मसीही में विश्वास (1)
मसीही विश्वास
एवं शिष्यता से संबंधित बातों को देखते हुए, हम पिछले दो
लेखों से जान चुके हैं कि न तो मसीही विश्वास कोई धर्म है, और
न ही किसी धर्म परिवर्तन की बात है, वरन आरंभिक मसीही
विश्वासी स्वेच्छा से प्रभु यीशु मसीह की शिष्यता को स्वीकार करने वाले लोग थे।
पिछले लेख में हमने आरंभिक मसीही विश्वास और विश्वासियों के इतिहास के बारे में
बाइबल में की पुस्तक प्रेरितों के काम से देखा था कि आरंभिक मसीही विश्वासी “पंथ के लोग”,
अर्थात सामान्य लोगों और संसार की जीवन शैली से पृथक एक विशिष्ट
जीवन शैली जीने वाले लोग जाने जाते थे (प्रेरितों 9:2)। और
कुछ समय के बाद वे जो प्रभु यीशु मसीह के शिष्य थे, उन्हें
संसार के लोगों ने मसीही कहना आरंभ कर दिया (प्रेरितों 11:26)। निष्कर्ष यह कि परमेश्वर के वचन बाइबल के अनुसार मसीही वह है जो प्रभु
यीशु मसीह का शिष्य है, और जो संसार से पृथक प्रभु यीशु
द्वारा दिखाए मार्ग के अनुसार जीवन जीता है। मसीही विश्वास से संबंधित इन आधारभूत
तथ्यों में एक और आधारभूत बात निहित है कि मसीही विश्वासी होना किसी भी व्यक्ति के
अपने लिए समझ-बूझकर निर्णय लेने की आयु का होने से पहले हो पाना संभव नहीं है।
अर्थात मसीही होना किसी परिवार विशेष में जन्म लेने के द्वारा या किसी धर्म के
पालन के द्वारा नहीं है, वरन स्वेच्छा और सच्चे समर्पण के
द्वारा प्रभु यीशु मसीह की शिष्यता को ग्रहण करने, उसे अपना
उद्धारकर्ता स्वीकार के उसका अनुयायी हो जाने के द्वारा है।
बहुत से लोग,
विशेषकर ईसाई धर्म का पालन करने वाले, यह कहते
हैं कि वे प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करते हैं; तो क्या
अपने इस दावे या धारणा के कारण वे उद्धार पाए हुए मसीही विश्वासी कहलाए जा सकते
हैं? प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करने का, बाइबल के आधार पर, क्या अर्थ है? क्या हर कोई व्यक्ति जो अपने ही किसी भी आधार पर प्रभु यीशु पर विश्वास
करने का दावा करता है, वह उद्धार पाया हुआ मसीही विश्वासी है?
इस बात को समझने के लिए हमें बाइबल के दो पदों का अध्ययन करना
आवश्यक है। इनमें से पहला पद हमें स्पष्ट करेगा कि कैसे प्रभु यीशु पर विश्वास के
द्वारा उद्धार या नया जन्म मिलता है; और दूसरा पद समझाएगा कि
बाइबल के अनुसार मसीह यीशु में विश्वास करने का अर्थ क्या है। ये दोनों ही पद
प्रभु यीशु मसीह के जन्म और पृथ्वी पर सेवकाई से पहले के समय के हैं, अर्थात इन पदों में व्यक्त बात परमेश्वर के वचन का वह आधार है जिसके
अनुसार उद्धार, मसीही जीवन, और
सुसमाचार प्रचार की सेवकाई प्रतिपादित की गई। आज हम इनमें से पहले पद को देखेंगे,
और संबंधित दूसरे पद पर कल विचार करेंगे। ये दोनों पद हैं:
1. “वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा” (मत्ती 1:21)।
2. “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं” (यूहन्ना 1:12-13)।
आज के विचार के लिए, उसके संदर्भ सहित,
प्रथम पद है “जब वह इन बातों के सोच ही में
था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा; हे यूसुफ दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को
अपने यहां ले आने से मत डर; क्योंकि जो उसके गर्भ में है,
वह पवित्र आत्मा की ओर से है। वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम
यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से
उद्धार करेगा” (मत्ती 1:20-21)।
प्रभु यीशु मसीह का सांसारिक पिता, यूसुफ, अपनी पत्नी मरियम को अपने घर लाने से घबरा रहा था, क्योंकि
वह विवाह से पहले ही गर्भवती पाई गई थी। यूसुफ मरियम को छोड़ देने के बारे में
विचार कर रहा था, ऐसे में उसे परमेश्वर की ओर से स्वप्न में
स्वर्गदूत ने उसे आश्वस्त किया कि मरियम ने कुछ गलत नहीं किया है, वह अभी भी कुँवारी ही है, और यूसुफ बिना उस पर कोई
संदेह किए उसे निःसंकोच अपने घर ला सकता है। फिर स्वर्गदूत यूसुफ को मरियम के गर्भ
में जो पल रहा है, उसके बारे में बताता है, “वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा” (मत्ती 1:21), अर्थात, मरियम से
एक पुत्र उत्पन्न होगा, और यूसुफ को उसका नाम यीशु रखना होगा,
क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा। इस पद के
पहले अर्ध-भाग - पुत्र जनने और उसका नाम यीशु रखे जाने को हम कल इससे संबंधित
दूसरे पद के साथ देखेंगे। आज हम इस पद के दूसरे अर्ध-भाग “क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा”
पर विचार करेंगे।
यह पद प्रभु यीशु मसीह के जन्म लेने के
उद्देश्य को व्यक्त कर रहा है - लोगों को उनके पापों से उद्धार प्रदान करना। मूल
यूनानी भाषा के जिस शब्द का अनुवाद “उद्धार” किया गया है, उसका शब्दार्थ होता है ‘छुड़ा लेना या सुरक्षित कर
लेना’। अर्थात, मरियम से जन्म लेना वह
पुत्र जिसका नाम यीशु रखा जाएगा, वह लोगों को उनके पापों से
छुड़ा लेगा या सुरक्षित कर देगा। यह अपने आप में एक अति-विलक्षण और अभूत-पूर्व
आश्वासन था; क्योंकि यह मनुष्यों का व्यावहारिक अनुभव था कि
सभी धर्म-कर्म करने, सारे पर्व मनाने, विधि-विधानों
को पूरा करने के बाद भी उनके जीवनों से पाप की उपस्थिति समाप्त नहीं होती थी;
उन्हें फिर भी पाप के साथ संघर्ष करना पड़ता था, अपने पापों के दुष्परिणामों को झेलना होता था। अब प्रभु यीशु मसीह में
संसार के लोगों को परमेश्वर की ओर से यह प्रावधान उपलब्ध करवाया जा रहा था,
जो उन्हें उनके पापों की समस्या से छुड़ा कर सुरक्षित करेगा।
किन्तु साथ ही इस पद में परमेश्वर की ओर
से यह भी बताया गया था कि किन लोगों को उनके पापों से छुड़ाया और सुरक्षित किया
जाएगा; जैसा यूसुफ
से, उसे मिले दर्शन में, कहा गया और बाइबल में लिखा गया है, प्रभु
यीशु “अपने लोगों को” उनके
पापों से छुड़ाएगा और सुरक्षित करेगा। अर्थात जिसे पाप से छुटकारा और सुरक्षा चाहिए,
उसे प्रभु यीशु का जन बनना होगा; और जो प्रभु
यीशु का जन बन जाएगा, उसे प्रभु यीशु ही उसके पापों से
छुड़ाएगा और सुरक्षित करेगा। उपरोक्त दूसरे पद यूहन्ना 1:12-13 से हम देखते हैं कि प्रभु यीशु का जन बनना उसे ग्रहण करने, उसके नाम पर विश्वास करने के द्वारा होता है, जिसकी
व्याख्या हम कल देखेंगे। इस पद, मत्ती 1:21 में, यह भी निहित है कि लोगों के पापों से छुड़ाया
जाना प्रभु यीशु ही उन्हें करके देगा; उन लोगों का इसमें कोई
योगदान नहीं होगा, वे केवल प्रभु के किए हुए को स्वीकार करने
और उसे अपने जीवन में कार्यान्वित करने वाले होंगे। उद्धार केवल प्रभु यीशु मसीह
के द्वारा है, मनुष्य केवल उसे एक भेंट, एक उपहार के समान स्वीकार ही कर सकता है।
अर्थात, पापों की क्षमा और उद्धार या नया जन्म
पाने के लिए व्यक्ति को सर्व-प्रथम स्वेच्छा तथा सत्य-निष्ठा से प्रभु यीशु का जन
बनना अनिवार्य है। यह “बनना” किसी धर्म
विशेष की बातों के निर्वाह अथवा किसी परिवार विशेष में जन्म ले लेने से स्वतः हो
जाने वाली प्रक्रिया नहीं है। उपरोक्त यूहन्ना 1:12 के अनुसार,
यह केवल प्रभु यीशु मसीह को ग्रहण करने, और
उसके नाम पर विश्वास करने के द्वारा ही संभव है।
यदि आपने अभी तक अपने आप को प्रभु यीशु
मसीह की शिष्यता में समर्पित नहीं किया है, और आप अभी भी अपने जन्म अथवा संबंधित धर्म तथा उसकी
रीतियों के पालन के आधार पर अपने आप को प्रभु का जन समझ रहे हैं, तो आपको अपनी इस गलतफहमी से बाहर निकलकर सच्चाई को स्वीकार करने और उसका
पालन करने की आवश्यकता है। आज और अभी आपके पास अपनी अनन्तकाल की स्थिति को सुधारने
का अवसर है; प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर,
स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर
दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे
मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और
साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यशायाह
17-19
- इफिसियों 5:17-33
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें