बोसनिया के युद्ध (1992-1996) में, 10,000 से भी अधिक सैनिक और असैनिक लोग आस-पास की पहाड़ियों से राजधानी सारायेवो शहर पर की जा रही गोलाबारी और दाग़े जा रहे मौर्टारों से मारे गए। स्टीवन गैलोवे का रोमांचक उपन्यास, The Cellist of Sarajevo आधुनिक युद्ध स्थिति में किसी राजधानी की सबसे लंबी चली घेराबंदी की इसी पृष्ठभूमि पर आधारित है। इस उपन्यास में तीन काल्पनिक पात्र हैं, जिन्हें निर्णय करना है कि वे इस लड़ाई में जीवित रहने के संघर्ष में अपनी ही चिन्ता करने में खो जाएंगे, या, अपने आस-पास की जड़ कर देने वाली परिस्थितियों से किसी प्रकार ऊपर उठकर औरों की चिन्ता भी करेंगे।
परमेश्वर के वचन बाइबल के नए नियम खण्ड के एक प्रमुख पात्र, प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पी के मसीही विश्वासियों को लिखा, "विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे" (फिलिप्पियों 2:3-4)। अपनी इस बात कि पुष्टि के लिए पौलुस ने दूसरों के प्रति निःस्वर्थ मनसा रखने के लिए प्रभु यीशु का उदाहरण दिया: "जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो। जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली" (फिलिप्पियों 2:5-8)।
दूसरों से सहानुभूति या दया चाहने की अपेक्षा, प्रभु यीशु ने हमें पापों से छुड़ाने के लिए अपने आप को बलिदान कर दिया; हमारी आवश्यकता को अपनी ज़िम्मेदारी बना लिया। हम मसीही विश्वासियों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है कि हम दूसरों की आवश्यकताओं को प्रभु यीशु के दृष्टिकोण से देखें, और अपने कठिन समयों में भी प्रभु की सामर्थ्य से प्रभु के समान ही अन्य लोगों की उन आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील तथा कार्यकारी बनें। - डेविड मैक्कैसलैंड
दूसरों के प्रति प्रेम रखने की कुँजी अपने प्रति प्रभु परमेश्वर के प्रेम को अपनाना है।
क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया, कि उस की सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे। - मरकुस 10:45
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 2:1-11
Philippians 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
Philippians 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
Philippians 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
Philippians 2:4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे।
Philippians 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।
Philippians 2:6 जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।
Philippians 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
Philippians 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
Philippians 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।
Philippians 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
Philippians 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
एक साल में बाइबल:
- भजन 100-102
- 1 कुरिन्थियों 1
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