यदि आप मुझसे मेरे विश्वास के बारे में पूछेंगे तो मैं कहुंगा कि मैं मसीह यीशु का शिष्य एवं एक मसीही विश्वासी हूँ। किंतु मुझे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि कभी कभी मसीह यीशु की बातों का अनुसरण करना एक बड़ी चुनौती होता है। उदाहरणस्वरूप, मसीह यीशु कहते हैं कि जब मैं अपने विश्वास के कारण सताया जाऊँ तो मुझे आनन्दित होना है (मत्ती ५:११-१२); मुझे मारने वाले की ओर अपना दूसरा गाल भी फेर देना है (पद ३८-३९) और जो उधार मांगे उसे दे देना है (पद ४०-४२)। मुझे अपने शत्रुओं से प्रेम रखना है, मुझे श्राप देने वालों को आशीष देनी है और मुझसे घृणा करने वालों की भलाई करनी है (पद ४३-४४)। इस प्रकार की जीवन शैली मुझे बड़ी उल्टी-पुल्टी लगती है।
लेकिन मैंने धीरे धीरे यह भी जान लिया है कि वास्तव में उल्टा-पुल्टा मसीह यीशु नहीं, मैं स्वयं हूँ। संसार के अन्य सभी मनुष्यों के समान मैं भी पाप स्वभाव के साथ और पाप के कारण आत्मिक रूप में विकृत जन्मा था। जन्म से ही विद्यमान पाप स्वभाव के कारण हमारे सभी नैसर्गिक गुण तथा सभी बातों के लिए हमारी प्रथम प्रतिक्रीया परमेश्वर के मार्गों तथा धार्मिकता से उलट ही होती है; और इस कारण हम किसी न किसी समस्या में बने रहते हैं। जब हम अपने पापों के लिए पश्चाताप कर के और उनकी क्षमा मांगकर, मसीह यीशु को अपना जीवन समर्पित कर देते हैं तब वह हमें हमारे उलटेपन से पलट कर सीधा करता है और हमें इसी सीधेपन में बने रहने के लिए कहता है तथा इस सीधेपन को अपने जीवन के द्वारा संसार के सामने रखने को कहता है।
जब हम संसार के उलटे व्यवहार को छोड़कर मसीह के सीधे व्यवहार में चलना आरंभ करते हैं तब वह हमें अटपटा तो लगता है, और संसार को हमारा उपहास करने और हमारा फायदा उठाने का अवसर भी देता है, किंतु थोड़े समय में ही हम पहचानने लगते हैं कि मसीह के सीधेपन में ही सच्चाई और लाभ है। हम जान जाते हैं कि दूसरा गाल फेर देने से हम झगड़ा बढ़ाने तथा बात को और गंभीर करने से बच जाते हैं; देना लेने से भला होता है तथा अपने अहम का इन्कार करके नम्रता से जीवन जीने में कितनी शांति, सामर्थ और आशीष है। सीधेपन के जीवन की उत्तमता अनुभव से ही ज्ञात होती है।
परमेश्वर के वचन बाइबल में यशायाह ५५:८ में लिखा है कि परमेश्वर के मार्ग हमारे मार्गों के समान नहीं हैं; और मैंने यह जान लिया है कि परमेश्वर के मार्ग चाहे हमारी सांसारिक समझ के अनुसार कैसे भी उल्टे-पुल्टे प्रतीत क्यों ना हों किंतु वे ही सर्वोत्तम और सदा ही लाभकारी मार्ग हैं। - जो स्टोवैल
जो परमेश्वर के लिए सीधा और सही है वह चाहे हमें उल्टा-पुल्टा प्रतीत हो किंतु खरा और लाभदायक वही है।
तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर। परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो। - मत्ती ५:४३-४४
बाइबल पाठ: मत्ती ५:३-१२;३८-३८
Matthew5:3 धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
Matthew5:4 धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शांति पाएंगे।
Matthew5:5 धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।
Matthew5:6 धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किये जाएंगे।
Matthew5:7 धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।
Matthew5:8 धन्य हैं वे, जिन के मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।
Matthew5:9 धन्य हैं वे, जो मेल करवाने वाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएंगे।
Matthew5:10 धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
Matthew5:11 धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हरो विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।
Matthew5:12 आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है इसलिये कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था।
Matthew5:38 तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आंख के बदले आंख, और दांत के बदले दांत।
Matthew5:39 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि बुरे का सामना न करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उस की ओर दूसरा भी फेर दे।
Matthew5:40 और यदि कोई तुझ पर नालिश कर के तेरा कुरता लेना चाहे, तो उसे दोहर भी ले लेने दे।
Matthew5:41 और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा।
Matthew5:42 जो कोई तुझ से मांगे, उसे दे; और जो तुझ से उधार लेना चाहे, उस से मुंह न मोड़।
Matthew5:43 तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।
Matthew5:44 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो।
Matthew5:45 जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।
Matthew5:46 क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखने वालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या फल होगा? क्या महसूल लेने वाले भी ऐसा ही नहीं करते?
Matthew5:47 और यदि तुम केवल अपने भाइयों ही को नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते?
Matthew5:48 इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।
एक साल में बाइबल:
- निर्गमन १६-१८
- मत्ती १८:१-२०
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