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एक चुनौती - आराधना द्वारा परिवर्तित
आराधना के बारे में हमारे इस अध्ययन में हमने आराधना और प्रार्थना में अन्तर को देखा तथा समझा है; हमने देखा है कि आराधना क्या है और क्या नहीं है; परमेश्वर की आराधना करने के विभिन्न तरीकों को देखा है; हमने देखा कि क्यों परमेश्वर चाहता है कि हम उसकी आराधना करें, और केवल प्रार्थना ही करने वाले नहीं, वरन प्रार्थना से अधिक उसे आराधना देने वाले भी हों। हमने आराधना के आत्मिक और भौतिक फायदों को भी देखा; और यह भी देखा कि परमेश्वर जैसे आत्मा और सच्चाई में हमसे आराधना चाहता है, वैसी आराधना उसे अर्पित करने में क्या बातें हैं जो बाधा डालती हैं। अब जब हम आराधना पर इस बाइबल अध्ययन की श्रृंखला के अन्त की ओर आ रहे हैं, हम देखेंगे कि आराधना किस प्रकार से उनके जीवनों को बदल देती है, जो उसे गंभीरता से लेते हैं; और फिर अन्त में देखेंगे कि परमेश्वर किस प्रकार से व्यक्ति को आराधना करने वाले में परिवर्तित करता है। आज हम अपने वर्तमान समय से एक उदाहरण द्वारा देखेंगे कि आराधना ने किस प्रकार से आराधक के जीवन को परिवर्तित कर दिया।
यह उदाहरण क्रिस्टी बौवर की पुस्तक “बेस्ट फ्रेंड्स विद गॉड” (Best Friends With God) से लिया गया है, और आराधना की सामर्थ्य को चित्रित करने का बहुत उत्तम उदाहरण है। इसके साथ ही, स्वीकार करने के लिए, एक चुनौती भी दी गई है; पढ़ कर देखिए कि क्या आप उस चुनौती को स्वीकार करेंगे?
“मैंने जब परमेश्वर के साथ चलना आरंभ किया, मैं उसके साथ अपने संबंध में बढ़ने भी लगी, लेकिन फिर भी मेरे लम्बे समय से चल आ रहे विषाद (depression) के साथ मेरा संघर्ष वैसे ही ज़ारी रहा। एक बुद्धिमान मसीही महिला ने मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं एक “धन्यवादी डायरी” लिखना आरंभ करूं। उसने मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं उसे अपने बिस्तर के पास रखूँ, और रात को सोते समय बत्ती बुझाने से पहले, उसमें उस दिन की तीन वह बातें लिखूँ जिनके लिए मैं धन्यवादी हूँ। उस महिला का कहना था कि सोने से ठीक पहले सकारात्मक बातों पर ध्यान करने के द्वारा मैं अच्छे से सो सकूंगी। उसने मुझे चुनौती दी कि मैं यह लगातार 90 दिन तक करूं, उसका कहना था कि इसके द्वारा जीवन के प्रति मेरा दृष्टिकोण सकारात्मक बन जाएगा।
मैंने चुनौती को स्वीकार कर लिया। आरंभ में तो मैं प्रकट और सामान्य बातें ही लिखने पाई, जैसे कि परिवार और मित्र जनों के लिए धन्यवादी होना, आदि। फिर मेरा ध्यान दिन भर की अन्य बातों की ओर भी जाने लगा, और मैं देखने पाई कि ऐसी बहुत सी बातें थीं जिनके लिए मैं परमेश्वर की धन्यवादी हो सकती थी, जैसे किसी के द्वारा मुझे मिली सराहना या प्रोत्साहन, जिससे मेरी आत्मा प्रोत्साहित या उत्साहित हो सकी, या आँधी-तूफ़ान, जो मुझे परमेश्वर की असीम सामर्थ्य को स्मरण कराता था, आदि। ऐसा करते रहने से मैं उन छोटी-छोटी बातों की ओर और अधिक ध्यान देने और निरीक्षण करने वाली होने लग गई, जिनके द्वारा परमेश्वर हमारे प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करता रहता है।
मैंने अपनी यह डायरी केवल तीन महीने ही लिखी, लेकिन इसने मेरे दृष्टिकोण को हमेशा के लिए परिवर्तित कर दिया। मैं अनेकों बातों और विधियों द्वारा मेरे प्रति परमेश्वर के प्रेम और देखभाल की अभिव्यक्तियों को पहचानने लगी, उनकी खोजी बन गई। छोटी-छोटी बातों का ध्यान करने के कारण, मेरी आँखें उन बड़ी बातों के लिए भी खुल गईं, जो परमेश्वर मेरे जीवन में कर रहा था। मैं उसकी कृतज्ञ और धन्यवादी रहने लग गई, और मुझे अचंभा होने लगा कि उसने मेरे दृष्टिकोण को किस प्रकार से पूर्णतः परिवर्तित कर दिया, मेरे विषाद को ठीक कर दिया। अब मैं एक क्रोधित, हताश, और घायल पशु के समान प्रतिक्रिया देने वाली नहीं, बल्कि शान्त रहकर बातों को स्वीकार करने और उत्सुकता के साथ उन में से होकर आने वाली भलाई की प्रतीक्षा करने वाली बन गई। या, यदि इसे दूसरे शब्दों में कहूँ, पहले मैं परमेश्वर के प्रेम की एक बूँद भी पाने को तरसती थी, अब मैं उसके प्रेम के सागर में गोते लगाने लगी। और अन्ततः मैं एक डूबते हुए व्यक्ति के समान हाथ-पैर मारने की बजाए, परमेश्वर के प्रेम में पूरे भरोसे के साथ तैरने लग गई।”
अब, आप के लिए भी यही चुनौती है; क्या आप भी अपनी “धन्यवादी डायरी” लिखनी आरंभ करेंगे, तीन महीनों के लिए; और फिर उसे और उसके परिणामों को औरों के साथ बाँटेंगे, और यदि हो सके तो हमारे साथ भी, कि इससे आपको कैसे सहायता मिली है? क्या आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर, जो हमारा प्रेमी और अत्यधिक स्नेह करने वाला स्वर्गीय पिता भी है, उस पर भरोसा रखते हुए, विश्वास का यह कदम उठाएंगे? हमेशा याद रखें, वह जो भी करता है, या हमारे जीवनों में होने देता है, वह हमारे लाभ ही के लिए होता है, जिससे हम उन्नति करें और परिपक्व बनें; साथ ही, अकसर उसकी आशीषें समस्याओं और परेशानियों के भेस में आती हैं, जैसे हम राजा यहोशापात के जीवन से देख चुके हैं।
अगले लेख से हम राजा हिजकिय्याह के जीवन से उस चार कदम की प्रक्रिया को देखेंगे जिसके द्वारा परमेश्वर व्यक्ति को अपना आराधक और आशीषित जन बनाता है।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
न्यायियों 1-3
लूका 4:1-30
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A Challenge - Transformed Through Worship
In our study about worship, we have seen and understood the difference between worship and prayer; what worship is and what it is not; various ways through which we can worship God; why God wants that we worship Him and be more of worshippers than pray-ers. We have seen the spiritual and material gains from worship; and what things obstruct us from truly worshipping God the way He wants us to worship Him - in spirit and in truth. As we come towards the end of this Bible study series on Understanding Worship, we will see how worship transforms those who take it up seriously; and finally, how God transforms a person to become a worshipper. Today we will look at a contemporary example of how worshipping changed the life of the worshipper.
The example is an excerpt from Christy Bower’s book “Best Friends With God”, and it provides a perfect follow-up to illustrate the power of worship. There is a challenge to be taken; read on and see if you are up to taking that challenge:
“As I walked with God, I began to grow in my relationship with Him, but I continued to battle chronic depression. A wise Christian woman urged me to begin keeping a Gratitude Journal. She encouraged me to keep a notebook by my bed and to record three things for which I was thankful before turning out the lights. She said that by dwelling on positive things before bedtime, I would sleep better. She challenged me to do this for 90 days, suggesting that it would give me a more positive outlook on life.
I took the challenge. At first, I recorded obvious and generic things such as being thankful for friends and family. Then I began to pay closer attention to things throughout the day, and I discovered many things for which I could be thankful: a compliment from someone that lifted my spirits or a thunderstorm that reminded me of God’s awesome power. The exercise forced me to become observant. It increased my awareness of the small ways in which God expresses His love towards us every day.
I maintained the journal for only 3 months, but it changed my outlook for ever. I began to look for and find God’s overtures of love toward me in a multitude of ways. Taking notice of small things opened my eyes to bigger things God was doing in my life. I began to feel grateful that He had healed me from chronic depression, and I marveled at how He had changed my attitude toward Him from one of desperate defiance, like a hurt animal, to one of quiet acceptance and eager anticipation. Or, to put it a different way, I went from being desperate for a drop of God’s love to swimming in the ocean of God’s love. Finally, I was floating with total confidence in God’s love rather than fighting it like a drowning person.”
The challenge for you is: Will you start and maintain your Gratitude Journal for 3 months and then share with others, and if you can, with us as well, how it has helped you? Will you take this step of faith in the Almighty God, who is also our loving, doting, heavenly Father? Do remember that whatever He does, or allows in our lives, is only so that we may be benefitted, grow and mature; and His blessings often come disguised as problems and adversities, as we have seen from the life of King Jehoshaphat.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
Through the Bible in a Year:
Joshua 22-24
Luke 3
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