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गुरुवार, 4 मई 2023

Miscellaneous Questions / कुछ प्रश्न - 3c - Unforgiveable sin / क्षमा न होने वाला पाप - 3

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पवित्र आत्मा की निन्दा को कभी न क्षमा होने वाला पाप क्यों कहा गया है? - 3

 
संबंधित पिछले दो लेखों में हमने इस प्रश्न के सन्दर्भ में त्रिएक परमेश्वर से संबंधित कुछ बातों के बारे में देखा; और फिर शब्द "निन्दा" या "निरादर" के बारे में बाइबल से कुछ तथ्यों के द्वारा समझा कि इस शब्द का क्या अर्थ है। आईए आज देखते हैं की किस प्रकार से फरीसियों के लिए प्रभु यीशु का निरादर करना क्षमा न हो सकने वाले पाप ठहरा:

           यूहन्ना 3:1-3 को देखिए: “फरीसियों में से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य थाजो यहूदियों का सरदार था। उसने रात को यीशु के पास आकर उस से कहाहे रब्बीहम जानते हैंकि तू परमेश्वर की आरे से गुरू हो कर आया हैक्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता हैयदि परमेश्वर उसके साथ न होतो नहीं दिखा सकता। यीशु ने उसको उत्तर दियाकि मैं तुझ से सच सच कहता हूंयदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता। यहाँ, यह बिलकुल स्पष्ट है की निकुदेमुस प्रभु से जो कह रहा था, उसके अनुसार फरीसी भली-भांति जानते थे कि प्रभु यीशु परमेश्वर की ओर से गुरु होकर आए हैंतथा उनके कार्य यह प्रमाणित करते थे कि परमेश्वर उनके साथ हैऔर उन में होकर काम कर रहा है। धर्म के अगुवे प्रभु यीशु के इससे पहले के जीवन के बारे में न तो अनभिज्ञ थे और न किसी संदेह में थेवरन, वे इन सब बातों के बारे में अच्छे से जानते थेऔर न ही प्रभु ने अपने बारे में उन्हें किसी संदेह में छोड़ा था। न केवल यहाँ पर, वरन अन्य अनेकों अवसरों परयहाँ तक कि उस समय तक भी जब उन्हें झूठे मुकद्दमों में दोषी ठहराने के प्रयास किए जा रहे थेप्रभु ने यह बारम्बार स्पष्ट बता दिया था की वे कौन हैं (यूहन्ना 5:17-43; 8:25; 10:24; 14:11; लूका 22:67-70), परन्तु उन्होंने कभी भी प्रभु पर विश्वास नहीं किया (यूहन्ना 12:37), वरन यह सब जानते हुए भीबुरे उद्देश्यों एवं स्वार्थी भावनाओं के अंतर्गतउन्होंने प्रभु को मार डालने का षड्यंत्र रचा (यूहन्ना 11:47-50).

           दूसरे शब्दों मेंयद्यपि यहूदियों के धार्मिक अगुवे यह भली-भांति जानते थे कि प्रभु यीशु वास्तव में कौन हैंऔर यह भी कि परमेश्वर उनके साथ हैतथा उन में होकर कार्य कर रहा हैफिर भी जानबूझकरस्वार्थी लाभ के लिएउन्होंने प्रभु की अवहेलना कीउन पर अविश्वास कियाऔर सबसे बुरा यह कि जानबूझकर उनके बारे में लोगों का गलत मार्गदर्शन किया, उन सभी के समक्ष प्रभु के कार्यों और शिक्षाओं में होकर दिखाए जा रहे परमेश्वर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य को शैतानों के सरदार के सामर्थ्य कहने के द्वारा। उनका यहप्रभु के विरोध में स्वार्थ के अंतर्गत जानबूझकर कही गई बातप्रभु के बारे में जानकारी रखते हुए भी और यह जानते हुए भी कि प्रभु पर उनके द्वारा लगाए जाने वाले आरोप झूठे हैं, प्रभु का निरादर करना, उन्हें अपमानित करना, केवल इसे ही प्रभु ने पवित्र आत्मा के विरुद्ध किया गया कभी क्षमा न हो सकने वाला पाप कहा है।

           इसलिए, पवित्र आत्मा के विरुद्ध कभी क्षमा न हो सकने वाले पाप वह नहीं हैं जो बहुधा वर्तमान के अनेकों धार्मिक अगुवों के द्वारा कहे और बताए जाते हैं। बाइबल में यह वाक्यांश एक बहुत ही विशिष्ट अपराध के लिए प्रयोग किया गया हैऔर केवल उस अपराध को ही यह कहा जाना चाहिए।

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    In the previous two related articles we have seen in context of this question some things about the Trinity; and then we understood the meaning of the word "blasphemy" from the Biblical related facts. Now let us look at how those Pharisees were guilty of the unforgivable sin of blasphemy:

    Look at John 3:1-3 : “There was a man of the Pharisees named Nicodemus, a ruler of the Jews. This man came to Jesus by night and said to Him, "Rabbi, we know that You are a teacher come from God; for no one can do these signs that You do unless God is with him." Jesus answered and said to him, "Most assuredly, I say to you, unless one is born again, he cannot see the kingdom of God.” It is quite apparent from what Nicodemus was saying to the Lord that the Pharisees well knew that the Lord Jesus was a teacher come from God, and His deeds testified that God was with Him, was working through Him. The religious leaders were neither ignorant nor in doubt about the Lord’s antecedents; rather, they were well aware of them! Nor had the Lord left them in any doubts about who He was. Not just here but otherwise too, on many occasions, even till the point He was being subjected to the mock trials before being condemned to be crucified, the Lord had repeatedly made clear who He was (John 5:17-43; 8:25; 10:24; 14:11; Luke 22:67-70), but they never believed Him (John 12:37), rather despite this knowledge, for ulterior motives and for their personal gains, they plotted to eliminate Him (John 11:47-50).

    In other words, though the religious leaders of the Jews well knew of who the Lord Jesus actually was, and that God was with Him, working through Him, yet they deliberately, for selfish gains, chose to ignore Him, chose to not believe in Him, and worst of all, knowingly decided to misguide the people about Him by labeling the power of God the Holy Spirit being manifested before them through the teachings and works of the Lord as the power of Beelzebub – the ruler of demons. It is this, their deliberate and selfish slander against Him, despite their knowledge about Him and their knowing evidences contrary to their allegations, that the Lord Jesus has called the unforgivable sin of blasphemy against the Holy Spirit.

    So blasphemy against the Holy Spirit and committing of the unforgivable sin is not what is often stated and conveyed by many religious leaders of our times. It is a phrase used in the Bible for a very specific offence, and that is all that it should be used for.


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