प्रभु यीशु की कलीसिया
- प्रभु की आज्ञाकारी
प्रभु यीशु की कलीसिया में, प्रभु यीशु द्वारा
व्यक्ति के जोड़े जाने साथ ही, उस सच्चे और वास्तविक मसीही
विश्वासी के जीवन में कुछ बातों की उपस्थिति भी अनिवार्य और आवश्यक हो जाती है। प्रभु का जन कहलाए जाने वाले व्यक्ति
के जीवन में इन बातों की उपस्थिति यह दिखाती और प्रमाणित करती है कि वह प्रभु का
जन है, प्रभु
की कलीसिया में प्रभु द्वारा जोड़ा गया है। इन बातों के द्वारा वह जन अपने मसीही
जीवन में बढ़ता जाता है, प्रभु की कलीसिया के लिए उपयोगी बना
रहता है, और उसके द्वारा अन्य लोग भी प्रभु की निकटता में
आने लगते हैं। प्रेरितों 2 अध्याय में प्रथम कलीसिया स्थापित
हो जाने के साथ ही उन प्रथम विश्वासियों के जीवनों में भी ये सात बातें दिखने लगीं
थीं, और तब से लेकर आज तक संसार के हर स्थान में प्रभु की
कलीसिया के प्रत्येक सच्चे सदस्य में ये सात बातें होना ही उसके वास्तविक मसीही
विश्वासी होने का प्रमाण रही हैं (प्रेरितों 2:39)। ये सात
बातें हमें प्रेरितों 2:38-42 में मिलती है, और इनमें से पद 38 में दी गई पहली दो, पापों के लिए पश्चाताप और बपतिस्मे द्वारा मसीही विश्वास में आ जाने की
सार्वजनिक गवाही देने से संबंधित कुछ बातों को हम पिछले लेखों में देख चुके हैं।
तीसरी बात प्रेरितों 2:40 में दी गई है -
“उसने बहुत ओर बातों में भी गवाही दे देकर समझाया कि अपने आप
को इस टेढ़ी जाति से बचाओ”; अर्थात, बुरे और प्रभु विरोधी
लोगों ही अलग होकर प्रभु के साथ और उसकी आज्ञाकारिता में बने रहो। एक सच्चे मसीही विश्वासी का जीवन, संसार और सांसारिकता से
बच कर रहने, संसार की नश्वर बातों से हटकर परमेश्वर के वचन
के अनुसार चलने का जीवन होता है। मसीही विश्वासी हर परिस्थिति में प्रभु को महिमा
देता है, उसके कार्य को, सुसमाचार को
औरों तक पहुँचाने में संलग्न रहता है। इस संदर्भ में बाइबल के कुछ पद देखते हैं:
- जब
पतरस और यूहन्ना को यहूदी धर्म के अगुवों ने प्रभु यीशु के बारे में कुछ भी
कहने से मना किया, तब उनकी
प्रतिक्रिया: “तब उन्हें बुलाया और चितौनी देकर यह
कहा, कि यीशु के नाम से कुछ भी न बोलना और न सिखलाना।
परन्तु पतरस और यूहन्ना ने उन को उत्तर दिया, कि तुम
ही न्याय करो, कि क्या यह परमेश्वर के निकट भला
है, कि हम परमेश्वर की बात से बढ़कर तुम्हारी बात मानें। क्योंकि यह तो हम से हो नहीं सकता, कि जो हम
ने देखा और सुना है, वह न कहें” (प्रेरितों 4:18-20)।
- जब
उनसे फिर भी प्रभु यीशु के सुसमाचार का प्रचार करते रहने के विषय पूछा गया, तो उनका उत्तर: “क्या हम ने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी थी, कि
तुम इस नाम से उपदेश न करना? तौभी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है और उस व्यक्ति का लहू
हमारी गर्दन पर लाना चाहते हो। तब पतरस और, और
प्रेरितों ने उत्तर दिया, कि मनुष्यों की आज्ञा से
बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है” (प्रेरितों के काम 5:28-29)।
- और
जब अपने इस उत्तर के लिए वे पीटे गए, तो उनकी प्रतिक्रिया: “तब उन्होंने उस की
बात मान ली; और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से
फिर बातें न करना। वे इस बात से आनन्दित हो कर महासभा के सामने से चले गए,
कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे। और प्रति दिन मन्दिर में और घर घर में उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि
यीशु ही मसीह है न रुके” (प्रेरितों के काम 5:40-42)।
- स्तिफनुस
के मारे जाने के बाद उस प्रथम कलीसिया पर भारी क्लेश आया, और उन सताए गए मसीही विश्वासियों की प्रतिक्रिया थी, “उसी दिन यरूशलेम की कलीसिया
पर बड़ा उपद्रव होने लगा और प्रेरितों को छोड़ सब के सब यहूदिया और सामरिया
देशों में तित्तर बित्तर हो गए।” “जो तित्तर बित्तर हुए थे, वे सुसमाचार सुनाते
हुए फिरे।” (प्रेरितों 8:1,
4) - जिस बात के लिए वे सताए और बेघर किए गए, तित्तर बित्तर हो गए, वे उस बात से - अपने
मसीही विश्वास और उसके दायित्व से पीछे नहीं हटे, वरन
जहाँ भी गए, सुसमाचार सुनाते हुए ही गए।
हम उपरोक्त उदाहरणों से देखते हैं कि उन
प्राथमिक मसीही विश्वासियों के अन्दर तुरंत ही कितना भारी परिवर्तन, और अपने मसीही विश्वास
के दायित्व के प्रति कितना गहरा समर्पण आ गया था। वे हर हाल, हर परिस्थिति में, सताव सह कर भी, संसार और संसार के लोगों के साथ समझौते का नहीं, वरन
विपरीत हालात में भी प्रभु की आज्ञाकारिता का जीवन जीते थे; उसके
लिए सब कुछ सहने के लिए तैयार थे। परमेश्वर पवित्र आत्मा ने इसके विषय मसीही
विश्वासियों के लिए लिखवाया है:
- “और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित
हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएं परन्तु उसके लिये जो
उन के लिये मरा और फिर जी उठा” (2 कुरिन्थियों 5:15)।
- “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई
संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं
है। क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात शरीर की
अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड,
वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही
की ओर से है। और संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा
बना रहेगा” (1 यूहन्ना 2:15-17)।
- “हे व्यभिचारिणयों, क्या तुम नहीं जानतीं,
कि संसार से मित्रता करनी परमेश्वर से बैर करना है सो जो कोई
संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आप को परमेश्वर
का बैरी बनाता है” (याकूब 4:4)।
इसीलिए प्रभु
यीशु मसीह ने कहा था, “उसने सब से कहा, यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप से इनकार
करे और प्रति दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले” (लूका 9:23)। आज प्रभु की खेती में शैतान द्वारा बोए
गए झूठे ‘मसीही’ तरह-तरह की गलत
शिक्षाओं का प्रचार और संसार के साथ समझौते का जीवन जीने की बातों को सिखाते और
दिखाते हैं। जैसे जब इस्राएली मिस्र के दासत्व से छुड़ाए गए, तो
उनके साथ एक मिली-जुली भीड़ भी निकल आई (निर्गमन 12:38)। ये
भीड़ इस्राएलियों के साथ ही रहती और चलती थी; उन्हें भी मन्ना
मिलता था, परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा उन पर भी रहती थी।
किन्तु यह मिली-जुली भीड़ इस्राएलियों के लिए दुख और पतन का कारण बन गई, उसने इस्राएलियों को परमेश्वर के कोप का भागी बना दिया (गिनती 11:4-6,
10, 33), और अन्ततः कनान में प्रवेश के समय उस मिली-जुली भीड़ का
इस्राएलियों के साथ होने का कोई उल्लेख नहीं है; बलवाई
इस्राएलियों के साथ वे भी जंगल में नाश हो गए, आशीष की भूमि
तक नहीं पहुँच सके।
यदि आप एक
मसीही विश्वासी हैं, तो हर परिस्थिति में प्रभु और उसके
निर्देशों के प्रति सच्चे और आज्ञाकारी बने रहने में ही आपकी आशीष और सुरक्षित
भविष्य है। आज के ईसाई या मसीही समाज में शैतान के द्वारा कलीसिया में घुसाए गए
झूठे ‘विश्वासियों’ की कमी नहीं है। ये
झूठे विश्वासी हमेशा संसार के समान कार्य और व्यवहार करने, संसार
के लोगों के साथ समझौते करने, परमेश्वर के वचन की अनदेखी और
अनाज्ञाकारिता करने के लिए ही उकसाते रहते हैं, विश्वासियों
के मसीही विश्वास और जीवन में अग्रसर होने को बाधित करते रहते हैं। प्रत्येक सच्चे
मसीही विश्वासी के लिए प्रभु का निर्देश है, “अपने
आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ” (प्रेरितों 2:40)।
यदि आपने प्रभु
की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त
जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में
अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके
वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और
सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- निर्गमन
7-8
- मत्ती 15:1-20
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