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सोमवार, 1 मई 2023

Miscellaneous Questions / कुछ प्रश्न - 2 - Salvation and Baptism / उद्धार और बपतिस्मा

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प्रश्न: उद्धार पाने तथा बपतिस्मा लेने में क्या अंतर है? क्या उद्धार पवित्र आत्मा की छाप लगना, और बपतिस्मा पवित्र आत्मा का अभिषेक होना है?

 

उत्तर:

 बपतिस्मा, परमेश्वर के वचन  पवित्र शास्त्र बाइबल के नए नियम खण्ड के लिखे जाने की मूल भाषा, यूनानी, के शब्द “बैपतिज़ो” से आया है, और इस शब्द का शब्दार्थ होता है बारंबार डुबोना, गोता देना, जलमग्न करनाअभिभूत कर देना, या पूर्णतः भिगो देना।

शब्द उद्धार यूनानी भाषा के शब्द “सोटीरिया” से आया है जिसका शब्दार्थ होता है छुटकारा, सुरक्षित किया जाना, बचाव, अर्थात किसी हानि अथवा हानिकारक बात से बचा लिया जाना।

मसीही विश्वास के सन्दर्भ में, उद्धार पाने का अर्थ है पापों के परिणाम से बचाया जाना , क्योंकि प्रभु यीशु मसीह ने उन्हें अपने ऊपर लेकर हमारे लिए उनका संपूर्ण दण्ड सह लिया – समस्त मानव जाति के लिए। क्योंकि अब पापों की कीमत चुकाई जा चुकी है, उनके दुष्परिणाम भुगत लिए गए हैं, इसलिए अब किसी को भी अपने पापों के परिणामों से बचने के लिए अपनी ओर से या अपने लिए और कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। अब बस इतना ही करना शेष है कि प्रभु यीशु द्वारा किए गए कार्य पर विश्वास कर के , व्यक्ति यह स्वीकार कर ले कि वह पापी है, प्रभु यीशु से उन पापों की क्षमा माँग ले, अपना जीवन प्रभु को समर्पित कर दे, और उसे अपना निज प्रभु एवं उद्धारकर्ता स्वीकार कर ले। उसके द्वारा यह करने पर, क्योंकि वह प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करता है, इसलिए परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा, वह व्यक्ति उस अनन्तकाल की मृत्यु, उस अपरिवर्तनीय हानि की दशा से छुटकारा पा लेता है, सुरक्षित कर दिया जाता है, बचा लिया जाता है, जो उसके पापों में होने के कारण उसकी नियति थी; अब वह उस स्थिति से “बचा लिया” गया है, उसने उस अपरिवर्तनीय हानि की दशा में जाने से उद्धार पा लिया है। यह उनके किसी कर्मों के द्वारा नहीं (इफिसियों 2:5, 8), वरन साधारण विश्वास में, स्वेच्छा से, सच्चे मन से की गई एक ही प्रार्थना के द्वारा, बिना किसी अन्य मनुष्य के हस्तक्षेप अथवा मध्यस्थता के द्वारा हो जाता है। उद्धार पाया हुआ व्यक्ति हमेशा के लिए परमेश्वर की संतान बन जाता है (यूहन्ना 1:12-13) और उसका यह आदर उससे कभी भी वापस नहीं लिया जाएगा।

जो इस प्रकार से बचा लिए गए हैं, जिन्होंने उद्धार प्राप्त कर लिया है, केवल उन्हीं के लिए प्रभु यीशु मसीह ने मत्ती 28:19 में कहा है कि वे बपतिस्मा लेने के द्वारा अपने उद्धार की गवाही दें। बपतिस्मा लेने से उद्धार नहीं है; वरन उद्धार पाए हुए व्यक्ति को बपतिस्मा लेना है। इस पद में प्रभु द्वारा दिए गए निर्देशों के क्रम पर ध्यान कीजिए: पहले व्यक्ति को प्रभु यीशु का शिष्य या अनुयायी बनना है और तब ही उस शिष्य को बपतिस्मा दिया जाना है।

इससे यह स्पष्ट है कि बपतिस्मा और उद्धार दो बिलकुल पृथक बातें हैं। बपतिस्मा किसी को भी उद्धार के लिए योग्य नहीं बनाता है, परन्तु प्रभु यीशु मसीह में लाए गए विश्वास के द्वारा जो उद्धार प्राप्त कर लेते हैं, उनसे यह अपेक्षा रहती है कि वे बपतिस्मे के द्वारा इस बात की गवाही देंगे।

जिस क्षण व्यक्ति उद्धार पाता है, उसी क्षण से वह पवित्र आत्मा का मंदिर भी बन जाता है, और पवित्र आत्मा उसी पल से उसमें आकर निवास करने लग जाता है (इफिसियों 1:13; 1 कुरिन्थियों 3: 16; 6:19), अपनी भरपूरी और संपूर्णता में – पवित्र आत्मा परमेश्वरीय व्यक्ति है – उसे न तो टुकड़ों में दिया जा सकता है, और न ही वह टुकड़ों में दिया जाता है (यूहन्ना 3:34)। पवित्र आत्मा को प्राप्त करने के लिए किसी को भी इससे अतिरिक्त और कुछ भी करने की कोई आवश्यकता नहीं है, कि वह प्रभु यीशु में विश्वास लाकर, उस को अपना निज उद्धारकर्ता ग्रहण कर ले, उसे अपना जीवन समर्पित कर दे (देखेंhttp://samparkyeshu.blogspot.com/2020/04/1.html )। प्रभु यीशु में विश्वास करने से पवित्र आत्मा भी उनके जीवन में आ जाता है, और इसी तथ्य को विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया गया है, जैसे कि पवित्र आत्मा की छाप लगना (इफिसियों  1:14), या पवित्र आत्मा का बपतिस्मा मिलना (प्रेरितों 11:15-17)। छाप लगने का अर्थ होता है उस पर उसके स्वामी की पहचाना का चिह्न लगा देना – उद्धार पाए हुए व्यक्ति के अंदर पवित्र आत्मा की उपस्थिति इस बात का चिह्न या छाप है कि वह अब प्रभु परमेश्वर का है (1 कुरिन्थियों 6:1920)। इसी प्रकार से, पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाने का अर्थ है पवित्र आत्मा में पूरी तरह से भीग जाना, या उसमें अभिभूत कर दिया जाना, या उसमें डुबो दिया जाना – पूर्णतः पवित्र आत्मा की अधीनता में आ जाना। ये सभी इसी एक बात, पवित्र आत्मा के नियंत्रण में आ जाने, को व्यक्त करने के विभिन्न तरीके हैं।

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English Translation

Question: What is the difference between Baptism and Salvation? Is Salvation the sealing of the Holy Spirit and Baptism the anointing of the Holy Spirit?

 

Answer:

The word baptism, is from a Greek language word, in which the New Testament section of God’s Word the Bible was originally written, “baptizo” which literally means to dip repeatedly, to immerse, to submerge, to overwhelm or make fully wet.

 The word salvation is from the Greek word soteria, and it means deliverance, preservation, safety, i.e. to be saved from some harm or something harmful.

 In context of the Christian faith, salvation means to be saved from the consequences of sin, because of the Lord Jesus Christ having taken them upon Himself and borne them for us - the entire mankind. Since now the sins have been paid for, their consequence borne, therefore no one needs to do anything of their own to be delivered from suffering the consequences of their sins. Now, all that anyone needs to do is believe on what the Lord Jesus has done, admit being a sinner to the Lord and pray for His forgiveness for them, submit their life to Him, and accept Him as their Lord and Savior. On doing this, through the grace of God, because of the faith placed in the Lord Jesus Christ, person is delivered, or preserved, or made safe from the eternal death or irreversible harm he was destined to; i.e. he is 'saved', or has attained salvation from harm. This is not by virtue of any works of any kind done by the person (Ephesians 2:5, 8), but by a single prayer made voluntarily from a sincere heart in simple faith, without the mediation or intervention of any other person. This saved person now irrevocably becomes a child of God forever (John 1:12-13).

 Those who are saved, i.e., have attained salvation, only they have been asked by the Lord Jesus, in Matthew 28:19, to witness about their being saved through taking baptism. Salvation is not by baptism; rather, those who have been saved have been asked to get baptized. Notice the sequence of the Lord’s instructions in this verse: first a person has to become the Lord's disciple or follower, and then the disciple should be baptized.

Hence it is quite apparent that baptism and salvation are two different things. Baptism does not qualify anyone for salvation, but those who have received salvation by faith in the Lord Jesus, are expected to witness about it through taking baptism.

The moment a person is saved, he becomes the temple of the Holy Spirit, who comes to reside in him (Ephesians 1:13; 1 Corinthians 3: 16; 6:19) in His fullness – Holy Spirit is a Divine Person – He is cannot be given out in parts, and is not given out in parts (John 3:34). Nobody needs to do anything extra or special to receive the Holy Spirit, other than to believe in the Lord Jesus, accept Him as his personal Savior, and submit their lives to Him (see: http://englishsampark.blogspot.com/2020/04/receiving-holy-spirit-1-introduction.html ). Coming to faith in the Lord Jesus also brings the Holy Spirit into their lives, and this is expressed through different words, like being sealed (Ephesians 1:14) or being baptized by the Holy Spirit (Acts 11:15-17). To be 'sealed' means being given a mark of ownership - the presence of the Holy Spirit within a Christian Believer is a mark of the Believer being the possession of the Lord (1 Corinthians 6:1920). Similarly, being 'baptized' by the Holy Spirit means being 'fully wet' or being 'overwhelmed' or being 'dipped' - under the cover of the Holy Spirit. These are all various ways of stating the same thing, i.e., being possessed by the Holy Spirit.

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