हो, कि जो यह समझ कर उस पर ध्यान करते हो, कि वह एक दीया है, जो अन्धियारे स्थान में उस समय तक प्रकाश देता रहता है जब तक कि पौ न फटे, और भोर का तारा तुम्हारे हृदयों में न चमक उठे।
2Pe 1:20 पर पहिले यह जान लो कि पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती।
2Pe 1:21 क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।
2Pe 1:16 क्योंकि जब हम ने तुम्हें अपने प्रभु यीशु मसीह की सामर्थ का, और आगमन का समाचार दिया था तो वह चतुराई से गढ़ी हुई कहानियों का अनुकरण नहीं किया था वरन हम ने आप ही उसके प्रताप को देखा था।
2Pe 1:17 कि उस ने परमेश्वर पिता से आदर, और महिमा पाई जब उस प्रतापमय महिमा में से यह वाणी आई कि यह मेरा प्रिय पुत्र है जिस से मैं प्रसन्न हूं।
2Pe 1:18 और जब हम उसके साथ पवित्र पहाड़ पर थे, तो स्वर्ग से यही वाणी आते सुना।
2Pe 1:19 और हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं का वचन है, वह इस घटना से दृढ़ ठहरा है और तुम यह अच्छा करते हो, कि जो यह समझ कर उस पर ध्यान करते हो, कि वह एक दीया है, जो अन्धियारे स्थान में उस समय तक प्रकाश देता रहता है जब तक कि पौ न फटे, और भोर का तारा तुम्हारे हृदयों में न चमक उठे।
2Pe 1:20 पर पहिले यह जान लो कि पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती।
2Pe 1:21 क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।
एक साल में बाइबल:
- गिनती १२-१४
- मरकुस ५:२१-४३
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