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बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

केवल भलाई ही के लिये

चीन की एक कहानी है - एक मनुष्य अपने जीवनयापन के लिये घोड़े पालता था। एक दिन उसका एक कीमती और बहुत अच्छी नसल का घोड़ा भाग गया। उसके मित्र जन उसके इस नुकसान पर उसके पास शोक व्यक्त करने आए। जब वे अपना शोक व्यक्त कर चुके तो उस मनुष्य ने उनसे पूछा, "मैं कैसे जानूं कि यह मेरे नफे के लिये हुआ या नुकसान के लिये?" दो दिन के बाद उसका घोड़ा लौट आया और उसके साथ, उसके पीछे पीछे कई अन्य लावारिस घोड़े भी आ गए। अब फिर उसके मित्र आनन्द मनाने जमा हो गए। फिर उस मनुष्य ने वही प्रश्न किया, "मैं कैसे जानूं कि यह मेरे नफे के लिये हुआ या नुकसान के लिये?" उसी दोपहर को एक लावारिस घोड़े ने उस मनुष्य के बेटे को दुलत्ती मार कर उसकी टांग तोड़ दी। फिर मित्र शोक करने को जमा हुए, फिर वही सवाल उठा, "मैं कैसे जानूं कि यह मेरे नफे के लिये हुआ या नुकसान के लिये?" इसके कुछ दिन बाद युद्ध छिड़ गया और राजा ने सभी जवानों का फौज में भरती होने का आदेश निकलवा दिया। लेकिन टूटी टांग के कारण उसका पुत्र फौज और युद्ध में जाने से बच गया। फिर मित्र आए, फिर वही सवाल उठा.....

अपने सीमित मानवीय दृष्टिकोण के कारण हम जीवन की परिस्थितियों को सही रीति से नहीं आंक सकते। लेकिन मसीही विश्वासी के लिये बात बिलकुल भिन्न है - उसे परमेश्वर का आश्वासन है कि प्रत्येक बात और परिस्थिति के ज़रिये परमेश्वर उसकी भलाई ही का कार्य कर रहा है।

उस चीनी मनुष्य की तरह हमें हर बात के लिये प्रश्न करने कि आवश्यक्ता नहीं है कि "मैं कैसे जानूं कि यह मेरे नफे के लिये हुआ या नुकसान के लिये?" हमारे पास परमेश्वर का कभी न टलने कभी न बदलने वाला वायदा है "और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्‍पन्न करती हैं; अर्थात उन्‍हीं के लिये जो उस की इच्‍छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।" (रोमियों ८:२८) - रिचर्ड डी हॉन


जिसे अविश्वासी "सौभाग्य" कहते हैं, मसीही विश्वासी उसे परमेश्वर से मिली परमेश्वर के प्रेम की सौगात जानते हैं।


और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्‍पन्न करती हैं; अर्थात उन्‍हीं के लिये जो उस की इच्‍छा के अनुसार बुलाए हुए हैं। - रोमियों ८:२८


बाइबल पाठ: रोमियों ८:१८-२८

क्‍योंकि मैं समझता हूं, कि इस समय के दु:ख और क्‍लेश उस महिमा के साम्हने, जो हम पर प्रगट होने वाली है, कुछ भी नहीं हैं।
क्‍योंकि सृष्‍टि बड़ी आशाभरी दृष्‍टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है।
क्‍योंकि सृष्‍टि अपनी इच्‍छा से नहीं पर आधीन करने वाले की ओर से व्यर्थता के आधीन इस आशा से की गई।
कि सृष्‍टि भी आप ही विनाश के दासत्‍व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्‍तानों की महिमा की स्‍वतंत्रता प्राप्‍त करेगी।
क्‍योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्‍टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।
और केवल वही नहीं पर हम भी जिन के पास आत्मा का पहिला फल है, आप ही अपने में कराहते हैं, और लेपालक होने की, अर्थत अपनी देह के छुटकारे की बाट जोहते हैं।
आशा के द्वारा तो हमारा उद्धार हुआ है परन्‍तु जिस वस्‍तु की आशा की जाती है जब वह देखने में आए, तो फिर आशा कहां रही क्‍योकि जिस वस्‍तु को कोई देख रहा है उस की आशा क्‍या करेगा?
परन्‍तु जिस वस्‍तु को हम नहीं देखते, यदि उस की आशा रखते हैं, तो धीरज से उस की बाट जाहते भी हैं।
इसी रीति से आत्मा भी हमारी र्दुबलता में सहायता करता है, क्‍योंकि हम नहीं जानते, कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए परन्‍तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिये बिनती करता है।
और मनों का जांचने वाला जानता है, कि आत्मा की मनसा क्‍या है क्‍योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्‍छा के अनुसार बिनती करता है।
और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्‍पन्न करती है; अर्थात उन्‍हीं के लिये जो उस की इच्‍छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।

एक साल में बाइबल:
  • लैव्यवस्था १९-२०
  • मत्ती २७:५१-६६

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