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शनिवार, 27 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई, पवित्र आत्मा, और बपतिस्मा - 4


बपतिस्मा - पवित्र आत्मा का बपतिस्मा - 2

पिछले लेख में हमने देखा कि वाक्यांशपवित्र आत्मा का बपतिस्माबाइबल में कहीं नहीं दिया गया है, जहाँ भी लिखा है, वहाँ  “पवित्र आत्मा से बपतिस्मालिखा है, और इन छोटे से शब्दों के हेर-फेर से कही गई बात के अर्थ में बहुत अंतर आ जाता है; फिर बाइबल की बात प्रभु की न रहकर मनुष्य की बात बन जाती है। बहुधा, इसपवित्र आत्मा का बपतिस्माके विषय को लेकर लोगों में यह धारणा दी जाती है कि यह बपतिस्मा पाना पवित्र आत्मा पाने से पृथक, एक अतिरिक्त (extra) अनुभव है, जो मसीही विश्वासी को सामान्य से और अधिक सक्षम करता है, उसे परमेश्वर के लिए और अधिक उपयोगी और सामर्थी बनाता है। इसलिए जो प्रभु के लिए उपयोगी होना चाहता है, या आश्चर्यकर्म तथा सामर्थ्य के कार्य करना चाहता है, उसे प्रभु से यह अनुभव प्राप्त करना चाहिए, इसके लिए प्रयास और प्रार्थना करनी चाहिए। जबकि सत्य यह है कि बाइबल में ऐसी कोई शिक्षा कहीं पर भी नहीं दी गई है। ध्यान करें, न तो उन 3000 प्रथम विश्वासियों से, जिन्होंने पतरस के प्रचार पर विश्वास के द्वारा उद्धार पाया यह बात कही गई, और न ही पौलुस, या पतरस, या अन्य किसी प्रेरित अथवा प्रचारक के द्वारा कभी भी कहीं भी अपने विषय में कहा गया कि उस प्रचारक या सेवक ने एक अतिरिक्तपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाया था, जिसके फलस्वरूप वह और अधिक सामर्थी होकर प्रभु के लिए उपयोगी हो सका। इन सेवकों के लिए लिखा है कि इन्होंने कुछ विशेष कार्यपवित्र आत्मा से भरकरकिए - किन्तु यह कहीं नहीं लिखा है कि ऐसा उनके द्वारापवित्र आत्मा का बपतिस्मा लेने के कारण हुआ। साथ ही एक ही सेवक के एक से अधिक बार पवित्र आत्मा से भर जाने के लिए भी लिखा है। हम पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करने के विषय में आगे के अध्ययन में देखेंगे।    

       प्रेरितों 1:5 का वाक्य, प्रभु द्वारा वहाँ पर पद 4 में कही जा रही बात का ही ज़ारी रखा जाना है, और प्रभु की बात में कोई चकराने वाली बात (confusion) नहीं है। प्रभु ने सीधे और साफ शब्दों में पद 4 की प्रतिज्ञा - उन शिष्यों के द्वारा पवित्र आत्मा को प्राप्त करना, को ही पद 5 में पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना कहा है, जिसकी पुष्टि फिर पद 8 में प्रभु की बात से हो जाती है। साथ ही पतरस ने भी कुरनेलियुस के घर में जब अन्यजातियों को प्रचार किया, और उन्होंने उद्धार पाया, पवित्र आत्मा उन पर उतरा, तब भी पतरस ने प्रेरितों 1:5 की बात के अनुसार ही उसे भी, अर्थात प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से तुरंत ही पवित्र आत्मा प्राप्त कर लेने को ही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना कहा (प्रेरितों 11:16) 

       न ही प्रभु ने प्रेरितों 1:5 पर अथवा किसी अन्य स्थान पर शिष्यों से यह कहा किपवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त कर लेने के बाद, फिर और प्रयास तथा प्रार्थना करना कि तुम्हें पवित्र आत्मा से भी बपतिस्मा मिल जाए; उसके लिए यत्न करते रहना, जिससे तुम और भी अधिक सामर्थी होकर सेवकाई कर सको – जबकि ऐसा करना उनकी आने वाली विषय-व्यापी सेवकाई के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, किन्तु अपनी महान आज्ञा में अथवा कहीं और कभी भी प्रभु ने शिष्यों से इसके विषय कोई बात नहीं कही। अर्थात, उन शिष्यों को पवित्र आत्मा से यह बपतिस्मा या अपनी विश्व-व्यापी सेवकाई के लिए उपयुक्त सामर्थ्य पाने के लिए अपनी ओर से और कुछ भी नहीं करना था; कोई प्रतीक्षा नहीं, कोई प्रयास नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, कोई अतिरिक्त बपतिस्मा नहीं। जो होना था वह प्रभु के द्वारा स्वतः ही किया जाना था; यह उनके किसी कार्य के परिणाम स्वरूप नहीं होना था। इस पद में ऐसा कोई संकेत भी नहीं है जिससे यह आभास हो कि पवित्र आत्मा प्राप्त करना और पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना कोई दो पृथक कार्य अथवा अनुभव हैं, क्योंकि यह स्पष्ट है कि पद 4 और 5 में एक ही बात को दो विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया गया है। 

       जैसे हम पहले भी देख चुके हैं, पवित्र आत्मा कोई वस्तु नहीं है जिसे विभाजित करके टुकड़ों में या अंश-अंश करके दिया जा सके। वह ईश्वरीय व्यक्तित्व है, और जब भी, जिसे भी दिया जाता है, उसमें वह अपनी संपूर्णता में ही वास करता है, टुकड़ों में नहीं (यूहन्ना 3:34); और एक बार आने के बाद वह सर्वदा साथ रहता है (यूहन्ना 14:16)। तो यदि प्रेरितों 1:4 की प्रतिज्ञा के अनुसार शिष्यों को पवित्र आत्मा एक बार मिल जाना था, जो फिर उनके साथ सर्वदा बना रहता, तो फिर प्रेरितों 1:5 में कहा गया पवित्र आत्मा का बपतिस्मा यदि कोई अलग अनुभव है, तो फिर अब इस तथाकथितपवित्र आत्मा का बपतिस्माके द्वारा और क्या भिन्न, या अधिक, या अतिरिक्त, दिया जाना शेष है? क्योंकि मसीही विश्वासी को पहले से ही, विश्वास करने पर तुरंत ही, पवित्र आत्मा उसकी संपूर्णता में सर्वदा के लिए दे दिया गया है; तो फिर सेवकाई के लिए और क्या देना रह गया है?

       यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो यह आपके लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय वचन में दी गई शिक्षाओं को गंभीरता से सीखें, समझें और उनका पालन करें; और सत्य को जान तथा समझ कर ही उचित और उपयुक्त व्यवहार करें, सही शिक्षाओं का प्रचार करें। किसी के भी द्वारा प्रभु, परमेश्वर, पवित्र आत्मा के नाम से प्रचार की गई हर बात को 1 थिस्सलुनीकियों 5:21 तथा प्रेरितों 17:11 के अनुसार जाँच-परख कर, यह स्थापित कर लेने के बाद कि उस शिक्षा का प्रभु यीशु द्वारा सुसमाचारों में प्रचार किया गया है; प्रेरितों के काम में प्रभु के उस प्रचार का निर्वाह किया गया है; और पत्रियों में उस प्रचार तथा कार्य के विषय शिक्षा दी गई है, तब ही उसे स्वीकार करें तथा उसका पालन करें, उसे औरों को सिखाएं या बताएं। आपको अपनी हर बात का हिसाब प्रभु को देना होगा (मत्ती 12:36-37)। जब वचन आपके हाथ में है, वचन को सिखाने के लिए पवित्र आत्मा आपके साथ है, तो फिर बिना जाँचे और परखे गलत शिक्षाओं में फँस जाने, तथा मनुष्यों और उनके समुदायों और उनकी गलत शिक्षाओं को आदर देते रहने के लिए, उन गलत शिक्षाओं में बने रहने के लिए क्या आप प्रभु परमेश्वर को कोई उत्तर दे सकेंगे?

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 30-32  
  • 1 पतरस 4 

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