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शनिवार, 22 जनवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया या मण्डली - बपतिस्मे द्वारा गवाही देना

प्रभु यीशु की कलीसिया में बपतिस्मे की भूमिका 

पिछले लेखों से हम देख चुके हैं कि प्रभु यीशु की कलीसिया में कोई भी, किसी भी रीति अथवा विधि के द्वारा स्वतः ही नहीं जुड़ सकता है। जिस प्रकार से प्रभु ने अपनी कलीसिया से संबंधित सभी बातों को स्वयं ही निर्धारित किया है, और स्वयं ही अपनी कलीसिया को प्रबंधित और संचालित भी करता है, उसी प्रकार से प्रभु अपनी कलीसिया में स्वयं ही लोगों को जोड़ता भी है (प्रेरितों 2:47), और उसके द्वारा जोड़े जाने से संबंधित प्रक्रिया और बातें भी प्रभु द्वारा ही निर्धारित कर दी गई हैं। प्रथम कलीसिया की स्थापना से लेकर आज तक, सारे संसार के सभी स्थानों में प्रभु की कलीसिया के साथ जुड़ने के लिए प्रभु द्वारा स्थापित इसी एक प्रक्रिया का निर्वाह किया जाता है। इस प्रक्रिया में सात बातें हैं, जिन्हें परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरितों 2:38-42 में लिखवाया है। इनमें से पहली बात, 2:38 में प्रभु की कलीसिया के साथ जुड़ने का आरंभ, प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपने पापों से पश्चाताप करना है, जिसे हम पिछले लेख में देख चुके हैं। उस लेख में हमने यह भी समझा है कि जिस पश्चाताप की यहाँ बात की गई है, वह वास्तविक पश्चाताप, ईसाई समाज और संस्थाओं में सामान्यतः देखे जाने वाले सांसारिक और औपचारिक पश्चाताप से, जो मृत्यु उत्पन्न करते हैं, बहुत भिन्न है। हमने उस वास्तविक पश्चाताप के गुणों, पहचान, और प्रभाव के बारे में बाइबल से समझा है जो प्रभु की कलीसिया से जुड़ने के लिए अनिवार्य है। हमने यह भी देखा है कि  इसी पद, 2:38 में दूसरी बात भी लिखी गई है - हर एक पश्चाताप करने वाले के द्वारा यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लेना।

परमेश्वर के वचन, बाइबल में जब भी बपतिस्मा लेने या देने की बात आई है, उसके साथ कुछ महत्वपूर्ण बातें भी जुड़ी हुई देखी जाती हैं, जिनकी अवहेलना करने के द्वारा बपतिस्मे को लेकर बहुत सी गलत शिक्षाएं बनाकर फैला दी गई हैं। इसलिए पहले यह समझना आवश्यक है कि बपतिस्मा क्यों लिया या दिया जाए; उसके बाद ही उसकी विधि, या नामों के प्रयोग, आदि का महत्व समझ में आ सकता है। पापों से पश्चाताप करने और प्रभु यीशु मसीह से पापों की क्षमा मांग लेने, उसे अपना जीवन समर्पित कर देने, और स्वेच्छा तथा सच्चे मन से उसकी अधीनता में जीवन जीने का निर्णय कर लेने के बाद, बपतिस्मा, व्यक्ति द्वारा किए गए अपने उस निर्णय की तथा उससे उसके जीवन में आए भीतरी परिवर्तन की केवल एक बाहरी सार्वजनिक गवाही मात्र है। 

मत्ती 28:18-20 में दिए गए क्रम को ध्यान से देखिए; यहाँ स्वयं प्रभु यीशु मसीह के शब्दों में, प्रभु ने पहले शिष्य बनाने को कहा, और फिर उन शिष्यों को बपतिस्मा देने के लिए कहा। प्रेरितों 2 में भी पतरस के प्रचार के बाद, जिन्होंने पश्चाताप किया और प्रभु को ग्रहण किया, केवल उन्हें ही बपतिस्मा दिया गया (प्रेरितों 2:41); दमिश्क के मार्ग में प्रभु का दर्शन पाने, और उसेप्रभुस्वीकार करने के बाद ही पौलुस (उस समय शाऊल) को बपतिस्मा दिया गया (प्रेरितों 9:5, 18); इसी प्रकार से प्रेरितों 19:1-5 के वार्तालाप में प्रकट है कि पौलुस जिन से बात कर रहा था, उन्होंने प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर लिया था। इन सभी उदाहरणों में वही क्रम दिया गया है - पहले प्रभु के शिष्य बनना, अर्थात उसे अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर लेना, और तब प्रभु यीशु के उन शिष्यों को ही बपतिस्मा दिया जाना। 

  यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला यरदन नदी के आस-पास के क्षेत्र में बपतिस्मा देता था, और वहीं प्रभु यीशु का बपतिस्मा भी हुआ (यूहन्ना 1:28; 3:23; मत्ती 3:6, 13-16; मरकुस 1:5, 9-11; लूका 3:3)। प्रभु यीशु और उनके चेलों के द्वारा भी बपतिस्मा दिया जाने का उल्लेख है (यूहन्ना 3:22; 4:1-2), किन्तु यह नहीं लिखा गया है कि वे किस नदी अथवा जलाशय में बपतिस्मा देते थे। फिलिप्पुस ने सामरिया में बपतिस्मा दिया (प्रेरितों 8:12-13) किन्तु यह नहीं लिखा है कि किस नदी अथवा जलाशय में बपतिस्मा दिया गया। बाद में फिलिप्पुस ने कूश देश के खोजे को, मार्ग के किनारे के एक जलाशय में बपतिस्मा दिया (प्रेरितों 8:36-37)। तो बपतिस्मा बहते या खड़े पानी, दोनों में ही दिया जा सकता है, इसमें कोई अनिवार्यता नहीं है कि बपतिस्मा किसी नदी में ही दिया जाए। इन हवालों से यह बात भी स्पष्ट है कि बपतिस्मा जहाँ भी दिया गया, वहाँ इतना पानी अवश्य होता था कि लोग उसमें उतर कर पानी के अंदर जा सकें, और बाहर आ सकें। कहीं पर भी छिड़काव का या पानी में उँगली भिगोकर माथे अथवा सिर पर क्रूस का निशान बना देने के द्वारा बपतिस्मा दिए जाने का बाइबल में कोई उदाहरण या उल्लेख नहीं है। बाइबल में कहीं पर भी किसी शिशु अथवा बच्चे के बपतिस्मे का उल्लेख नहीं है; हमेशा ही वयस्कों को, उनकी स्वेच्छा के अनुसार बपतिस्मा दिया गया।  

  जो प्रभु के शिष्य बन गए, अर्थात जिन्होंने प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर लिया और अपना जीवन उन्हें समर्पित कर दिया, वे स्वतः ही, बपतिस्मा लेने से पहले ही प्रभु के अनुयायी, परमेश्वर की संतान, और स्वर्ग में जाने के अधिकारी हो गए। बपतिस्मा न तो उद्धार प्रदान करता है, और न ही व्यक्ति को परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी अथवा स्वीकार्य बनाता है – बपतिस्मा केवल प्रभु यीशु में लाए गए विश्वास के द्वारा बदले हुए जीवन की सार्वजनिक रीति से गवाही देने का एक माध्यम है। ध्यान कीजिए, क्रूस पर टंगे हुए डाकू ने पापों की क्षमा पाई, और स्वर्ग चला गया – बिना बपतिस्मा लिए। ऐसे न जाने कितने लोग होंगे जिन्होंने प्रभु पर विश्वास किया, पापों से पश्चाताप किया, किन्तु किसी-न-किसी कारण वश, कोई बाधा अथवा विपरीत परिस्थिति के कारण बपतिस्मा नहीं लेने पाए – किसी दुर्घटना के बाद, किसी युद्ध भूमि में घायल होने के बाद अंतिम साँसें लेते हुए; रेगिस्तान अथवा बर्फीले इलाके में प्रभु को ग्रहण करने पर भी बपतिस्मे की सुविधा न होने के कारण; किसी सुदूर एकांत के इलाके में रेडियो पर सुसमाचार सुनकर विश्वास करने किन्तु किसी अन्य विश्वासी जन के उनके पास या साथ न होने के कारण – ऐसी कितनी ही परिस्थितियाँ हो सकती हैं, जिनके अंतर्गत बपतिस्मा लेना कई बार संभव नहीं होता है, और मनुष्य चाह कर भी बपतिस्मा नहीं लेने पाता है। क्या ऐसे लोग केवल इसलिए स्वर्ग में प्रवेश नहीं पाएँगे, क्योंकि सांसारिक परिस्थितियों के कारण वे चाहते हुए भी बपतिस्मा नहीं लेने पाए? यदि क्रूस पर लटका हुआ डाकू पश्चाताप करके, बिना बपतिस्मा लिए स्वर्ग जा सकता है, तो अन्य कोई क्यों नहीं?

  साथ ही, ध्यान कीजिए, शमौन टोन्हा करने वाले के समान (प्रेरितों 8:9-13, 18-24), सभी कलीसियाओं में ऐसे अनगिनत लोग हैं जिन्होंने रस्म के समान बपतिस्मा तो लिया, किन्तु उन्होंने सच्चा पश्चाताप कभी नहीं किया, उनके जीवनों में कोई परिवर्तन नहीं आया, वे अभी भी अपने पापों और सांसारिकता के जीवन में बने हुए हैं। वे प्रभु भोज में भी भाग लेते हैं, कलीसिया के सदस्य भी हैं, त्यौहार और पर्व भी मनाते हैं, किन्तु पाप और समझौते तथा सांसारिकता का जीवन भी जीते हैं। उनके बपतिस्मे से उन्हें क्या लाभ हुआ? क्या परमेश्वर उनके बपतिस्मे से मजबूर हो गया कि उसे अब उन्हें स्वर्ग में प्रवेश देना ही पड़ेगा, यद्यपि उनके जीवन दिखा रहे हैं कि उन्होंने उद्धार नहीं पाया है?

एक अन्य व्यर्थ बहस करने की बात बपतिस्मा प्रभु यीशु मसीह के नाम से दिया गया, यापिता, पुत्र और पवित्र आत्माके नाम से को लेकर उठाई जाती है। मत्ती 28:19 के अनुसार, प्रभु यीशु मसीह के ही शब्दों में बपतिस्मापिता, पुत्र, और पवित्र आत्माके नाम से दिया जाना है – ये तीनों ही त्रिएक परमेश्वर के स्वरूप हैं और पूर्णतः एक समान हैं, कोई भी दूसरे से न तो भिन्न है और न किसी रीति से कम है। यहीत्रिएक परमेश्वरजब इस धरती पर अवतरित होकर सदेह आया, तो उसका नामयीशुरखा गया; अर्थातयीशुत्रिएक परमेश्वर ही का नाम है, जो उसके उद्धारकर्ता स्वरूप को दिखाता है (मत्ती 1:21)। इसलिए चाहे तीनों का नाम लो, या किसी एक का, अभिप्राय तो उसी एक परमेश्वर को आदर देने और उसकी आज्ञाकारिता को पूरा करना है। इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता है कि केवल प्रभु यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा दिया/लिया जाए, या तीनों, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से कहकर दिया/लिया जाए; बात एक ही है। यह शिक्षा, कि केवल यीशु के नाम में दिया गया बपतिस्मा ही सही है अन्यथा नहीं, विलियम ब्रैनहैम के Jesus Only समुदाय के द्वारा फैलाई जाती रही है; और ये लोग त्रिएक परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखते हैं। वे केवल यीशु ही को मानते हैं, इसलिए त्रिएक परमेश्वर के अस्तित्व और बातों पर जहाँ और जैसे संभव है, संदेह उत्पन्न करते हैं, उसके विरोध में धारणाएं उत्पन्न करते हैं। और उनके इसी प्रयास की एक कड़ी उनके द्वारा बपतिस्मे के बारे फैलाई जाने वाली यह शिक्षा है। 

   परमेश्वर के नाम, तथा पानी के स्थान के साथ बपतिस्मे को जायज़-नाजायज़ दिखाना, शैतान के द्वारा लोगों को गलत शिक्षाओं और व्यर्थ के वाद-विवादों में फंसा कर, उनका ध्यान कर्मों की धार्मिकता की ओर लगाने का प्रयास है, जिससे वे परमेश्वर के अनुग्रह से मिलने वाली क्षमा और धार्मिकता की सादगी और आशीष से निकलकर व्यर्थ के अनुचित कर्मों में फँसे रहें, आपस में विवाद करते, लड़ते रहें, पापों से पश्चाताप के स्थान पर विधि-विधानों के निर्वाह के चक्करों में पड़कर प्रभु के मार्गों से भटक जाएँ। इन बातों को ध्यान में रखते हुए, यह प्रकट है कि महत्व बपतिस्मे को लेने का है, बपतिस्मे के समय किस या किन नामों का उच्चारण किया जाता है, उसे बहते पाने में दिया/लिया जाता है अथवा खड़े पानी में, इन बातों का नहीं। इसलिए बपतिस्मे को अनावश्यक रीति से ऐसा कोई महत्व नहीं देना चाहिए जो प्रभु ने उसके लिए नहीं कहा अथवा सिखाया है। बपतिस्मा लेना प्रभु की आज्ञा है, और आज्ञाकारिता में आशीष है। किन्तु बपतिस्मा न लेने से उद्धार नहीं चला जाता है; और बपतिस्मा ले लेने से उद्धार नहीं मिल जाता है।

     यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं तो आपके लिए यह बिलकुल स्पष्ट समझना बहुत आवश्यक है कि प्रत्येक उद्धार पाए हुए मसीही विश्वासी को, समय और अवसर के अनुसार, प्रभु की आज्ञा के अनुसार बपतिस्मा अवश्य ही लेना है – अनुग्रह से मिले उद्धार को स्थापित करने के लिए नहीं, वरन उस उद्धार की सार्वजनिक गवाही देने के लिए। यह बपतिस्मा व्यक्ति चाहे पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से ले अथवा दे, या यीशु के नाम से; बहते पाने में ले या खड़े पानी में – इससे उसके उद्धार की दशा और परमेश्वर के साथ बने संबंध पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। किन्तु जैसे पश्चाताप के लिए, वैसे ही बपतिस्मे के लिए भी है - यह कोई रस्म का निर्वाह करना, एक औपचारिकता पूरी करना नहीं है। इसका अपना महत्व और उद्देश्य है, जिसकी सीमाओं के अंतर्गत इसे देखना, समझना, और निभाना चाहिए। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।    

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 4-6     
  • मत्ती 14:22-36

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