मेरे
एक मित्र ने अपने फेसबुक पर पृष्ठ पर, उसे सौंपे गए एक कार्य को सफलतापूर्वक पूरा
कर लेने के बारे में लिखा। औरों ने उसे इस बात के लिए बधाइयां दीं, लेकिन उसकी इस
सफलता से मेरे दिल पर छुरियाँ चल गईं। वह कार्य मुझे मिलना चाहिए था, उस पर मेरा अधिकार
था; लेकिन मेरी अनदेखी करते हुए, वह कार्य मेरे उस मित्र को दे दिया गया, और मुझे पता भी
नहीं है कि मेरे साथ ऐसा क्यों किया गया।
बेचारा
यूसुफ! परमेश्वर के वचन बाइबल में परमेश्वर ने उसे नहीं चुना, और वह जानता था कि
क्यों। प्रभु यीशु मसीह के मृतकों में से पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के बाद, उसके
शिष्यों ने प्रभु को धोखे से पकड़वाने वाले यहूदा इस्करियोती के स्थान पर किसी और
को नियुक्त करना चाहा। चेलों ने इसके विषय प्रार्थना की, परमेश्वर से उसकी इच्छा पूछी, और उनके सामने दो
नाम, यूसुफ और मत्तियाह आए, और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि किसे चुनना है। उन्होंने
परमेश्वर से प्रार्थना में इसके बारे में पूछा और दोनों के नाम पर चिट्ठी डाली, जिससे फिर मत्तियाह
का नाम सामने आया; यूसुफ को वह स्थान नहीं मिला।
मैं
सोचता हूँ, जब शिष्य मत्तियाह को बधाई दे रहे होंगे, तब यूसुफ की क्या
प्रतिक्रिया रही होगी? उसने इस चुने न जाने को कैसे लिया होगा? क्या उसने अपने आप
को ठुकराया हुआ अनुभव किया होगा? क्या वह अपने आप पर तरस खाकर, अपने को औरों से अलग
करके कहीं एक ओर जाकर पड़ गया होगा? या, क्या उसने परमेश्वर पर भरोसा रखते हुए, उसके इस निर्णय को
सहर्ष लिया होगा, और दूसरों के साथ मिलकर शिष्यों में अपनी सहायक भूमिका का
निर्वाह करता रहा होगा?
यदि मैं
यूसुफ के स्थान पर होता तो मैं यह जानता हूँ कि मेरे लिए कौन सा विकल्प सर्वोत्तम होता, और मैं कौन सा
विकल्प लेता। मैं तो कहता ‘ठीक है; मुझे शर्मिंदा किया गया है। यदि तुम्हें मेरे महत्व
का एहसास नहीं है, तो न सही! अब देखते हैं कि अब से तुम्हारे साथ मेरे न रहने
के बाद तुम लोग कार्य कैसे करने पाते हो?’ यह भावना रखना स्वयं को अच्छा तो लग सकता है, परन्तु केवल इसलिए
क्योंकि यह स्वार्थी भावना है।
पवित्र
शास्त्र में यूसुफ का फिर कहीं कोई उल्लेख नहीं आया है, इसलिए हमें नहीं पता है कि
उसकी वास्तविक प्रतिक्रिया क्या थी। लेकिन हमारे लिए अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यदि
किसी बात के लिए हमारी अनदेखी की जाती है, तब हम क्या प्रतिक्रिया
देते हैं? हम कभी इस बात को न भूलें के सबसे अधिक महत्व प्रभु यीशु के राज्य और कार्य का
है, न कि हमारी व्यक्तिगत सफलता अथवा प्रशंसा का। इसलिए वह हमें जो भी भूमिका
निभाने के लिए देता है, हम सहर्ष उसे स्वीकार करें और पूरी लगन तथा आनन्द के साथ
उस भूमिका को निभाएं। हमारे प्रतिफल उसके हाथों में हैं। - माइक व्हिटमर
हे प्रभु परमेश्वर, चाहे कोई भी भूमिका हो, मैं सदा आपके लिए
कार्य कर सकूँ।
देख, मैं शीघ्र आने वाला हूं; और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिये प्रतिफल मेरे पास
है। - प्रकाशितवाक्य 22:12
बाइबल पाठ: प्रेरितों 1:15-26
प्रेरितों 1:15 और उन्हीं दिनों में पतरस
भाइयों के बीच में जो एक सौ बीस व्यक्ति के लगभग इकट्ठे थे, खड़ा हो
कर कहने लगा।
प्रेरितों 1:16 हे भाइयों, अवश्य था
कि पवित्र शास्त्र का वह लेख पूरा हो, जो पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से यहूदा के विषय में जो यीशु
के पकड़ने वालों का अगुवा था,
पहिले से कही थीं।
प्रेरितों 1:17 क्योंकि वह तो हम में गिना
गया, और इस सेवकाई में सहभागी हुआ।
प्रेरितों 1:18 (उसने अधर्म की कमाई से एक
खेत मोल लिया; और सिर के बल गिरा,
और उसका पेट फट गया, और उस की सब अन्तडिय़ां निकल पड़ी।
प्रेरितों 1:19 और इस बात को यरूशलेम के
सब रहने वाले जान गए,
यहां तक कि उस खेत का नाम उन की भाषा में हकलदमा अर्थात लहू
का खेत पड़ गया।)
प्रेरितों 1:20 क्योंकि भजन संहिता में लिखा
है, कि उसका घर उजड़ जाए,
और उस में कोई न बसे और उसका पद कोई दूसरा ले ले।
प्रेरितों 1:21 इसलिये जितने दिन तक प्रभु
यीशु हमारे साथ आता जाता रहा,
अर्थात यूहन्ना के बपतिस्मा से ले कर उसके हमारे पास से उठाए
जाने तक, जो लोग बराबर हमारे साथ रहे।
प्रेरितों 1:22 उचित है कि उन में से एक
व्यक्ति हमारे साथ उसके जी उठने का गवाह हो जाए।
प्रेरितों 1:23 तब उन्होंने दो को खड़ा किया, एक यूसुफ
को, जो बर-सबा कहलाता है,
जिस का उपनाम यूसतुस है, दूसरा मत्तिय्याह को।
प्रेरितों 1:24 और यह कहकर प्रार्थना की; कि हे प्रभु, तू जो सब
के मन जानता है,
यह प्रगट कर कि इन दोनों में से तू ने किस को चुना है।
प्रेरितों 1:25 कि वह इस सेवकाई और प्रेरिताई
का पद ले जिसे यहूदा छोड़ कर अपने स्थान को गया।
प्रेरितों 1:26 तब उन्होंने उन के बारे में
चिट्ठियां डालीं,
और चिट्ठी मत्तिय्याह के नाम पर निकली, सो वह उन
ग्यारह प्रेरितों के साथ गिना गया।
एक साल में बाइबल:
- गिनती 34-36
- मरकुस 9:30-50
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